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गोठ बात

बिचार : नैतिकता नंदावत हे




आज में ह बजार कोती जात रहेंव, त रसता म मोर पढ़ाय दू-झिन लईका मिलिस, वोमा के एक झिन लईका ह मोला कहिथे- अउ गुरूजी, का चलत हे ? त तूरते दूसर लईका कहिथे- अउ का चलही जी, फाग चलही| अतका कहिके दुनोंझिन हांसत हांसत भगागे, में ह तो ये सब ल देख-सुन के सन्न रहिगेंव, देख तो! ये लईका मन ल, गुरूजी ल घलो नइ घेपत हे, मोर करा ये हाल हे त दूसर करा अउ का नइ कहत-करत होही| एक हमर जमाना रहिसहे, जब गुरूजी ल दुरिहा ले आवत देखन त चुप्पे कोनो कोती लुका जन, नहिते दूसर गली म भाग जन, अब्बड़ डर लागय ग गुरूजी ले |देखते देखत अईसन बदलाव कईसे आगे, गुने ल परही|का ये बदलाव ह समय के मांग हरे, के का लईका मन भटकत जात हे |
बहुत सोंचे के बाद मोला तो एक्केठन बात ह समझ म आथे, वो हे- नैतिकता म गिरावट आ जाना| त ये नैतिकता म गिरावट ह कईसे अईस होही, ये बात म थोरकिन बिचार करे के जरूरत हे — लईका मन सबले जादा अपन समय ल अपन परवार म बिताथे, ओखर बाद ईस्कुल के नंबर आथे|आज परवार के रहन-सहन अउ बात-बेवहार म बिकास के सेती भारी बदलाव दिखथे, घर-घर म आज टेलीविजन पहुंच गेहे, जेमा रोज पस्चिमी-कचरा परोसे जात हे,जेमा सिरियल,कारटून, फिलिम,बिग्यापन परमुख हे, समाचार घलो म हत्या, अपराध, बलत्कार जइसे नकारात्मर खबर जादा रहिथे, जे ह हमर धरम-बेवहार अउ संस्कृति ल बड़ नकसान पहुंचावत हे|वईसने आज हर हांथ म मोबाईल पहुंच गेहे, जेमा आनी बानी के संदेस भेजे अउ पढ़े जात हे, जईसे हलो, हाय,कोनो रिस्ता ल आहत करत चुटकूला अउ मजाक, अलकरहा मजाक| ये सब आम बात होगे हे, नेट के महिमा तो अउ बड़ भारी हे, ये सब ह हमर बेवहार-संस्कार अउ संस्कृति ल बड़ नकसान पहुंचावत हे|
ईस्कुल म घलो अभी सिक्छा के अधिकार आय हे, जेमा नवाचार करे जात हे के लईका मन ल बिना डर भय के खेल-खेल म सिक्छा देना हे, एखर पाछू तरक ये दे गेहे के लईका मन खेलत खेलत हुदुक ले सीख जथे, त गुरूजी मन घलो लईका बन के लईका संग खेलत हे, ये बिधि ह सीखे सीखायबर तो बहुत अच्छा हे, फेर अनुसासन ल बिलकुल खतम कर देहे, लईका मन अब गुरूजी ल नइ घेपत हे, घेक्खर बन गेहे, गुरूजी जघा कांही भी बोल देथे, जेखर बानगी ह ये लेख के सुरूवात म दिखे हे|
परवार अउ ईस्कुल दुनो जघा हमर बिचार-बेवहार म पहिली ले बड़ फरक आय हे, जेखर नकसान हमर परवार, समाज अउ देस ल होवत हे, इही नैतिकता हरे जेखर सेती हमर देस ह बड़ अकन जाति धरम के लोगन संग एक सूत म बंधे हाबय, इही नैतिकता हरे जेखर ले हमन उमर, पद अउ नाव के के हिसाब से अपन बेवहार ल निभाथन, इही नैतिकता हरे जेखर सेती पुरा दुनिया के महामानुस मन हमर देस के संस्कृति के अब्बड़ बड़ई करथे| मोला लागत हे के हमर एकता के ये सूत ल टोरे खातिर हमर संस्कृति ल छोटे समझईया ये पस्चिमी सोंच के लोगन मन आधुनिकता के आड़ म हमन ल चौंधिया के हमर एकता रूपी पेड़ के जर ले जुरे नैतिकता के माटी ल बड़ जोर लगा के खिसकावत हे| जेखर असर हमर लईका मन के चाल ढाल म दिखत हे| आज लईका मन बड़े मन ल घेपय नहीं, पांव परेबर कहिबे त आनाकानी करथे, उंकर बेवहार म अभद्रता, गाली-गलौच ह आम बात होगे हे| आज बड़े मन घलो एखर कू-परभाव म फंसत जात हे, जे खातिर आज परवार अउ समाज म बिखराव, धरम के पाछु झगरा, बाल सुधार घर, बुढ़वा आश्रम मन बाढ़त जात हे|
आज ये नैतिकता अउ नैतिक सिक्छा के बारे म गंभीरता ले धियान दे के जरूरत हे, यदि लईका मन जेमन हमर देस के अवईया करनधार ये एखर सिक्छा-दिक्छा के खातिर हमर अईसनहे लापरवाही चलत रईही त ये मन अउ जादा ढिल्ला हो जही, जेखर ले हमन ल पाछू बड़ पछताय ल परही| त आप मन ले मोर बिनती हे के यदि हमला हमर भविस्य ल सुघ्घर गढ़ना हे त परवार अउ ईस्कुल दुनो जघा नैतिक सिक्छा ल बढ़ावा दे बर सरकार जघा अपन अवाज ल पहुंचाय ल परही, अउ घर म लईका मन का करत हे, टेलीबिजन म का देखत हे, मोबाईल म का करत हे एमा घलो परवार के बड़े मन ल सावचेत रहे ल परही, संगेसंग ईस्कुल कोती चलत सिक्छा के अधिकार कान्हून म घलो सुधार करवाय ल परही, काबर के अनुसासन मुक्त वातावरन ह लईका का कोनो ल भी उच्छृंखल बना देथे| लईका बिगड़गे, तहां ले हमर भविस्य घलो बिगड़गे |

ललित वर्मा”अंतर्जश्न”
छुरा