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कहानी

कहिनी : बमलेसरी दाई संग बैसाखू के गोठ

नवरात के बाद के इतवार के बडे बिहनिया बैसाखू ह ऊपर बमलाई पहुंचिस त बमलेसरी दाई वोला देखतेच बोलिस- ये दारी बड दिन म आए तेहा बैसाखू ! कहुं गांव- आंव चल दे रहे का? बैसाखू अचरज म पड गइस- कइसे कहिथस दाई? येदे नवरात म तो मेहा आय रहेंव। अइ…। बमलेसरी दाई, बैसाखू ले जादा चकित होगे- तैं आय रेहे ! फेर, मेहा तोला कइसे नई देखेअंव? बने सुरता कर। ये बखत नवरात म तैं नइ आय पाय। बैसाखू हंस पडिसि- आय रहेंव दाई ! मेहा पक्का आय रहेंव। उही समे तो मंतरी मन घलो आय रहिन। फेर, उनखर संग जिला साहेब, कप्तान साहेब, सरी फोज, फटाका आय रहिस। बमलेसरी दाई अपन जांघ म जोरदार हाथ मार के राग धर के, कहिस- येद्दे.. त.. अच्छा.. अइसन बात हे। अब समझ म आइस। भीडभाड म तेहा चपकात-वपकात पाछू डहर कोनो तिर रहिगे होबे। त तहीं बता, मेहा तोला कइसे देखतेंव? फेर थोरकुन रूक के दाई बोल  उठिस- बैसाखू! येदे एक बात ल मोर बने कान देके सुन। मंतरी- वंतरी, साहब-सुहबा मन के आय के दिन म तैं झन आय कर। अइसन समे म सबला हडबडी रहिथे। न तो मन भर के तैं मोर दरसन कर सकस अड न मेहा जी भर के तोर से कुछु बात  कर सकंव। लवछरहा कभु तैं मोला अउ मंय तोला देख भी लेंव तो का? आज येदे बने सुघ्‍घर दिन म आय हस। देख न। येती-वोती कोईच नइये। त अब हमन कुछु काहीं बोल- बतिया लेबोन, हे के नइ?




बैसाखू दाई के पांव पर के कह उठिस- बडा अच्छा बात केहे दाई ! मेहा अब अइसने सुभीत्ता दिन म आए करहूं। बमलेसरी दाई मुच-मुच मुसका के डांटिस- त फेर अलकरहा कइसे बइठे हस रे लेडगा ! बने पालथी मार के बइठ। हां ! त अब बता छोटे नोनी के तबीयत अब कइसन हे? ऐकर पहली आए रेहे त वोकर मलेरिया के सेती तैं, खूबेच परेसान रेहे। बैखासू, दाई के सुरता ल देख । के अकबका गे। बोलिस- सब बात के खियाल रखथस तेहा दाई। ओ दारी जइसे तेहा मोला गियान दे रहे, वइसनेच मेहा करेंव। टोना-टोटका, झाड-फूंक सबला तिरिया के, एकझन बने असन डाक्टर से इलाज कराएंव त मुनिया ह देखतेच-देखत बने होगे। तीसर दिन ले इसकूल जाय बर धर लिस। डाक्टर साहब घलो अब्बडु दयालु निकलिस दाई! दवाइच भर के पटसा लिस। अपन फीस-वीस कुछु नई लिस। अउ जानथस दाई ! एक दिन अपन डहर ले घर आके दू-दू सीसी टानिक के दे गिस। दाई ल बने लगिस।
दाई कहिस- बैसाखू ! अइसने दया-ममता, परेम, सहयोग के सेती तो ये दुनिया ह चलत हे। दया, परेम ले बढके ये दुनिया म अउ का हे? हां ! बने सुरता आइस। मेहा सोच ले रहेंव, तैं आबे त तोला आनी-बानी के बीमारी नइ आय वोकर खातिर नुसखा बताहूं। काय-काय नुसखा हे दाई! बैसाखू ह दाई तिर अउ सरक आइस। दाई बताइस – देख! थोडिक महिनत तो लागही, फेर जउन अइसन महिनत करही त बीमारी के रिवा-उरवा एक नई बांचही, अउ फेर बीमारी भाग जाही। सुन! बरसात आय के पहिली से बरसात जाय के बाद तक मतलब समझ ले, चइत के नवरात ले येदे कुंवार के नवरात तक पानी ल बने उबालेच के पियो। उबाले पानी ह एकदम साफ-सुद्ध हो जाथे। बता! कर सकबे अट्टसन? बैसाखू मुड खजुवात-खजुवात कहिस- कहिके तो नइ राखंव, फेर कोसिस करहूं दाई। दाई बने जोर से बोलिस- कहि राखों नइ, जरूर करहूं दाई ! अइसे बोल।
अचानक दाई के चेहरा म सुरता के चमक आगे- एक पइत बैसाखू ! तेहा मुनगा लाय रेहे। सुरता आइस? गुद्दा बड मोठ-मोठ रहिस। मोला लगिस के चेरहा होही रे ! फेर मोर अंदाजा गलत होगे। बने गुदा रहिस मुनगा म। बड मिठाइस। फेर कभु आबे त बवइसनेच मुनगा लाबे, भुलाबे झन। बैसाखू लजात-लजात कहिस- दाई ! ये दारी, मेहा मुनगा तो नई, लुगरा लांय हों। फेर… मोला संकोच होत हे। कोन जनी लुगरा ह पसंद आही के नइ। कीमती लुगरा नोहे दाई ! मोटा साधारन लुगरा हे। रंग ह चटक लाल हे। बैसाखू ह अपन झोला ल ट्मरिस। ऐकर पहिलिच दाई ह झोला ल झटक लिस। लुगरा निकाल के फइला के बैसाखू के गाल म परेम से एक चटकन मार के हंसत-हंसत कहिस- वाह रे बैसाखू! कतेक सुघ्‍घर लुगरा लाय हस अउ डरत हस के कोन जाने दाई ह ..। अरे मूरख! ये बात ल तेहा कइसे भुला गे के बेटा ह जउन भी चीज-सामान अपन दाई ल देथे वोला दाई ह बड परेम से लेथे। दाई-बेटा के मया ह बैसाखू ! अन्तस के होथे। दिखावटी-बनावटी नई होय। मोला तो लुगरा पसंद हे। आजकल के रंग-बिरंगी लुगरा मोला नई सुहाय। मेहा सोम्मार के दिन येला पहिनहूं। बैसाखू खुसी-खुसी दाई के दूसर बेर पांव पडिसि- तोला बने लगिस दाई ! तो मोला बने लगिस। तोर किरपात्तो मारेमोर उपर हरदम रहिथे दाई ! ऐकरे मारे…




