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कहानी

बहुरिया – कहिनी

बहु ह ससुरार म घलो मइके कस मया अउ दुलार म राहय। ससुर काहय बेटी हमरो बेटी ह घलो ककरो बेटी बनही, हमू मन सोचबो न बेटी ल ससुरार म घलो बेटी कस दुलार मिलय। हमन जइसन करबो तइसन तो हमरो बेटी मन ल मिलही मान सम्मान पाना कुछु अपनो हाथ का रइथे बेटी।
देखत हावच बेटी मनोज ह अपन माइलोग के बात ल मान के अलग घर म चलदीच, बिचारी कौशिला ह नानपन ले अपन लइका अस सब ल पालिस पोसिस, पढ़इस-लिखइस अउ देख ले दुए महीना म ओकर घरवाली ल काय दु:ख दे डारीस होही, हमुमन तो देखत हावन बहु ल बेटी बरोबर रखे हावय बपरा ह। काकी दाई आय फेर लइका मन ल दाई ले कम मया नई करय अइसना होतीच त जेठानी के लइका अउ जम्मो देवर मन ल नई राखतीच।
मनोज भईया ह अपन भाई मन ल छोर के जात हावय ओ।
जा बेटी ते हा बरतन ल मांज डार। तोरो भइया ह आतेच्च होही, जानथव दाई आज बर चीला बनाहू, वो ओहा आज थोकेच कन भात ल खाय हावय। चीला ल मन करथे न दाई, पताल के चटनी ल पीस लेथंव, अउ पिसान ल घोर के रख देथव, ओकर हाथ मुंह के धोवत ले चीला ह लहुट जही दाई।
बने काहत हावच बेटी मेहा कोशिला ल समझा के आहू, रोवत होही झगरीहीन नोहय बपरी ह। हावच का कोशिला साग पान सुधार डरेच। राजू कथे, आना बड़े दाई देख न काकी ह एक जुवर के खाय नइये समझा ओ तिही ह। एक झन चलदीच त का सबो झन चल दीस का, देख न भइ खाय नइये। तेहा कइसे करथच कौशिला अरे तेहर बड़े आच ओमन ल सुग्घर आशीरवाद दे बेटा बहु सुग्घर राहय कइके त तेहा रोथच वो। मंगतीन दीदी मोला पहिली ले कइ देतीच त लकठा परोस म घर खोज के उंकर सब बेवस्था ल कर देतेंव दीदी। दुरिहा मे गे हे मोहल्ला कइसन हे न कइसन। मोना बेटी ह दिनभर अकेल्ला घर म रही, बीमार पड़त रथे त कोन ह ओला अस्पताल लेगही।
कस कौशिला अतका ल अपन बारे म जब मनोज अउ मोना ह नई सोचिस त तेहा काबर सोचत हावच, आही नहीं मोना के दाई-ददा मन चल तो तेहा दु:ख झन मना याहा चार झन तोर लइका मन हावय तेला देख बाई। पूजा चाय बना तो मेहा बिस्कुट नानत हावव। हव राजू भइया, राजू दार नान ले तो पांच किलो अउ मनोज घर अमरा देबे। मेहा ओकर घर देखेव न दुवा अउ देखे रइतेंव काकी तभो ले नई जातेंव मेहा दार अमराय बर नई जाहू रा ना भउजी ल दार-आटा के भाव ह पता चलही तीन हजार के नउकरी म कइसे घर ल चलाही। अइसन नइ काहय रे बेटा काय नइ कही। अइस ताहन बेटी-बेटी कइके मुड़ म चढ़ाय हाबच न। जा रे राजू झटकन।
मंगतीन कथे तुमन ल आघू ले नई बताय रिहिस हावय काय कौशिला, नई बताय ये दीदी मोटर लेके मनोज अइस ताहा अपन समान मन ल जोरीस त मोला तो काहींच नई सूझत रिहिस- रेंगे के बेरा पांव परीस अउ कथे बाचे समान मन ल धीरे-धीरे लेगहूं काकी। मोर तो मुंह ले बक्का नई फुटीच ओकर कका घलो नई रिहिस, लईका मन घलो नई रीहिस। मोला सब कही दीदी चार महीना बहु ल नई चलाय सकीच कइके। एहा तोर सोच आय कौशिला पारा के मन तोला नइ जानत ए का देवर, भाचा, जेठानी के तीन लइका सब ल तो पोसे हस, अब बहू म समझादारी नइए त ते हा काय करबे। पूजा ह चाय बिस्कुट ल लानथे सबो झन खाइस। खात रमत राजू ह कथे अब न काकी तेहा ह रोबे गाबे झन अगर तेहा ओकर मन के नाम लेके रोबे त महूं ह कोनो डाहर चल दूहूं अरे आदमी ओकर बर सोच, जेहा कभू इंहा ल घर मानय।
देखत-देखत साल ह बीतगे मोना ह प्राइवेट स्कूल म मस्टरिन बनगे। काबर एक झन के तनखा म पुरती नइ होवय। अब ओकर नउकरी करे ले चार पइसा हाथ म राहय पढ़े-लिखे के इही फायदा होथे कम से कम घर खर्चा बर तो कुछ कमा लय। मोना ह अब जचकी घलो होवइया हावय। मई म ओकर जचकी होगे गर्मी म राजू के शादी के बाद शुरू होइच त राजू ह अपन हाथ ल खड़ा कर दीच मेहा शादी नइ करंव काबर उदाहरण सामने रिहिस, सब अब्बड़ समझाईस त एक जगा लड़की देखे गीच अउ एके घांव म रिश्ता ल पक्का करके आगे, काबर मीन मेन अउ छाटना एक घर के सियान म अच्छा नइ मानय, सबके बेटी ल अपन बेटी कस समझय। बिहाव के तारीख ह घलो लकठागे, लड़की पढ़े-लिखे सुग्घर पातर दुबर दूनो झन के जोड़ी बढ़िया फभे रिहिस हावय।
