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कहानी

बाम्हन चिरई

बिहाव ह कथे कर के देख, घर ह कथे बना के देखा। आदमी ह का देखही, काम ह देखा देथे। घर बनात-बनात मोर तीनों तिलिक (तीनों लोक) दिख गे हे। ले दे के पोताई के काम ह निबटिस हे, फ्लोरिंग, टाइल्स, खिड़की-दरवाज अउ रंग-रोगन बर हिम्मत ह जवाब दे दिस। सोंचे रेहेन, छै-सात महीना म गृह-प्रवेश हो जाही। फेर गाड़ी अटक गे।
मुसीबत कतको बड़ होय, माई लोगन मन बुलके के रास्ता खोजिच् लेथें; घर वाली ह कहिथे – ‘‘करजा ले-ले के कतिक बोझा करहू , आखिर हमिच ल तो छूटे बर पड़ही। दूसर के नकल म रहीसी देखा के का करबो। टाइल्स लगाय के, सागोन के खिड़की दरवाजा लगाय के, रंग रोगन कराय के हमर हैसियत नइ हे त फरसी पथरा लगवा लेथन, सागोन के जगह आड़ जात के लकड़ी लगवा लेथन, अलवा-जलवा पोतई तो होइच् गे हे। हँसइया के दाँत दिखही, इँखर का, करोडो खरचा करके सजाबे तउनों म दस ठो मीन-मेख निकालिच् दीहीं। दूसर के घर म के महीना ले रहिबोन। चउमास लगे के पहिलिच् हम कइसनो करके अपन घर म चल देबोन।
वइसनेच करेन। चउमास लगे के पहिली नवा घर म आ गेन।
अपन किताब मन ल मंय ह दीवाल म बने अलमिरा के खँड़सा (रेक) मन म सुंदर अकन ले सजा के रख देंव। अलमिरा म अभी काँच-खिड़की लगे नइ हे, ताला-संकरी के सवाले कहाँ आथे; मतलब मोर अनमोल खजाना ह सबके पहुंच के भीतर हे।
एक दिन देखेंव, एक ठन बाम्हन चिरई ह दीवाल के खँूटी म टँगाय दरपन, जेकर आगू खड़े हो के मंय ह कंघी करथंव, के चौंखटी (फ्रेम) म बइठ के अपन फोटू (प्रतिबिंब) ल निहार-निहार के देखत रहय। मुड़ी ल कभू डेरी बाजू त कभू जेवनी बाजू मटका-मटका के, पूछी ल नचा-नचा के गजब मगन रहय। मंय सोंचेव, वाह रे चिरई, तहूँ ल पाटी पारे के निसा हो गे हे। कभू चींव-चींव करके अपन प्रतिबिंब ल ठोनके; वोला लगे होही कि झोझा झपाय बर कते कोती ले अउ दूसरा ह आ गे हे?
