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गोठ बात

बम-निकलगे दम

एक झन कहिस- का बताबे सिरतोन म बहुत बुरा हाल हे। जुन्ना रेलवे पुलिया अउ करमचारी मन के लापरवाही ले वइसने जब नहीं तब जिहां नहीं तिहां बम फोरत हे, गोली चलावत हे। इंकर मारे तो कहूं आना-जाना घलो मुसकुल होगे हे।
हिंसा ले सुख, खुशहाली अउ सांति लाए के उदिम अउ हिंसा ले ये नई लाय जा सकय। येला लाए बर दया-मया, भाईचारा अउ अहिंसा के रद्दा ल अपनाए ल परही।
बम! जइसने बम के गोठ निकलिस रेल ह थरथरागे अउ वोकर पोटा कांपे ल धर लिस। वोला बम फूटे ले छर्री-दर्री होके छरियाय रेल अउ मनखे मन के सुरता आगे। मनखे मन के जी घलो धुकुर-पुकुर करे लगीस। 10 बज के 51 मिनट म जइसने रइपुर जवइया कोरबा-रइपुर लोकल टरेन ह हथबंद रेलवे टेसन के पलेटफारम नम्बर एक म रूकिस यात्री मन 5 नंबर के बोगी ले बतकिरी कस भरभरउहन निकले ल धरलिन। जंगल म लगे आगी कस बम के गोठ ह टेसन म बगरगे। डरपोकना मन टरेन ले उतरके दूरिहा होगे। फेर अब्बड़ मनखे वो बोगी के तीर म आके खड़े होगे। कभू बाप-पुरखा म बम नई देखे रहिन, देख लेतेन कहिके कइ झन आधा डर, आध बल करके खड़े रहिन। हिम्मत करके कई झन डब्बा म चढ़गे। वो मनखेच का जेन डर्रा जावय। मनखे आज अतका आगू बाढ़े हे येमा वोकर हिम्मत अउ बुध्दि के बड़ हाथ हे। कई झन अटेची ल दूरिहा ले देखिन अउ कइयो झन तो वोला उठा के, हला-डोला के घलो देख डारिन। वोमन आपस में गोठियाय लगीन, ‘टाइम बम तो नोहय वोमा ले टिक-टिक अवाज आथे, येमा ले कांही अवाज नइ आवत हे। ये दूसर किसम के बम होही। जेन अटेची खोले म फूटत होही।’
25 जुलाई 2008 दहला बेंगलूर 9 धमाके, सीरियल ब्लास्ट में 2 की मौत 12 घायल।
— 26 जुलाई 2008 अहमदाबाद में एक के बाद एक 17 धमाके अहमदाबाद थर्राया, साइकल पर रखे गए थे टिफिन बम। सिलसिलेवार हुए सीरियल ब्लास्ट से थर्रा उठा अहमदाबाद शहर भी, 18 की मौत 100 घायल धमाकों के बाद अफरा-तफरी। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और भिलाई जैसे शहर में नक्सली दहशत। हिंसा सिरिफ छत्तीसगढ़ भर म नहीं, जम्मो भारत अउ दुनिया म चलत हे। समाचार मन अइसने खभर ले भरे परे रहिस। आन ल दु:ख देके भला मनखे कभू सुखी रहि सकथे?
