Categories
व्यंग्य

बियंग : पारसद ला फदल्लाराम के फोन

जय हो छत्तीसगढ़ महतारी। हम गरीब मन ऊपर तोर अइसने छइंहा रहय दाई। हमर छत्तीसगढ़ के गरीब मन अइसे-वइसे नो हंय पारसद जी। वो मन उसना चाउंर ल उहुंचे कंट्रोल वाले ल बेच देथे। कन्ट्रोल मालिक के घलो पौ बारा।

हां हलो… कोन… पारसद जी? हां, मैं फदल्ला राम बोलत हों। अरे नहीं… जदल्ला राम नहीं, फदल्लाराम बोलत हों-फदल्लाराम। का करवं पारसद जी। दाई-ददा मन तो बने ‘गनेस’ नाम राखे रहिन हें। फेर मैं थोरिक मोटा का गेंव, मोर नाम फदल्लाराम धरागे। अब मोर जुन्ना नाम हर तोपागे। अब ‘गनेस’ कोनो नई कहंय- हां कभू-कभू एकाक झन मन ‘गोबर-गनेस’ जरूर कहि देथें। का करबे? सब गनेस जी के किरपा ताय…।
तुंहरो भारी किरपा हे मोर ऊपर पारसद साहेब। तुंहर परसादे सब चकाचक हे। दाई ला वृध्दावस्था पेंसन मिलत हे। मोर सुवारी ला ‘निराश्रित’ मिलत हे। मोर बहुरिया मन ला तको लइका-बियाय वाले पेंसन मिलत हे। काला बताववं? तुंहर परतापे गजब हे। मोर परोसिन पुन्नी बाई हर ‘डेलीबेजज’ मा नौकरी करथे, तीन हजार पाथे, बड़े जन परवार हे। फेर सरकारी नौकरी वाला आय कहिके ओकर गरीबी रेखा वाले कारट नई बनीस। महूं सरकारी नौकरी ले रिटायेर होके आठ हजार पेंसन झोंकत हाें। फेर तुंहर किरपा ले मोर बाई अऊ बड़का टूरा के नाम से मोर घर दू-दू ठन गरीबी रेखा कारट रखाय हे। कोई बात के कमी नई हे।
रिटायेर होय के पहिलीच ऊपरी कमई के माथे दू मंजला ठांस डारे रहेंव। घर मा ईस्कूटर हे, फटफटी हे, कूलर हे, फिरीज हे, दू ठन टीबी अऊ चार ठन मोबाइल हे। कोई कमी नई हे। मोर बाई हर महिना-गनिया गरीबी रेखा के सत्तर किलो अनाज उठाथे अऊ रिक्सा मा जोर के राशन दुकान ले जाथे। उहां ले बल्दा मा एचएमटी चाउर उठा के ले लानथे। हां, सब बढ़िया हे। चकाचक हे। हरि भजन करत बुढ़ापा आराम से बीतत हे।
हां… हां… का बताववं पारसद साहेब। पाछू बखत जब भिथिया-भिथिया मन मा गरीबी रेखा वाले मन के जानकारी लिखे के हुकुम अईस त तैं मैं सटपटा गे रहैं। फेर धन्न भगवान के किरपा। गांव-गांव मा तो भिथिया मन मा लिखीन अऊ हमर सहर हर बांच गे। सहर का बांच गे, मोर नाक बांच गे।
सरकार के घलो बड़ किरपा हे हमर ऊपर। जब वोहर गरीबी रेखा कारट के उत्ता-धुर्रा जांच करवइस तब पहिलीच ले बता दे रहीस हे के- ‘यदि घर म एक फटफटी, टीबी, फ्रिज, मोबाइल हो जाय तो उसके कारट को रद्द मत करना। क्योंकि आजकल का जरूरी जिनीस है ये सबके पास रहता है।’ मैं गदगदा के खुस हो गेंव पारसद जी। गऊ, ईमान से दाई कीरिया! देखौ तो हमर छत्तीसगढ़ कतेक झटकुन तरक्की कर डारीस। इहां के गरीबी रेखा के भीतरी जीअइया मनखे मन करा घलो फ्रिज, कूलर हावय। जय हो छत्तीसगढ़ महतारी। हम गरीब मन ऊपर तोर अइसने छइंहा रहय दाई। हमर छत्तीसगढ़ के गरीब मन अइसे-वइसे नो हंय पारसद जी। वो मन उसना चाउंर ला उहुंचे कंट्रोल वाले ला बेच देथे। कन्ट्रोल मालिक के घलो ‘पौबारा’ हे। सब खावै सब खुस रहंय सब के कल्यान हो, कोई दु:ख के भागी झन हो जय हो।
पारसद जी! जग जानत हे। छत्तीसगढ़ के बासिन्दा संतोषी जीव होथे। जब तक ओकर करा, पैंतीस किलो चाऊंर रही, ओहर काम-बूता मा नई जावै। थोर-थार ला बेंच के पउआ के जुगाड़ घलो कर डारथे, अउ कहूं कोनो काम-बूता बर कहि पारही तब ओकर अंटियई ला देख तैं। छत्तीसगढ़ के सभिमान जागत हे पारसद जी।
अउ जादा का गोठियाबो। जांच मा मोर दूनो कारट तुंहर किरपा ले रद्द होत-होत बाहंचीस। एकर फल हम जरूर चुकाबो। अवइया चुनई मा हम फेर तुंहर खातिर अपन लहू गार देबो। लेव राखत हों, जय जोहार।

के.के.चौबे
गयानगर दुर्ग