जम्मोझन ऐके जगह जुरियाये,
बहिरी धरे मुस्कियात
फोटू खिंचावत हे,
अउ बहिरी मन के बीच,
मंजवा मचावत हे।
कचरा के होगे हे बकवाय
ऐती जाय कि ओती जाय,
पुक बरोबर उड़ियावत हे।
एइसन तो स्वच्छ्ता अभियान ल
आगू बढ़ावत हे,
वेक्यूम क्लीनर ह
कुड़कुड़ावत हे
बहिरी ह इतरावत हे।
वर्षा ठाकुर
5 replies on “बहिरी ह इतरावत हे”
Bahut badia. Mujhe apni school ki kavitae yaad aa gai.
पसंद आइस तेखर खातिर बर धन्यवाद।
आज के प्रसंग की बहुत अच्छी कविता ।
वाह वर्षा ! कतका बढिया लिखे हावस तैं हर । मज़ा आ गे । वो दिन बहिरी बिसाय बर गए रहेंव तव सब झन मोला देख के हॉसत रहिन हे अऊ बेचइया टुरा ह ” कय ठन देववँ ओ दायी ? ” कइके हॉस – हॉस के पूछत रहिस हे ।
पसंद आइस तेखर खातिर बर धन्यवाद।