तभे एक ठन दूसर बाम्हन चिरई ह फुर्र ले उड़त आइस अउ पहिली वाले के बाजू म बइठ गिस। येकर मुड़ी अउ डेना मन म कत्थहूँ धारी बने रहय। प्रचलित विश्वाड़स अउ अनुभव के आधार म मोला चीन्हत देरी नइ लगिस कि ये ह नर पक्षी आय; पहिली वाले ह मादा पक्षी आय।
पहिली वाले ह येला कुछुच नइ करिस, बल्कि वोकर तीर म जाके आमने-सामने बइठ गे। थोड़ देर म दुनों झन चीं-चीं करत उड़ा गें। थोड़ देर बाद फेर आ गें। दिन भर वो दूनों झन अइसनेच मस्ती करिन।
दू-तीन दिन बीत गे। ये दूनों चिरई मन के धमाचौकड़ी चलतेच हे। अब ये मन के नीयत ह मोर खजाना ऊपर गड़ गे। किताब के अगल-बगल ऊँखर लुकाछिपी के खेल खेले बर बड़ जघा हे। ये सोंच के कि बिचारी पखेरू मन ल मोर किताब से का लेना देना, काला चोराहीं, आदमी थोड़े आवंय; मंय बेफिकर रेहेंव।
दूसर दिन बिहने देखथंव कि इही अलमिरा के खाल्हे फर्रस म अबड़ अकन कचरा बगरे परे हे। सियनहिन बर गुस्सा आ गे; घर के साफ-सफाई घला नइ कर सके? सियनहिन के धियान ह मोरे कोती रिहिस होही, मोर मन के बात ल ताड़ गे; मोर कुछू केहे के पहिलिच् कहिथे – ‘‘बहार-बहार के हम तो थर खा गेेन, बहारत देरी नहीं कि रोगही चिरई मन को जनी कतेक बेर फेर ला डरथें।’’
मोर बोलती बंद होगे। किताब मन डहर देखेंव; बीच म एक ठन सेंध म बड़ अकन पैरा अउ सुक्खा कांदी गोंजाय हे, चिरई मन बर महूँ ल बड़ गुस्सा आइस। खोंधरा बनाय बर इनला मोरे अलमिरा ह दिखिस होही? झरोखा मन म काँच लगे रहितिस त अइसन काबर होतिस? झरोखा मन कोती देखेंव, विही दुनों चिरई मन अपन-अपन चोंच म पेरा धर के डरे-सहमे बइठे रहँय अउ मोरे कोती देखत रहँय। मोर मन म का हे, मंय का कर सकथंव, ये बात ल वो मन समझ गे रिहिन होहीं?
बहरी-सूपा धर के मंय ऊँखर खोंधरा के सफाया करे बर भिड़ गेंव। तब तक वो दूनों अपन काम करके दूसर तिनका के जुगाड़ म चल देय रिहिन। जइसे मोर हाथ बढ़िस, दूनों झन आ धमकिन; सुरू हो गें चीं,चीं करे के। ऊँखर मन के विरोध के प्रबलता, आक्रोश अउ संकल्प ल देख के मंय चकित खा गेंव। डर गेंव, कहीं चोंच मत मार देंय।
चिरई मन ले डर गेस ते बहुत हो गे। महूँ ल जिद हो गे।
चिरई मन के विरोध अउ बढ़ गे।
मन म मंय केहेंव -’वाह रे पखेरू हो, तुमन धन्य हो; अइसन विरोध तो आदमी मन घला नइ कर सकंय।’
सियनहिन ह देखत रहय, कहिथे – ‘‘अब रहन देव; चिरई-चिरगुन के झाला उझारे म पाप लगथे। ठोनक-ठुनका दिहीं ते बाय हो जाही।’’
मंय सोचेंव, अभी रहन दे; जब ये मन नइ रहिहीं, सियानिन ह घला नइ रहिही तब देखे जाही।
ये घर ल बनाय बर जुन्ना घर ल जउन दिन तोड़वाय के षुरुआत करेंव तउन दिन के सुरता आ गे। खपरा छानी वाले जुन्ना घर के ओरछा मन म बाम्हन चिरई मन के खूब अकन ले खोंधरा रहय। कब वोमन खोंधरा बनावंय, कब गार पारंय (अंडा देवंय), अंडा ल कब सेवंय, कब फोरंय, कब पिला मन ल चारा बाटँय, पिला मन बड़े हो के कब उड़ा जावंय ये डहर ककरो ध्यान नइ रहय। कोनों ये मन ल कुछू नइ करे। जइसे कि ये मन हमर बँटइत होंय, वो घर म इंखरो बरोबर के हक रहय। अब नवा घर बन गे त ये मन अपन हक ल कइसे छोड़ दिहीं?
