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कविता गीत

पोरा के बिहान दिन-तिजा

तिजा लेय बर आहुं नोनी, मैं हा पोरा के बिहान दिन।।
मइके के सुरता आवत होही, होगे तोला गजब दिन।
महतारी के मया अलगे होथे, सुरता तोला आवत होही।।
मन बैरी हा मानय नही, आंसु हा नी थमावत हाई।
पारा परोस मा खेलस तेहा, छुटपन के सुरता आवत होही।।
फुगड़ी अउ छुवउला खेलस, संगवारी मन के सुरता आवत होही।
ककी भौजाई के नत्ता मन हा नोनी कहि बुलावत रिहिन।।
खोर गली हा सुन्ना होगे दाई बहिनी सब रोहत रिहिन।
हांसत हांसत तेहा आबे नोनी, रोवत-रोवत झन जाबे ओ।।
तोर बिन जग अंधियार होगे, हमला हंसा-हंसा के जाबे ओ।
खुरमी ठेठरी लाहुं तोर बा, सुवाद लगा के बने खाबे ओ।।
मया के कलेवा मीठ लागते, झोला भर मया धर के आबे ओ।
घाट घठोंदा मा भेंट होही तिजहारिन मन हा सकलाही ओ।।
गांव के नदिया गंगा बन जाही, पावन इसनान कराही ओ।
फुंलकसिया लोटा मा पानी भर के निकासी मा झाकत होही।।
खुरुर खारर थोरको सुनके, मुहाटी मा दउड़े आवत होही।
मनपंछी बन के उड़त होही मइके मा मड़रावत होही।।
दाई ददा हा नजर मा झूलके, आंखी हा तो फड़कत होही।

मन्नूलाल ठाकुर
19 नवम्बर 2008

पूर्व उप प्राचार्य ,भिलाई इस्पात सयंत्र शिक्षा विभाग ,दल्ली राजहरा ,जिला दुर्ग,
वर्तमान निवास – मनौद पोस्ट तरौद तह बालोद जिला दुर्ग.