बहू ह ससुरार म घलो मइके कस मया अउ दुलार म राहय। ससुर काहय बेटी हमरो बेटी ह घलो ककरो बेटी बनही, हमू मन सोचबो न बेटी ल ससुरार म घलो बेटी कस दुलार मिलय। त हमन जइसन करबो तइसन तो हमरो बेटी मन ल मिलही। मान सम्मान पाना कुछ अपनो हाथ म रइथे बेटी। हमन तोर सास-ससुर आन फेर रहिबे काकी दाइ करा नान-नान ओकरो लइका हावय अपनेच भाई-बहिनी समझके रहिबे। सबला बांट- बिराज के खाय ले लागही, कभू कम तभू तो दुच्छा घलो खाय पर सकथे बेटी। अतका ल सुनके सीमा ह कथे बाबूजी मेहा तो सबला देख के आय हांवव, इही मन तो मोर भाई-बहिनी अउ संगवारी हरय त मे ह कइसे छोड दूहूं। कभू सुख त कभू दुख तो अइसनेच घर परिवार के कल्पना करे रेहेंव। काबर न तो मोर काकी, दाई, न तो नान-नान भाई-बहिनी, सीमा के गोठ सुनके सब खुश होगे।
देखत-देखत गर्मी ह गांव म बीतगे अब साहर म स्कूल खुले के दू दिन पहिली आजथे। सीमा ह अपन काकी-कका ल कइथे मेहा उहा पढ़ावत रेहेंव हो, इहाें तो काहिच काम बुता नइये दिन भर असकटा जहूं। महू ह पढ़ातेंव कका। कका-काकी मन कइथे राजू ल पूछ ले, कइसे राजू, त राजू कइथे तुमन जानव मे ह नइ जानव काकी- कका मन ल एतराज काबर रतीच। ओमन ल तो खुशी होथे, कका ह कइथे तोर बायोडाटा ल देबे बेटी मेहा तीन चार ठन स्कूल के प्रिंसिपल मन ल जानथव बात करहूं।
बिहान दिन सीमा ह बायोडाटा ल अपन कका ल देदीच, राजू के डिप्टी टाइम बे टाइम राहय। सीमा के नउकरी घलो लगगे। दू महीना के गे ले तनखा मिलिच, नानके काकी ल पइसा ल दीच त काकी ह हजार रूपया के खाता खोलवा के दिस त सीमा ह अकचका गे, पूछय ये काय आय का पढ़ न वो पढ़े ता हावच का। सीमा ल कथे बचाय ले बाच जथे बेटी अऊ हाथ म रही त खर्चा हो जही। इही बहाना हजार रूपया जमहा होही ते हा काम आही। राजू ल झन बताबे नही ते ओ हा मांग खरचा कर दिही। कई देबे काकी ल देहंव। सीमा ह अब्बड ख़ुश होइस अउ भगवान ल धन्यवाद दीच कि मोला अतका परिवार दे हावच घर दुवार ह नानचुन हावय फेर आदमी के हृदे हा बड़े हावय।
दू महीना के गे ले मोना के छुट्टी सिरागे लइका ल राखे बर अपन दाई ल नानीच उही दाई ह महीना दिन नई रेहे सकीच चलदीच अपन घर। अब मनोज अउ मोना ह सोच म परगे चार महीना के लइका ल कहां छोड़ के जाय, काबर नउकरी घलो जरूरी हावय, अइसे तइसे चार दिन ह सोचत बीतगे, मोना छुट्टी लेके बइठगे त घर के खर्चा पानी ह गड़बडागे। मनोज ह कइथे चल काकी तीर जाबो, तब मोना ल अपन करनी ह दिखिस अउ सबो घमंड ह चुर-चुर होगे। इतवार के दिन दूनो झन दिन भर रिहिस त मनोज ह अपन काकी ल कइथे काकी तोर नाती ल खेलाबे नहीं वो। त काकी ह कइथे तुमन ल खेलाय हावंव त मोर नाती ल कइसे नई खेलाहूं रे, अब तुंहर ले जादा मया तो नाती बर होगे हावय बेटा। मोना लइका ल छोड़ के घर म जावय। चार साल के गे ले दूसरइया लइका घलो आगे काकी सास ह दाई महतारी बरोबर नाती मन ल रखय। सीमा के लोग लइका नइ होय, तभो ले अपन लइका असन दूनो ठन लइका ल जतन के सीमा ह बड़ समझदार हावय काकी रास के बेटी मन बिहाव करे के लइक होगे, त ओहा थोर-थोर कर समान ल काकी सास ल कइ-कइ के लेवावत रहिथे। सीमा बड़ समझदार हावय पांच साल होगे, फेर कभू बातीक बाता काकी संग नइ होइस। ओकर परोसी मन कइथे भगवान सीमा कस बहू सबो ल देवय त सीमा कथे तहु मन मोर सरीक बनहू त।
गीता चंद्राकर
कौड़िया पलारी