खपरा उतर गे, कोनों चिरई कोई आपत्ति नइ करिन। कांड़-कोरइ निकले के सुरू होइस, इंखर छाला-खोंधरा के नंबर लगिस, सुरू हो गे इंखर चींव-चाँव। कमइया मन के मुड़ी-मुड़ी म मदरस माखी कस मंडराय लगिन। कमइया मन डर्रा गें। एक झन बाई ह कहिथे – ‘‘टार दाई, रोगही मन ह मुड़िच मुड़ी म झूमत हें, ठोनक-ठुनका दिहीं ते जनम भर बर कनवी हो जाबों।’’
दूसर ह कहिथे – ‘‘बिचारी मन के घर ल उजारत हव, कइसे चुप रहिहीं? तुंहर घर ल कोनों उझारहीं तब तुंहला कइसे लागही?’’
हमर सियनहिन ह कहिथे – ‘‘इंखर गार पारे के दिन आय हे बहिनी हो, खोधरा मन ल जिती-तिती झन फेंकव; कोनों दूसर जघा थिरबहा लगा देव। आदमी होय कि पशु -पक्षी, महतारी ह महतारिच होथे। अपने सरीख यहू मन ल जानव।’’
सियनहिन के बात ह सहिच निकलिस। सब खोंधरा मन म गार माड़े रहय। कमइया बाई मन सियनहिन के बताय अनुसार सब के थिरबहा, जुगाड़ कर दिन।
ले दे के मामला ह सुलटिस।
अब तों घर ह पक्की बन गे। अपन हक ल भला कोई कइसे छोड़ दिही?
जभे मंय ह वो कर ले टरेंव, तभे इंखर वींव-चाँव ह बंद होइस।
दुसरइया दिन आठ-दस दिन बर मंय बाहिर चल देंव। ये मन ल अपन हिस्सा म काबिज होय के पूरा आजादी मिल गे। लहुट के आयेंव तब तक इंखरो गृह प्रवेश हो चुके रहय।
बिहिनिया देखेंव, अलमिरा के खाल्हे, फर्श म अबड़ अकन कागज के नान-नान कतरन बिगरे रहय। मोर माथा घूम गे। पता नहीं किताब मन के का हाल करे होहीं?
तीन-चार ठन किताब के किनारा मन आरी के दाँता कस दिखत रहय। मोर एड़ी के रिस ह तरवा म चढ़ गे – ‘रहव रे हरामखोर हो, मोर सबो किताब मन के सत्यानाश करे हव, अब मंय तुँहर सत्यानाश करिहंव।’
मंय पक्का ठान लेंव कि चाहे कुछू हो जाय, आज तो इंखर खोंधरा ल फेंक के रहिहंव। जइसने मंय खोंधरा डहर हाथ बढ़ायेंव चिरई मन चींव-चाँव करे के सुरू कर दिन। मोर हाथ ह आधच् बीच म ठोठक गे। आज चिरई मन मुड़ी के आस-पास नइ झूमत रहँय। झरोखा कोती देखेंव जिहाँ वोमन बइठे रहँय अउ फुदक-फुदक के चींव-चींव करत रहँय। आज ऊँखर स्वभाव म न तो वो दिन जइसे प्रबल विरोध के भाव रहय न वइसन आक्रामकता। बड़ा करलइ अकन ले चींव-चींव करत रहँय, जइसे कि कोई दूनों हाथ जोड़ के विनती करत होय, चिरौरी करत होय। मंय सोंच म पड़ गेंव; अब का करँव?