— 27 तारीख दिन इतवार जुलाई महीना सन् 2008 के गोठ आय। रइपुर जवइया कोरबा-रइपुर लोकल टरेन ह भाटापारा टेसन म देरी ले आइस। काबर नइ आतिस, भारतीय टरेन नोहय ग। भाटापारा पलेटफारम म जतका सवारी उतरिन वोकर ले जादा वोमा खुसरगे। कइसे खुसरिन येला तो खुसरइयेच मन जान सकथें। जतका बइठे रहिन वोकर ले जादा खडे रहिन। बइठे रहिन तिंकर भाग ल सबो संहरावत रहिन, कोनो जनम के पुन परताप रहिस होही जेन टरेन म बइठे बर जघा मिलगे। रेलगाडी ह रेंगिस तहान सवारी मन ल थोकिन कल परिस। गरमी के मारे हक्क खा गे रहिन। बरसात के समे रहिस तभो ले पानी बरसात के पता नइ रहिस। कोनो कहय के भगवान रिसा गे हे, कोनो काहय के सब मनखे के करमदंड आय। 5 नवम्बर के डब्बा म एक झन कहिस- ‘ये काकर अटेची ये अतेक बड़ ल बीच में मढ़ा दे हे, बइठत नइ बनत हे।’
— दूसर ह कहिस- ‘सिरतोन गोठ ताय येला उप्पर म मढ़ा देतिस नइते सीट के नीचे राख देतिस।’ फेर कोनो कांही जुवाब नइ दीन। मनखे के साध घलो थोक-थोक म बदलत रहिथे। टेसन म खड़े यातरी मन बिनती करत रहिन रेलगाड़ी हब ले आ जातिस अउ बने फसकिरा के बइठे बर जघा मिल जातिस भगवान। जइसने मनखे के एक साध पूरा होथे दूसर आगू म आ के ठाढ़ हो जाथे, येकर कोनो सीमा नइये। अउ मिल जातिस अउ पा लेतेंव- इही सोच ह मनखे ल भटकाथे अउ दु:ख देथे। येकरे सेती कहे गे हे ‘संतोषी सदा सुखी।’
— काकर अटेची ये पूछे म कोनो नइ बताइन त वोमन गुनिन भइगे जेकर ये तेन पानी-किसाब गे होही। थोकिन म पूछ लेबो तब तक आ जाही। खिड़की तीर म बइठे एक झन कहिस- ‘में ह कोरबा ले आवत हौं फेर ये अटेची वाला ल नइ देखे अंव।’ अतका ल सुनिन तहान ले सबके मति छरियागे, चेत-बुध हरागे, उंकर मन म आनी-बानी के संखा होय लगीस। जतके मुंह वोतके गोठ। एक झन कहिस- ‘येला कोनो जान सुन के राखे हे मतलब खतरा।’ दूसर ह पूछिस- ‘का खतरा जी?’ पहलइया ह कहिस- ‘कुछु भी हो सकथे।’ दूसर ह कहिस- ‘का कुछु सोजबाय कह ना गोठ ल भंवा-भंवा के काहत हस।’ पहलइया कहिस- ‘लहास नइते बम।’ बम के नाव सुनिन त कइ झन के डिमाक भक्क ले उड़ागे। आनी-बानी के गोठ उसरे रहिस सबके बया भुलागे। एक झन कहिस- ‘सही बात ये यार, कोनो अइसने छोड़ के थोरे रेंग दिही। कुछु न कुछु गड़बड़ तो हे।’ गाड़ी ह जइसने टेसन म रूकिस, ये गोठ टेसन अउ रेलगाड़ी भर बगरगे। जेन ल अपन जीव के डर रहिस तेन मन तुरत-फुरत गाड़ी ले उतर के दूरिहागे। बोगी नम्बर 5 खाली होगे। जीव के डर सबला रहिथे कोनो ल कमती कोनो ल जादा। फेर हिम्मत बड़े चीज आय।
— अब्बड़ झन हिम्मत करके बोगी म चढ़के अटेची ल देखे लगीन। कोनो तीर ले कोनो दूरिहा ले। कइयोझन अइसनो रहिन जेन मन बल तो नई करत रहिन फेर अटेची देख के लहुटइया मन सो चेंध-चेंध के, तिखार-तिखार के पूछ के सब बात के पता करत रहिन। आगू जाना जरूरी हे तेन मन कोनो आगू अउ कोनो पाछू के डब्बा म जाके बइठे बर धर लीन। पाछू के बोगी म जाके बइठ गे राहय उनला तो इहू होस नहीं रहिस के कहूं 5 नम्बर के बोगी म बम ह फट जाही त पाछू के बोगी मन तो खपलाबे करहीं। काला समझाबे, अइसे लागथे भगवान ह आजकाल कमती डिमाकवाला मनखेच बनाना बंद कर देहे।
