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कहानी

बनकैना

समारू हा कालू ल घर म बला लाइस। खुसुर – पुसुर आरो सुनके देवबती रंधनी खोली ले अंगना म अइस। ओहर देखीस – ओकर गोसइया समारु के संगे – संग एक झन आदमी कोठा डहर ल झांकत हवै। देवबती ल देख के समारु बताइस – ये कालू आवै। मरहा – खुरहा गाय – बइला मन ल लेथे।
– तुम्मन कोठा म एला का देखावत हव। देवबती पूछीस।
– बनकैना ल देखावत रहेंव। समारु बताइस।
– काबर … ?
– बतायेंव न येहर मरहा – खुरहा गाय – बइला लेथे।
– तुंहर बिचार का हे ?
– बनकैना ल बेच देतेन सोचथौं।
– का मिल जही बनकैना ल बेचे म ?
– पाँच सौ रुपिया तो मिल ही जही ।
– पाँच सौ रुपिया के लालच म तुम बनकैना ल बेच देना चाहत हौ। पर हमला पाँच सौ का एक हजार दीही तभो ले बनकैना ल नइ बेचना हे।
समारु ल लगीस, बात बिगडऩे वाला है। किहीस – बनकैना बुढ़हागे हे। घर म रख के का करबो ?
– बुढ़हा गे हे त घर ले खेदार देन।
– येमा खेदारना कइसे? अब तहीं सोंच – कोठा म परे – परे हमला धन तो दीही नइ। उल्टा सेवा – जतन करवात रहीथे।
– सुवारथ के घला पार होथे। जब तक मिलत हे तब तक मोहो मोहो, नइ मिलय त धूर्र्, ये ठीक बात नोहे। जीवन भर तो हमला बनकैना देय च देय हे, हमर से ले च का हे। अउ ये उमर म बनकैना से पाय के आस ?
समारु के मुड़ म बनकैना ल बेचे के भूत सवार हो गे रिहीस। देवबती समारु ल अउ समारु देवबती ल समझाय के उदीम करिन। दूनों एक – दूसर के बात ल समझे बर तियार नइ होइन। खिसिया के देवबती किहिस – बनकैना ल नइ बेचना हे, मतलब नइ बेचता हे। अउ रंधनी खोली में खुरगे।
देवबती के बिरोध गलत नइ रिहीस। देवबती के कहे के मतलब का समारु नइ जाने। का समारु बनकैना के पेउस नइ झडक़े रिहीस? दूध – दही – मही नइ पीये रिहीस ? दार म डार के घी नइ खाय रिहीस ? बनकैना के बछरु संग उही तो मेछराय रिहीस न ? जउन बछारु मन अब जवान हो के ओकर खेती – खार ल सम्हालत हवै। दही – मही – घी अउ दू ठन कमइला लइका। का – का नइ दीस बनकैना। बनकैना से अतेक पाय के बाद अउ का पाय के आस? ठीक तो किहीस देवबती हा।
अउ फेर देवबती कइसे तियार हो जतीस बनकैना ल बेचे बर। कतेक बच्छर होगे बनकैना ल घर म आय। जब ले बनकैना आय हे, देवबती सेवा – जतन करत हे। कोठा भर खोज लेव, कोनो मेर गंदगी देखे ल नइ मिलही। देवबती के सेवा- जतन के कर्जा उतारे म बनकैना घलोक पाछू नइ हटीस।
जेन दिन बनकैना ल खरीद के समारु लाइस। अपन अंगना म बछिया देख के देवबती के खुसी उमंग के का कहीना। धरा रपटा आरती सजा लाइस। बनकैना के मुड़ म सुघ्घर असन चंदन लगइस। आरती उतारिस अउ लुगरा के अंचरा ल दूनों हाथ म धर के टपर – टपर बनकैना के माथ ल परिस। किहीस – मोर घर म दूध – दही – मही ल झन अतरन देबे। देवबती के मांग ल पूरा करै म बनकैना घलोक पाछू नइ हटीस। देखते – देखत बनकैना बछरु ले गाय बनगे। एक दिन गाभिन म हो के सुघ्घर असन बछरु घलोक दे दीस, देवबती के अंगना म मेंछराए बर। देवबती के परिवार के संगे – संग अरोसी – परोसी ल घलोक पेउस झडक़े ल मिले रिहीस।
साल भर नइ होइस अउ दूसर बछरु दे दीस बनकैना। बछरु बाढ़े लगीन अउ बछवा बन के समारु के खेती – किसानी कमाये लगीन। अतेक पाय के बाद भी कइसे कउड़ी के भाव म बनकैना ल बेचे बर तियार हो जतीस देवबती।
