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कविता

प्‍यारे लाल देशमुख के कबिता संग्रह ले दू ठन कबिता

बरदान दे
हे गउरी के लाला गजानंद, हमला तंय बरदान दे.
बिगडे तोर लईका मन ला, सोझ रावन मा लान दे.
दारू सीजर रोज पियत हे, पान मसाला खावत हे,
घर मा आके दाई ददा के, बारा रोज बजावत हे.
पढई लिखई म चंट होवय, अइसन उनला गियान दे,
बिगडे तोर लईका मन ला सोझ रावन मा लान दे.
फकत पिक्‍चर के गोठ ला, स्‍कूल मा गोठियाथे,
लहु पसीना के कमई ला, होटल मा उकारथे.
सियान के कहना माने, येला थोरिक धियान दे,
बिगडे तोर लईका मन ला सोझ रावन मा लान दे.
टूरी मन के डुठरी अउ, टूरा मन के लम्‍बा चूंदी जी,
फैसन के चक्‍कर मा येमन, होगे हे फूरफूंदी जी.
सुघ्‍घर गोठ ला सुनय, असन काम दे,
बिगडे तोर लईका मन ला सोझ रावन मा लान दे.

नोनी फेर होगे
पिडहा म बइठ के चयतू, बासी ला खात हे.
कोन जनी का पाय के, बिसाहिन कुरबुरात हे.
टेवना मा बडका टूरा, हंसिया ला चमकात हे.
बिहिच खानी उकर घर, पहुचेंव मय ठक ले.
हंसिया ला देख के, जि हा करिस धक ले.
बात काये चैतू, तोर बरन हा चढे हे.
हूंके ना भूंके भउजी, तरवा ला धरे हे.
का बतांवव मोर घर, अंधेर होगे हे.
आपरेसन के बाद, नोनी फेर होगे हे.

प्‍यारे लाल देशमुख