मातृत्व आय से ममता के संग विनम्रता घला आ जाथे।
सियनहिन ह रसोई घर ले निकलत रहय, मोला अलमिरा तीर खड़े देख के वो ह मोर इरादा ल भाँप गे। किहिस – ‘‘का करथव, गार पार डरे होहीं, रहन दव।’’
‘‘मोर पोथी पुरान( सियनहिन ह मोर लिखे-पढ़े के कापी-किताब मन ल पोथिच् पुरान कहिथे।) मन के का हालत करें हें तउन ल देखे हस? गजब मार उँखर सरोखा तीरत हस।’’
‘‘कोनों जीव ले बढ़ के हो गे हे का तुँहर पोथी-पुरान ह। तुँहरे पोथी-पुरान ले होथे का दुनिया के रचना ह?’’ आज वोला ज्ञान बघारे के अच्छा मौका मिल गे।
पल भर महूँ सोंच म पड़ गेंव। ज्ञान बघारे के बात? नहीं, नहीं ,येमा ज्ञान बघारे के का बात हे? व्यवहारिकता के बात हे, सच्चाई के बात हे, माँ के ममता के बात हे, प्रेम, करुणा अउ दया के बात हे, सृष्टि कर्ता के अनुभव के बात हे। नारी ह सृष्टि के रचना करथे। सृष्टि के बात ल सृष्टि के रचइयाच् ह जानही, नारिच् ह जनही; पुरूष ह का जानही?
पुरुश के ज्ञान म अहं के रूखापन रहिथे जबकि नारी के ज्ञान म करुणा के कोमलता।
सच हे, जेकर पास सृष्टि करे के ताकत नइ हे, वोला संहार करे के का अधिकार हे? संहार करे के मोर संकल्प अउ अहंकार ह पल भर म ठंडा पड़ गे।
मोर हृदय परिवर्तन ऊपर वो बाम्हन चिरई ल जइसे विश्वारस नइ होइस, डरे-सहमे दिन भर वो ह मोरेच् आस-पास मंडरावत रिहिस; जइसे वो ह मोर निगरानी करत होय। दुसरइया दिन घला वइसनेच् करिस। तिसइरया दिन वो ह खुलिस। झरोखा म अइठ के मुड़ी मटका-मटका मोर कोती देखय, चींव-चींव करय।
वोकर आँखी म बड़ा अबोधपन के भाव रहय, जइसे मोर प्रति कृतज्ञता जाहिर करत होय।
अब तो बाम्हन चिरई मन के अवइ-जवइ अउ चींव-चाँव करइ म मोला आनंद मिले लगिस।
अइसने अउ कुछ दिन बीतिस। एक दिन बिहने खोंधरा भीतर ले गज्जब अकन पातर-पातर चीं, चीं, के आवाज आवत रहय। सृष्टि के रचना पूरा हो गे रिहिस; कब होइस का पता, कोन ल पता? सृश्ट के रचना अइसनेच् होथे, धीरे-धीरे।
पिला मन के चींव-चींव ल सुन के मोला लगिस कि मोर आँगन म बच्चा मन के किलकारी गूँजत हे।
देखते देखत एक दिन बच्चा मन बड़े हो गिन। डैना मन म अतिक ताकत आ गिस कि शरीर ल हवा म साध सके, हवा के छाती ल चीर सके।
बिहान दिन ले खोंधरा ह सूना हो गे। दू दिन बाद जब मोला पूरा-पूरा परतीत हो गे कि अब बाम्हन चिरई के परिवार ह येला छोड़ के जा चुके हे, मंय ह आसते ले खोंधरा ल टमड़ के देखेंव। खोंधरा ह सचमुच खाली हो गे रहय। विरोध करइया घला कोनों नइ रिहिन। अब तो सूपा-बहरी धर के भिड़ गेंव मोर पोथी-पुरान के साफ-सफाई करे बर। सबले ऊपर वाले किताब म खूब अकन ले गंदगी पड़े रिहिस, साफ करे ले साफ हो गे, थोड़ कुन दाग ह बच गे। तीन चार ठन किताब जिंखर किनारा मन ल कुतर-कुतर के आरी के दाँत कस बना दे रिहिन हे, येकर अलावा अउ कोई नुकसान नइ करे रिहिन।
मोर अलमिरा ह अब साफ तो हो गे हे फेर घर ह बड़ सुन्ना-सुन्ना लगत हे।
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