कोठा के खुंटा म बंधाये बनकैना तक समारु अउ देवबती के गोठियाये के आवाज पहुंचत रिहीस। उंकर बात सुने खातिर बनकैना पगुराना बंद कर दे रिहीस। समारु के बात सुन के बनकैना ल लगे – अब वोला बेच ही दे जाही पर देवबती के बिरोध ल सुन के वोला नइ बेचै के अंदेशा होवै। वोहर समारु के बात सुन के दुखी होवै अउ देवबती के बात सुन के खुश।
समारु के अंगना म कालू ठाढ़े रिहीस। उंकर बीच के बात ल सुन के कंझावत रिहीस। समारु अपन बात ल मनाये बर वो दिन के सुरता देवबती ल देवइस जब देवबती वोला कांदी दे बर कोठा म गीस। कांदी ल देख के बनकैना मुड़ ल हलइस। ओकर सींग म देवबती के हाथ रोखड़ागे। लहू निकले लगीस। देवबती कांदी ल पटक दी। कि हीस – मरे जात हे खाये बर। मोर हाथ ल लहू – लुहान कर दीस रोघही ह। मरे के घला नाव नइ लेवै।
इही घटना के सुरता करात समारु किहीस- का तंय भूला गेस वो दिन ल जब तोला बनकैना हुमेल दे रिहीस। अउ रोज कोठा म कचरा उठावत बनकैना ल बखानत रहीथस।
बनकैना के संगे संग देवबती घलोक समझ गे रिहीन के समारु अपन बात ल मनवाये बर देवबती के सेवा – जतन अउ बनकैना के हुमेले के बात करत हे। देवबती ये भी जानत रिहीस के बनकैना ओ दिन कोई जान सुन के नइ हुमेली रिहीस। बनकैना के आगू म देवबती के कांदी डालना होइस अउ बनकैना के मुड़ हलाना होइस। अउ यहू बात सही रिहीस के कोठा म खुसरते सांठ देवबती के बड़बड़ाना सुरू हो जावै। कहे – कोठा भर चिखला कर डारै हे रोगही ह। कते – कते मेर ल बाहरो – पोछौ।
बनकैना के पूंछी ल अइठ के। पीठ ल ठोंक के देवबती सरकाय अउ कोठा ल साफ करै। जइसे कोठा के साफ – सफाई होवै। देवबती बनकैना ल सहलाय लगै। बनकैना सब समझे देवबती के बात ल पर बोल नइ पाये। ओहर देवबती के हाथ ल चांटे लगे। देवबती कहे – अब अइसन गोबर झन करबे जेमा कोठा भर चीखला हो जावै।
बनकैना तब तो निश्चय करै के ओहर अब पतला गोबर नइ करही पर जइसे हरियर – हरियर कांदी ओकर आगू ल आवै ओकर से रही नइ जाय अउ पेट ले आगर चर डारै। अब ओकर उमर वो नइ रही गे रिहीस के जेला नइ तेला खाय अउ पचा ले। लालच म पड़ के पेट ले आगर खाये अउ पोकर्री मार देवै। पातर गोबर कोठा भर बगर जाये तेकर सेती संझा – बिहिनियां चार ठन सुने ल लगै। देवबती के बड़बड़ई म घला बनकैना ल मया दीखे।
ये डहर कालू ल टेम होत रिहीस। ओहर किहीस – तुम मन ल गाय बेचना हे के नइ बताओ। मोला दूसर जघा घला जाना हे।
रंधनी खोली ले निकलत देवबती किहीस – तंय अब तक इही काबर ठाढ़े हस। मंय कही देंव न हमला बनकैना ल नइ बेचना हे।
देवबती साफ – साफ सुना दीस। समारु के बोलती बंद होगे। कालू रोस म किहीस – जब गाय ल नइ बेचना रिहीस त मोला काबर बलायेस जी।
– अभी तो तंय जा हमन सुलह हो लेथन फेर तोला बलाबोन। समारु किहीस।
– अउ सुलाह होय के सवाले च नइ हे। तंय बनकैना ल लेहे खातिर ये अंगना म अउ कभू झन फटकबे …।
घर ले निकलत – निकलत देवबती के बात ल कान भर सुनिस कालू ह। देवबती कोठा म खुसरगे अउ साफ – सफाई म लग गे वइसने बड़बड़ावत। समारु छीन भर अंगना म ठाढ़े रिहीस फेर धीरे कुन उहू कोठा म समा गे। समारु बनकैना के मुंहू ल सहलाये लगीस। किहीस – तंय सिरतोन कहिथस देवबती। सही म हमला का – का नइ दे हे बनकैना ह …..। समारु के हाथ म दया – मया – स्नेह – अपनपन के भाव अनुभव करे लगीस बनकैना अउ चांटे लगीस समारु के हाथ ल …।

सुरेश सर्वेद