तुरचेत बैसाखू के हाथ पकड के दाई अपन मुड ल हलावत-हलावत केहे लगिस- नई! नइ!! नई !!! गलत, बिलकुल गलत। तोर उपर मोर किरपा फोकटेच नोहे बैसाखू। तैं अइसन गलत खयाली म झन रह। सुन- मेहा तो तोला ऐकर मारे चाहत हंव बैसाखूराम ! के तोर म लालच नइये। तेहा ईमानदार हस। तोर म आलस नइये। तेहा मिहनती हस। तोर म काम-धाम ल टरकाय के नइये। अपन घर- बाहिर के सबो काम ल तैं खूब धियान धर के करथस। अतकेच नई, अउ फेर तेहा अपन बुढवा- बुढिया बाप-महतारी ल दुतकारस न। खूब लगन-सरद्धा ले उंकर सेवा-जतन करथस। अपन घरवाली ल घलो तेहा कभु कोनो किसम के दु:ख न देय। वोकर खातिर मया-ममता रखथस। अपन के लिखई, बर-बिहाव के करतब ल बने जी-परान देके निभात चले आवत हस। फेर, पास-परोस से, जान- पहचान से, सबो से तोर मेल- जोल, परेम भाव हे। बखत बेरा म वोमन के सेवा करे बर तेहा न पइसा ल देखत, न जांगर ल चुरास। अड…। अब तो बैसाखू दाई के पांव ल जोर से पकड के भरभरा गइस- बस दाई! बस, अतेक-अतेक मोर तारीफ झन कर। नई तो मारे घमंड के मेहा बइहा जाहूं अउ तोला खुखूंत्माज़द्धू। तो दाई! मय खुखूत्मा अपन करतब ल ठीकेठाक करत-करत ये कलियुगी दुनिया से तोर पूजा-भगती करत-करत जांव। दाई! अइसने मोला आसीरवाद दे। वोदे बहुत झन भगत मन आवत हे दाई ! बैसाखू फेर तीसर बेर पांव छू के परनाम करके कहिस- त मोला बिदा दे दाई ! अब बिही-बोइर के दिन म आहूं।
गिरीश बख्‍शी
ब्राह्मण पारा, राजानंदगांव