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कविता

पुरखा के थाथी

पुरखा के थाथी म तुंहर, अंचरा में गठिया के रखो
मर जाहू का ले जाहू गोठिया-बतिया के रखो
देखा न ददा तोर झोरा ल काय-काय खाऊ धरे हस
भग जा मोर मेर कुछु नइए काबर पाछू मोर परे हस
टमड़-टमड देखत हावंव, लइका बर लेहस का तो
जेन चीज गड़े हे ओंटा-कोंटा करा, ठऊर ठिकाना बता दे
बबा सुध तोर झन हरा जावय, सपना ले उठके जगा दे
देबे तैं निशानी तेला, कभू नई बिगाड़ौं कथों
घर के धारन तैं मोर हावस, मुड़ी म पाछू सियानी होही
दे के उमर होतीस मैं तोला देतेंव, लिखे हे विधाता तेने होही
देखव-देखव ददा हालय न डोलय खटिया ले भुइयां म रखो।
देवलाल सिन्हा
ईतवारी बाजार, खैरागढ़

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