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कविता

नोनी

पढ़-लिख लिही त राज करही नोनी।
नइते जिनगी भर लाज मरही नोनी॥

पढ़ही त बढ़ही आत्म विसवास ओकर
दुनिया मा सब्बो काम काज करही नोनी।

जिनगी म जब कोनो बिपत आ जाही,
लड़े के उदीम करही, बाज बनही नोनी।

पढ़ही तभे जानही अपन हक-करतब ल,
सुजान बनही, सुग्घर समाज गढ़ही ोनी।

परवार, समाज अउ देस के सेवा करही,
जिनगी ल सुफल करे के परियास करही नोनी।

गणेश यदु
संबलपुर कांकेर

3 replies on “नोनी”

वाह यदु जी नोनी हमर छोटकीन नोनी के उपर रचना। बहुते सुग्घर लागीस ग।
ये रचना बर गाडा गाडा बधाई।

बहुत सुघ्घर रचना हे
बधाई हो यदु जी

हर घर म पहटनिन कस आजो पलत हे बेटी, लडकी ए लकरी जइसन काबर बरत हे बेटी ।
भर – पेट भात – रोटी पाथे कहां बिचारी बइठे हे हाट – भीतरी रोटी बर बपरी बेटी ॥

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