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कहानी

परोसी के भरोसा लइका उपजारना

बुधारू घर के बहू के पाँव भारी होइस, बुधारू के दाई ह गजब खुस होईस। फेर बिचारी ह नाती के सुख नइ भोग पाईस। बहू के हरूण-गरू होय के पंदरा दिन पहिलिच् वोकर भगवान घर के बुलव्वा आ गे। बुधारू के बहू ह सुंदर अकन नोनी ल जनम दिस, सियान मन किहिन “डोकरी मरे छोकरी होय, तीन के तीन।”

बहू के दाई ह महीना भर ले जच्चा.बच्चा के सेवा जतन करिस। दाईच् आय त का होईस, कतका दिन ले अपन घर-दुवार ल छोड़ के पर घर म जुटाही नापतिस, दू दिन बर घर जावत हंव बेटी कहिके गिस तउन हा हिरक के अउ नइ देखिस। लहुटबेच् नइ करिस। लइका के थोकुन अउ टंच होवत ले बहु ह थिराईस, तहन फेर बनी-भूती म जाय के शुरू कर दिस। पर के आँखीं म के दिन ले सपना देखतिस। बनिहार अदमी, के दिन ले घर म बइठ के रहितिस। परोसिन दाई के गजब हाथ-पाँव जोरिस अउ वोला लइका के रखवारिन बने बर राजी करिस। परोसिन दाई के घर लोग-लइका नइ रहय, वहू ह सरको म राजी हो गे।

पर के लइका के नाक-मुहूँ ह के दिन ले सुहातिस। डोकरी ह लंघियांत कउवा गे। साफ-साफ सुना दिस कि अब वो ह ये लइका के जतन नइ कर सकय। कहूँ ऊँच-नीच हो गे ते बद्दी म पड़ जाहूँ।

बहू रोजे परोसिन डोकरी के गजब किलोली कर करके जइसने-तइसने दिन निकालत रिहिस। परोसिन डोकरी ह कउवा जातिस त कहितिस; “परोसी के भरोसा लइका उपजारे हे दुखाही-दुखहा मन ह। हमर मरे बिहान कर के रखे हें।”

कुबेर
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