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कहानी

बइगा के चक्कर – नान्हे कहिनी

तैंहा बतावत हस त मोला लागथे कि तोर लइका ल मलेरिया बुखार धरे हे, अउ सुन तैं काहत हस न कि मोर माइलोगन ल भूत धर ले रिहीस हे। तब वोला भूत-ऊत नई धरे रिहिस हे वोहा ज्यादा घामे-घाम म किंजर दिस तेकरे सेती अकचकासी लाग गे रिहिस होही।
कइसे सुरेश का बात आय अब्बड़ दिन म दिखे हस कोन्हों कांही होगे हे का, तोर लोग लइका मन तो बने-बने हे न, अऊ तेहा काम-बुता म घलो बहुते कम जावथस, का तोर माई लोगन के तबिय बढ़िया नइए का, फेर का बात हे भई तैं कुछु तो गोठिया।
काय बात ल गोठियाबे भाई दिनेश, घर कोती के संसो-फिकिर म मुंहू डाहर ले गोठ तको नई निकलय, घर म रहिबे तब घर के, बाहिर के फिकर, मोर तो जी घलो कऊवागे, में का करौं मोला तो कांहिच समझ नई आवे।
तभो ते कुछू बात तो जरूरत हे, दिनों-दिन तोर शरीर ह डारा बानी सुखावत हे, आज तो तोला बतायेच ल परही। तैं बता न भई मंहू तो तोर संगवारी हरव का, सुख-दु:ख म मैं तोर काम नई आहूं त अउ काकर काम आहूं, इही तो संगी-साथी के परिक्छा के बेरा आय। आज तोर ऊपर भारी दु:ख के पहार टूटे हे अउ मेंहा पूछहूं तक नहीं, तब काकर मुंहू में समाहूं। तैं घबरा मत, मैं हाववं न कुच्छुक नई होवय। मोर से जतेक बन परही मैं तोर सहयोग करहूं।
बात आइसन आय भाई, एक महिना नई होय हाबे, एक दिन हमर घर के टुरा के दाई ह घर म तो काहींच काम बुता नइए। आगी बारे बर छेना सकेले ल तो लागही कहिके मोला गोबर बिने बर जावथों कहिस। महूं ह कहेंव, सिरतोन बात ताय घर म ठेलहा रहिबे तेकर ले जा खार डाहर एकात कनी खरसी गोबर ला लेबे। ओतका ल कहेंव ताहन गोबर बिने बर चल दिस। खार म गोबर बीनत-बीनत थोड़कन जादा घाम लागिस होही तब छइंहा म बइठहूं कहिके सुकालू मन के खेत म एक ठीन बोईर रूख जागे हाबे तेकर तीर म जाके बइठगे, का भइगे भईया का पूछत हस ओला भूत धर लिस। अब्बड़ छट्टन देय, बड़े-बड़े आंखी ल छटेरे, अउ बड़ अलकरहा किसम के करजय जी, मैं ह तो हलाकान होगे रेहेंव, फेर ओतकी जुआर भगवान बरोबर एदे तीर के गांव के एक झन बइगा आवत रिहिस हाबे ओकर से अरजी बिनोना करेंव, ताहन ओहा अब्बड बेर ले फूंका-झारा लगाइस तब कोन्हों लट्टे-पट्टे बने होइस।
अब बने होगे न, अउ कोन्हों ओला तकलीफ हे का, कांही किसम के रोग तो नई हे न, तैं फरी-फरा बतान भई, मोर तीर एक्कोठीक बात ल झन लुका के गोठिया, फेर मेहा तोर शरीर ल देखथंव त मुंही ला तोर बर संसो लागथे। अतका जान टन्नक मनखे आज लिल्लीड़हा कस दिखत हस। हांस-हांस के गोठियाइया, घुमना असना कलेचुप रहिथस। बता-बात अउ काय तेला।
ओ तो सब बात बने ए गा मेहा ओकर बर हार नई मानव भई भूत धरे रिहिस छोड़ दिस। मोला सबले जादा मोर मंझला टुरा के बीमार हावई ह जियानत हे, आज ले पन्दराही होगे। अन्न-पानी तियागे रोज दिन खटिया म सुते रहिथे। उही बात मोला घुना खा डारिस। कोनजनी कोन बेरा दुश्मन के काय बिगाड़े हन ते हमन ल अरई लगाय। त कइसे लागत हे जी तोर मंझला गुड्डू ल तेमा आठो पहर खटिया म सुते रहिथे।
उकर देह तीपे रहिथे, माथा पिरात हे कथे। कतको अकन कथरी चद्दर ल ओढ़ाबे तभो ले जाड़ लागतेच हे कहिथे, अउ अन पानी के नाम ल तो लेबे नइ करय।
तब कहां-कहां लेगे रेहेस जी, एको झन ल देखाए हस धुन नहीं। भइगे ओतका दिल ल देख खाली पइसा के फंकई होतत हे। ओ बइगा करा जाबे त ओहा खरचा बताए, दूसर जगह जाबे त उहू खरचा गोठियाए। बइसगा ह आके फूंकथे तब तो बने रहिथे, थोड़को चल देय ताहन ले जस के तस।
अच्छा तहू ह बइगा-वइगा के चक्कर म परगे हस जी, भला बता तो काय खरचा अउ काय बिमारी ल बताते तेला।
बइगा बतावत रहिस कि तोर टुरा ल बान मारे देहे अउ महीना भर के करार करे हे। खरचा म कहे कि करिया कुकरा, दू शीशी मंद, अउ अब्बड़ अकन खरचा बताए। एती बर घर म एक्को पइसा नइए। कहां के पइसा ल लाके मेहा मोर लइका ल बने करिहौं, इही मोला बज्र संसो परे हे।
हत्त बइहा तैहा बतावत हस त मोला लागथे कि तोर लइका ल मलेरिया बुखार धरे हे, अउ सुन तैं काहत हसन कि मोर माइलोगन ल भूत धर ले रिहीस हे तब वोला भूत-ऊत नई धरे रिहिस हे वोहा ज्यादा घामे-घाम म किंजर दिस तेकरे सेती अकचकासी लाग गे रिहिस होही, तै बइगा-गुनिया के चक्कर ल छोड़ अउ डॉक्टर ल देखा तोर लइका अभिच बने हो जही।
तेहा सिरतोन बात ल कहिथस जी, फेर मोला तो नई लागत हे कि डॉक्टर ह बने कर दिही।
तोर जग मेहा लबारी गोठियाहूं जी भई एक बार तो चल के देख, सरकार डॉक्टर ल जाके पूछे म पइसा नई लागय।
आज तेहा भगवान बरोबर मोला मिल के मोर आंखी ल खोल देस भाई दिनेश, मेंहा बइगा के चक्कर म जाके बुड़त रेहेंव। तैं उबार लेस अब मोर लइका के डॉक्टर जगह इलाज करायेंव ते बने होगे।
संतोष कुमार सोनकर ‘मंडल’
चौबेबांधा
राजिम