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व्यंग्य

पईसा म पहिचान हे

 रामदास ह समय के संगे संग रेंगे के सलाह सब झन ल देवत रथे। ”जइसे के रंग, तइसे के संगत” अभी के समय मं पईसा के बोलबाला हावय। एक समय रिहिस जब लाखों के काम एक भाखा मं हो जावय। एक जमाना येहू रिहिस कि गांव के नेता हर गली खोर मं परे डरे कागज, सिगरेट के खोखा मं लिख के देवय कि अमुख के मास्टरी बर आर्डर कर दो, अमुख ल पटवारी के नौकरी मं भरती कर दो तहां तुरूते आर्डर मिल जावय। काबर कि ओ बखत के नेता मन अपन घर के धान बेच के नेतागिरी करंय। अपन के सपना बीरान के सुख बर जिनगी जियंय। फेर अब वइसन बात नई रहिगे। अब तो ”हाय पईसा, हाय पईसा तोर बिन करंव कईसा” के जमाना आगे हावय। 

रा
मदास हर ये समय ल ठऊका पढ़ डारे हावय। वो हर परछल गोठियाथे पईसा ले पहिचान हावय, पईसा के बल मं पहुंच हावय। अधिकारी-कर्मचारी अऊ नेता तोर कतको घसेलहा रइहीं। उंखर संग कतको तोर मितानी, अऊ नता-गोता रइहीं। उंखर तीर जुच्छा हाथ कांही काम लेके जाबे तब ओहू हर अपन हाथ ल हलावत कहि दिहि कि-ले आय हावस तब बने करे, चाहा-पानी पी मैं दौरा में जावत हां। एखर ठीक उल्टा कउनो नावा आदमी अटैयची मं नोट लेके जाही तब कब कस चिन्हार ओखर संग बइठ के ओखर बूता ल करही तभे चैन के बांसुरी बजाही। तेखरे सेती टैमदास हा कहिथे कि भईया तैं पईसा कमाय के उदीम कर। पांच परगट लोगन तीर गोठियाथे, मैं पईसा के बल मं मोर लइका ल बारवीं पास करवा डारेंव। शिक्षा करमी के नौकरी लगवा डारेंव। अस्पताल मे इलाज बर जाबे तब दवई ले जादा उहां के सब करमचारी मन के मुंह ले करू-करू गोठ निकलथे। मरीज के इलाज अब गा दवई मं नई होवय। डॉक्टर के मीठा बोली घला एक ठन इलाज बरोबर आय। फेर ये मीठा बोली फोकट मं नई मिलय। ओखर बर अलग फीस लागथे। टेबुल तरी ले पईसा दे तहां डाक्टर साहब मुच-मुच ले हांसत मीठ बोली ल बरसावत तोर नारी ल छुअत पूछही-कब ले गड़बड़ होइस जी तोर गाड़ी हर। नरस दीदी के मयारू भाखा के झड़ी, कम्पोडर के परेम गोठ के पुरवाही ये सब फीस के मुताबिक चले बर धर लेथे। ये सिरिफ एक ठन अस्पताले के बात नोहय, सरकारी महकमा ल कोन कहाय अब प्राइवेट आफिस मन मं घला पईसा ले पहिचान होय बर धर लीस।
काम होय बर धरलीस। पुलिस वाला तीर काम आगे तब मरती-जीती दुनो के खवा तब तोर पुरखा तरही। जइसे-जइसे दान-पुन्न, वइसे-वइसे, पाप-पुन लिखही। बिजली लगवाना हे, तब छोटे करमचारी सलाह देही साहब ले बात करे बर परही अऊ साहब ले बात के मतलब सफ्फा समझे जा सकथे। कउनो करा काम करवाय बर जाबे, पईसा हे तब तोर काम होही, नहि ते सौसांझे मर। पईसा पटा तहां तुरूत काम नहीं ते परे रहिबे घनचक्कर मं।
गांव के लोगन कथें, हमर सरपंच खऊवा हावय। सरपंच बिचारा का करय? बिना चढ़ौतरी चढ़ाय तो ओहू ल काम नई मिलय। कउनो ल खवाय रथे तब वोहू खाबे करही। ये तो दुनिया के रीत आय, खा अऊ खवा। ये रीत मं नई चलबे तब सरपंची के अवरदा ल अब पूरा नई करे सकस। टैमदास एखरे सेती जऊन उदीम ले पईसा मिलय ओ सब करथे। साइकिल के पंचर बनई, मइन्से अऊ गरवा बईला के सूजी लगई, तीरथ-बरत कराय के ठेका, बिहाव लगवाय के अउ टोरवाय के, पेसी लगवाय, घटवाय अउ बढ़वाय के ठेका। बुथ मं कब्जा करवाय के ठेका ये सब काम टैमदास हर करथे। चुनई के बखत तो ओखर पांचों अंगरी घीव मं अऊ मुड़ कराही मं बूडे रथे। जम्मो पार्टी के केनवासिन के ठेका, एजेंटी के ठेका ल उही पोगरियाथे। सरकारी अधिकारी करमचारी चाहे कउनो विभाग के होय, लेन-देन टैमदास के मारफत करथे। काबर कि गरी में फंसे के चांस बिलकुल नई रहाय। नई तो धक-पक लगे रथे, दू लम्बरी के कमई में।
कउनो महान मनखे केहे हावय के ये दुनिया मं कोई काम असंभव नईए। इही बात ला टैमदास हर कहिथे पईसा मं सब संभो हे। जइसे-जइसे पानी गिरथे वइसे-वइसे छाता ओढ़ना चाही कथें। जइसे हावा चलथे तइसे तैं चल नहीं ते मुसकुल मं फंस जाबे। जिहां के रासा, तिहां के भासा, जइसन देस वइसन भेस बना के रहिबे तब सुख पाबे नहि ते दु:ख पाबे। टैमदास के ये नीत मं जिनगी जियई आज जरूरी होगे हावय।

बंधु राजेश्वर राव खरे
लक्ष्मण कुंज, शिव मंदिर के तीर
अयोध्या नगर महासमुंद