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कविता

बिखरत हे मोर परिवार

ददा ला कहिबे, त दाई ला कहिथे
दाई ला कहिबे, त कका ला कहिथे
कका ला कहिबे, त काकी ला कहिथे

अब नई होवत हे निस्तार।
बिखरत हे मोर परिवार।।

गांव के जम्मां चऊंक चऊंक मा
चारी चुगली गोठियावत हे
देख ले दाई, देख ले ददा कहिके
जम्मों करा बतावत हे

सब्बों देखत हे संसार।
बिखरत हे मोर परिवार।।

एकठन चुल्हा रिहिस, एक ढन हड़िया
साग ऐके मा चुरत रहय
नई रिहिस काखरो संग झगड़ा
ये झगड़ा मा कोन बयरी के

नजर लगिस भरमार।
बिखरत हे मोर परिवार।।

Bhola Ram Sahu

 

 

 

 

भोलाराम साहू