— एक झन सियनहिन अपन बेटी अउ नाती टूरा ल लेके 6 नम्बर के डब्बा म चढ़िस। सियनहिन एक जघा बइठ के चैन के सांस लेत कहिस- ‘परान बांचिस ददा रोगहा मन बइठे रहेन तिंहा बम रख दे हें।’ एक झन सवारी ह पूछिस- ‘कहां बम रख दे हावय दाई?’ सियनहिन दाई- ‘येकर पहिली वाले डब्बा म कोनो परलोखिया अटेची म बम डार के मढ़ा देहे।’ दूसर सवारी- ‘बम राख देहे त तैं ह ये डब्बा म काबर चढ़े दाई?’ सियनहिन- ‘जान बचाना रहिस ते पायके बइठ गेन। कांही गलती होगे का बाबू?’ दूसर सवारी- ‘जबड़-बड़ गलती होगे दाई। कहूं 5 नम्बर के डब्बा म बम फूट जाही त इहू डब्बा नई बाचय। कइसनहा अटेची रहीस?’ सियनहिन दाई- ‘अपन आगू म रखाय अटेची ल देखा के अतके बड़ बिलकुल अइसनहेच रहीस।’ ये हर काखर अटेची ये कहि के कइयो घांव पूछे म कोनो जुआब नइ मिलिस। दू चार झन मन जोर-जोर से हुत कराइन फेर कोनो कांहीं नई बोलिस त वोमेर बंइठे रहिन तिंकर जी सुखागे। वोमन ला भुसभुस गिस इहू मा बम थोरे रखाय हे? सियनहिन दाई कहिस- ‘चल बेटी अब ये डब्बा ले उतर के आन डब्बा म जाबोन हमला परान नइ गंवाना हे।’ अइसे कहिके वोमन तीनों झन हब ले उतरगे। उंकरे संगे-संग अउ बहुत झन उतरगें। एक झन लइका अपन दाई सो गोहनावत रहय- ‘दाई, बम देखबो।’ महतारी- ‘वोला का देखबे बेटा चल इहां ले, फूट फाट जाही त जंउहर हो जाही।’ लइका-‘नहीं देखबोन कतका बड़ हे? बने बड़ेकजन होही ना दाई? लेगे के लइक होही त हमर वोला घर लेगबो। देवारी तिहार आही न उही म फोरबो।सारा मोटू ह बड़हर हे त बड़े-बड़े दनाका-बम फोरके हमन ला बिजराथे। वोला फोर के देखाहूं देख बेटा बम काला कहिथे।’ वो लइका बिचारा ह का जानय आतंकवादी मन कइसना बम फोरथे तेन ला। वो मन हा खुद तो फूटथे फेर संगे-संग फोरथे दाई के सपना, ददा के गरब, बाई के चूरी अउ लइकामन के भविस ला। लइका- ‘दाई हम बम ल देखबो।’ महतारी- ‘झन देख रे बेटा अइसना चीज ह देखे बर झन मिलय तेने बने हे।’ लइका- ‘नहीं ग हम देखबोन।’ अइसे काहत अटेची के बटन ल चपक दिस वो फट ले खुलगे। तीर वाला बटन ल चपके रहिस ते पाय के पूरा नइ खुलिस। टूरा के दाई ह झट ले बटन ल चपक के बंद करिस अउ टूरा ले जोर से एक थपरा मारिस। टूरा ह रोये बर धर लिस। वोकर दाई कहिस- ‘झन छू कहिथंव त नइ मानस रोगहा चुप बइठ नइते दूनों गाल ल अंगाकर रोटी कस पो देहूं।’
— वोतके जुआर एक झन नोनी ह अपन गियां संग आके खाली सीठ म धम्म ले बइठ गे। वो ह अपन संगवारी ल कहिस- ‘चल गोई ये मेर बइठे बर सीठ तो मिलिस खड़े-खड़े गोड़ पिराय ल धर लिस। भगवान भला करय रोगहा बम रखइया के।’ संगवारी हांस के पूछिस- ‘कइसे तेहां असीस देवत हस धन गारी?’ नोनी कहिस- ‘दूनों देवत हंव, उंकर सेती बइठे ल मिलिस तेकर सेती असीसी अउ बम राख दे हे तेकर सेती गारी देवतहंव।’ वो नोनी के हिम्मत देखे के लइक रहीस अटेची ल उठा के देखिस अउ कहे लगीस- ‘अब्बड़ गरू हे सिरतोन म बम हे तइसे लागथे।’ संगवारी कहिस- ‘कइसे करथस वो बम ह फूट जाही त?’ नोनी- ‘त का होही?’ संगवारी कहिस – ‘अरे बबा काल के मरइया आजेच मर जाबो।’ नोनी- ‘मरना तो हे न?’ संगवारी – ‘हौ।’ नोनी- ‘त का फरक परथे काली के मरइया आजे मर जाबो, एक दिन तो सबला मरनेच हे। कोनो अमरीत पी के तो नइ आय हे जेन सदा दिन जीयत रइही। हमर भाग म बम फूटे ले मरे के बदे होही त वोला कोन टार सकथे।’ वो कहिथे न- ‘राखही राम त लेगही कोन, लेगही राम त राखही कोन।’
— एक झन कहिस- ‘का बताबे सिरतोन म बहुत बुरा हाल हे। जुन्ना रेलवे पुलिया अउ करमचारी मन के लापरवाही ले वइसने जब नहीं तब जिहां नइ तिहां बम फोरत हे गोली चलावत हे। इंकर मारे तो कहूं आना-जाना घलो मुसकुल होगे हे। हिंसा ले सुख, खुशहाली अउ सांति लाए के उदिम अउ हिंसा ले ये नई लाय जा सकय। येला लाय बर दया-मया, भाईचारा अउ अहिंसा के रद्दा ल अपनाए ल परही।’
— कोनो जाके टेसन मास्टर ल बता दिस। रेल म बम हे कहिके सुनिस त वोकरो तरुआ सुखा गे। वो ह एक झिन पोटर ल कहिस- ‘जातो देख के आ लोगन का अटेची अउ बम कहिके आंय-बांय बकत हें।’ पोटर डब्बा मेर गिस दू-चार झन सो पोटर ह टेसन मास्टर तीर जा के कहिस- ‘कुछु समझ म नइ आवत ये दूनों डब्बा म अटेची हे फेर वोमा का हे ओला खोले म पता चलही।’ थोकिन देर म झंडी धरे एक झन मनखे आइस उहू डर्राय बानी देखिस अउ सूट ले चल दिस। ए दारी टेसन मास्टर जांच करे बर आइस। उहू ह थोकन ऐती-तेती देख के रेंग दिस। आफिस म जाके तिल्दा, भाटापारा, रइपुर, अउ बिलासपुर टेसन ल बम के खभर फोन ले दिस अउ आके 5-6 नम्बर के बोगी ल खाली करे बर कहिस। बांचे मन समान ल धर के उतरगे। आरपीएफ अउ जीआरपी वाले मन आइन अउ एक-एक करके बारों बोगी के जांच करिन। दू झन आइन अउ वो अटेची मन ल बांस म फंसा के डब्बा ले उतार के पलेटफारम म पटक के देखिन त पता चलिस वोमा तो सिरिफ कपड़ा लत्ता भराय हे। बम निरोधक दस्ता के अब तक कांही पता नइ रहिस।
— ये तरह सवा-डेढ़ घंटा सिरागे। फोकटे-फोकट एक ले इक्काइस करइया मन के सेती तो कभू-कभू दंगा-फसाद घलो हो जाथे। अइसना म हमला धीरज अउ सांति ले काम लेना चाही। कोनो कहूं कहि दिस के- कउंआ कान ल लेगे त वोकर पाछू नई भागना चाही। बम के नाव ले के तो कइझन के दम निकलत-निकल बांचगे। कइसनो करके ये नाटक ह सिराइस, सब झन ल हाय जी लागिस। टेसन मास्टर ह कहिस जेन ल जाना हे टरेन म बइठव, टरेन छुटइया हे। कइयो झन पलेटफारम म रहिगे, डर के मारे चढ़बे नइ करिन अउ कइयो झन देरी होय के सेती काम नइ हो पाही कहिके उहें ले लहुटे बर पलेटफारम म रहिगे। डराइभर ह हारन दिस अउ बारा बज के आठ मिनट म टरेन ह धीरे-धीरे रेंगे लगीस…
नरेन्द्र वर्मा
सुभाषवार्ड भाटापारा

One reply on “बम-निकलगे दम”

बड दिन बाद बढिया छत्तीसगढी बियंग गद्य म पढे ल मिलिस, छत्तीसगढी में गद्य में बियंग विधा ल आगू बढाय बर नरेन्द्र वर्मा जी ल साधुवाद आशा हे अवईया दिन म घलो आपके जोरदार बियंग पढे ल मिलही आपके बियंग के अगोरा म…….

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