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कविता

बदलत हे मोर राज

बदलत हे मोर राज भइया
बदलत हे मोर गांव जी
बदलत हे लइका सियान अऊ
बदलत हे मोर मितान जी

शहर के जम्मों जिनिस बदलत हे
बदलत हे रोज राह जी
चऊंक अऊ कचहरी बदलत हे
नई हे बईमानी के थाह जी

शहर के अऊ का बात बतावंव
गंाव डहर मय जांव जी
पंच-सरपंच अऊ नियाव बदलत हे
बदलत हे गांव के नाव जी

कोन अंव भइया कहां ले आयेंव
अब कोन ला मैं बतांव जी
कोनों ला थोरको फुरसत नइहे
काखर कर दुखड़ा सुनांव जी

थके रहेंव तरिया कर गेयेंव
थोरको नई सुरतायेंव जी
अब तरिया के पार नंदागे
पचरी मा बिछलगे पांव जी

सुग्घर हवा लेहुं कहिके
बन-डोंगरी के सुरता लमायेंव
गयेंव डोंगरी अऊ देखेंव संगी
कटागे बर-पीपर के छांव

छोड़ेंव मय मोर गांव ला भईया
तेकर सेती पछितायेंव जी
ये गांव मोर सरग ले सुग्घर
मोर गांव ला सुग्धर बनाव जी

शहर-डहर के आस ला छोड़ के
गांव मा जिनगी बिताव जी
गंाव के नाम बदले के बदला
गंाव के माटी ला सिरजाव जी

गंाव मा जोन ममता भरे वो
शहर मा नई पाव जी
बारम्बार बरजत हंव तोला
मय ’’भोलाराम’’ गोहरांव जी

बदलत हे मोर राज भइया
झन-शहर-डहर बर जाव जी
बदलत हे मोर राज भइया
गंाव के माटी ला सिरजाव जी

Bhola Ram Sahu

 

 

 

 

भोलाराम साहू