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पुस्तक समीक्षा : अंतस म माता मिनी

छत्तीसगढ म जतका महान विभूति अवतरित होईन ओमा मिनी माता के प्रमुख स्थान हवय। माता मिनी न केवल कुशल राजनेता रहिन बल्कि बहुत बडे समाज सुधारक, गुरूमाता अउ दूरदृष्टा भी रहिन। एक विभूति के भीतर अतका अकन सद्गुण के समावेश ये बात के परिचायक हवय कि माता मिनी छत्तीसगढ म परिवर्तन लाये खातिर अवतरित होय रहिन। आज जब हम मिनी माता के जीवन उपर कुछ पढना चाहथन त उँकर उपर लिखे गे साहित्य के कमी के कारण अध्ययन से वंचित रहि जाथन। गौरतरिहा जी के ये किताब सार्थक पहल हवय। मोर जानबा म मिनी माता उपर विस्तृत जानकारी देवइया ये पहिली किताब आय।
लेखक ह किताब ल सुव्यवस्थित ढंग ले चार खण्ड म विभाजित करे हवय। पहिली खण्ड बड़ मार्मिक हवय। छत्तीसगढ़ म अकाल परथे, अकाल ले प्राण बचाये खातिर राजमहंत अउ जमींदार अधारीदास (मिनीमाता के दादा) अपन तीन झिन बेटी के संग रोजी-रोटी के तलाश म पलायन करथे, कलकत्ता होवत असम के चाय बागान पहुंच जाथे। अपन तीन बेटी म से दू बेटी ल भूख के मारे काल के गाल म समाय ले नई बचा सकय। ये घटना सन 1896 के आय जेमा पलायन के पीरा ल लेखक चित्रित करे हवय।
दूसर खण्ड म मीनाक्षी के जन्म होना अउ गुरू अगमदास जी के जीवन संगिनी बनके मीनाक्षी ले मिनीमाता बने के घटना ल लेखक बताय हवय। गुरू अगमदास जी के साथ मिनीमाता के असम ले सपरिवार छत्तीसगढ वापस आना वर्णित हवय। गुरू अगमदास जी के सतलोक वासी होय के उपरांत गुरू माता उपर गुरूगददी अउ घर परवार दूरों के जिम्मेदारी आगे। सन 1953 म तात्कालीन म.प्र. के प्रथम महिला सांसद होय के गौरव गुरूमाता ल मिले हावय।
तीसरा भाग म मिनीमाता के राजनीतिक, सामाजिक अउ धार्मिक संघर्ष के उल्लेख हवय जेन प्रेरणादायी हवय। 1953 म मिनीमाता के अगुवाई म अस्पृश्यता निवारण कानून संसद ले पास होना उँकर कुशल राजनीतिक जीवन के परिचायक हवय। 1967 म भिलाई स्पात संयत्र द्वारा भू-अर्जन ले प्रभावित 1500 मजदूर अउ छटनी करके निकाले गे मजदूर के हक खातिर जमीनी लडई करके उन ला फेर नौकरी देवाय के काम मिनीमाता करिन जेकर ले उन सर्वहारा वर्ग बर पूजनीय होगिन। 1968 म घटित गुरूवइन डबरी हतियाकांड ह मिनीमाता ल अंतस ले झकझोर दिस, इही बेरा म मिनीमाता के रौद्र रूप देख बर मिलीस। संसद म बघनीन बरोबर गरजत मिनीमाता के कहना कि- मोर लइका मन कोनो गाजर मुरई नोहय जिंहला मारे, काटे भूंजे जाथे मैं अपन समाज के उपर जुलुम होत नइ देख सकव।” अइसन बात ल कोनो लौह महिला ही कर सकथे।
चौथा भाग गुरूमाता के सामाजिक जीवन उपर केन्द्रीत हवय। सतनाम धर्म अउ बाबा गुरू घासीदास जी के उपदेश के प्रचार-प्रसार, सामाजिक जीवन म छुआछुत, उँच नीच अउ जाति-पाति के विरोध ल लेखक ह मुखर होके लिखे हवय। मिनीमाता के कहे 11 संदेस अउ उंकर सतलोकवासी होना भी इही खण्ड म हवय। कुल मिलाके गौतरिहा जी ह मिनीमाता के जीवन के कई पहलू ल सामने लाय केपूरा प्रयास करे हवय।
आने वाला बेरा म मिनीमाता के उपर अउ गहन शोध करे के जरूरत हवय ताकि न केवल सतनामी समाज बल्कि सर्वहारा वर्ग भी मिनीमाता के जीवन दर्शन, उंकर संदेश अउ आदर्श से लाभान्वित हो सकय। शोधार्थी छात्र बर ये किताब ह बड उपयोगी साबित होही।
अजय अमृतांशु