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व्यंग्य

बियंग : बिहतरा बाजा अउ बजनिया

बीच दुआरी म ठाढ़े बजनिया मन के बाजा के सुर लागे राहे। उंखर पोसाक ह देखेच के लाइक राहै। कोन्हों हर हाफ पैंठ पहिरे राहे त कोन्हों ह फुल पैंठ। कोन्हों कुरता त कोन्हों सेंडो। एक झन के पैंठ के पाछू कथरी सूत के टांका ल देख के अइसे लागै जइसे अभीच-अभी मरीज ल ‘आपरेशन थियेटर’ ले निकाले हावे।
बिहतरा सीजन म बाजा ले जादा बजनिया के भाव बाढ़े रथे अउ बाजा बिना बिहाव म मजा आय घला नहीं। सबो के सउंख उमियाह रथे बाजा बर। बिहाव म होइस बाजा, माने का लइका, का बुढ़वा ह ताजा। बिहाव के जम्मो तियारी कर डारे राहौं। ताड़ रूख सही बाजा के उंचहा दाम दिमाक म टंगाय राहै। सोंचेंव- ‘टार साले ला बाजा-वाजा नई लगाना हे। अल्करहा कीमत हे।’ मोर सोंच के तार ह मस्टरीन ल छुवागे। मारिस करेंट सांय ले तोला कुछु लागथे के नी लागे। बेटा के बिहाव करत हस, अउ बाजा ल डेर्राथस। पहिली बिहाव ए अउ हमर एक झन बेटा। कहुं पांच-छै झन लइका रहितस ते कोनजनी कइसे करतेस ते। आजे जा अउ लगा बने असन बाजा। वोखर बम असन गोठ फुटिस ते मोर मुंहु नवां सरकारी पुल कस फरागे। डेरी हांथ के बीच अउ डुरी अंगरी म चपकाय बिड़ी ह डर के मारे भुंइया म कूद दीस। अब कुछु कहई, माने खतरा से खाली नइ हे बिचारत बाजा लगाय बर निकलेंव।
चैतू घर गेंव। चैतू नइ राहै। ‘आवव, बइठव काहत वोखर गोसइन ह पीढ़ा ल मोर कोती पेलीस- ‘का बुता रिहिस का हौ?’ ‘बुता तो नइ हे, अउ बड़ेजन बुता घला हे ओ बहुरिया।’ मुसुवा कतरे कोहड़ा नार कस अइलाय अपन चेहरा ल वोखर डहर करेंव- ‘सुने हंव के तुंहर घर के टुरा अउ कोन-कोन टुरा मन बाजा बजाथे कथे। गोठियाय रंतेव के हमर घर कतेक म बजा ही ते।’ वोतका टेम बजनिया टुरा मन घला आगे।
‘कइसे बजाहू नहीं जी। हमर बिहाव मा अउ बताव कतेक म बजाहू ते।’ पीढ़ा ल मुक्ति देवत खुरसी कोती सोझियायेंव। मोल भाव सुरू होईस। बाजा के मोलियावत ले मोर कारी पछिना छूटगे। देसहा बछुवा असन नान-नान नवछंटहा टुरामन मोला बाजा के मोल भाव म भारी केंदरइस। घर आ के बाजा लगाय के रिपोर्ट मस्टरीन ल संउपेंव।
बिहाव माड़गे। मस्टरीन अउ मोर बियस्तता बाढ़गे। चुलमाटी के दिन संझाकुन बजनिया मन के दउहा नइ राहै। घर भर के मन अबक आही तबक आही कहिके देखत राहै बजनिया मन ला। बेर के तोपाय ले सबोझन पहुंचीन। सुवासिन के पद सम्हाले मोर बहिनी हर आतेभार जोहारिस- ‘कस रे बजनिया टुरा हो, तुमन काकर-काकर घर के हरौ रे। घात बेर लगायेंव। ले अब चलव जल्दी चुलमाटी।’ बखरी जावत बजनिया मन ले सुनेंव- ‘कइसे हे ये मन यार, आय हन ते चाहा पानी बर तको नी पूछै। गुरुजी तो कभू नी जानै बिड़ी माखुर के लेवई-देवई ला, ये मनु भइया ल समझना चाही, फोकट म भउजी पाही तइसे लागथे।’ इंखर गोठ ल सुनेंव तभो ले कान ल बोजेंव। ले चलव बेटा हो चुलमाटी काहत एक कट्टा बिड़ी अउ माचिस थमायेंव। बड़ा मुस्किल म बाजा पाये राहौं। मांहगा ले मांहगा। डर राहे के ये मन बिहाव ल निपटाही के नई निपटाही। बीचे मा छोड़ दिही का कहिके घबरायेंव। ले बेटा हो, बेटा, बेटा काहंव। का करिबे गदहा ल कका कहई होय राहै। तियार होइन। दफड़ा बजइया टुरा ह डेरी खांद म दफड़ा ल अरझाइस। गुदुम अउ दमऊ ह कनिया म झूलिन तासक ह एकझन के नरी म टंगईस। गोला मन हालिन। मोहरी घला फूंकइस। दंग-दंग दधड़ंग दडांग दंग दधड़ंग करत बाजा चुलमाटी निकलीस।
चुलमाटी ले आते भार माधुरी नाम के मोर सारी हर कान कवच म ताना के आर-पार तीर छोंड़िस- ‘का भांटो, इही ल बाजा लगाये हस। रंग न ढंग, दधड़ंग दधडंग़। फटर-फटर। दनादन मारत रिहिन, रीसहा डउका ह अपन कुटलाही डउकी ल मारथे तइसे।’
‘नहीं माधुरी ते कइसे गोठियाथस’ कलेचुप ओंठ ल हलायेंव- ‘ये डाहर के बड़ा नामी, बड़ा ऊंचहा कीमत के बाजा ए।’ मोर इसारा ले नान्हें भाई ह बजनिया मन ला खाये बर बइठारिस। टाटपट्टी म बइठत मोंहरिया ह कइथे- ‘चलव बइठव रे। बने खाहू दबाके। हमर बाजार बुकिंग बिहाव के होवत ले। हमूमन बुकिंग। हमर खवई-पिअई सब बुकिंग।’ नान-नान डोंहरू फुटु असन टेपर्रा बजनिया मन के पतरी-पतरी खवई ल देख के मुंहु ल फार देंव।
तेल चघनी के दिन बजनिया मन गदहा के सींग सहीं गायब होगे। बेटी-माई मन बिना बाजा के तेल चघाय बर तियार नइ होवयं। मस्टरीन ह मोला बिच के भन्नाये भइंस्सा सांही कन्नेखी देखै। ‘अहा का बाजा दई, नेंग-जोंग के बेरा नी जानै। फोकट म माहंगा हे। खाये बर टेंक दिही। भतखया बजनिया ए तइसे लागथै।’ मड़वा मं माइलोगन मन के गोंठ मातगे। मोर सारी मन मोर बर बानी लगा दे राहै। चिथो-चिथो करै मोला। रंग-रंग के गोठ ल सुन के मोला बाजा लगा के बड़े जन अपराध कर परे हंव तइसे लागै। सरकी म सबो खपलाय बाजा मन ल देख के अइसे लागै जइसे कोरा के लइका ल दूध पिया के कलेचुप महतारी ह थपकी दे के सुताय रथै। माधुरी ह राहा तो भांटो के लगाय मोंहरी ह कइसे बाजथे, काहत मोंहरी ल फूंकिस। कइथे- ‘बने बाजे तको नहीं। जइसने हमर भांटो तइसने वोकर लगाय मोंहरी। ओंर्र-ओंर्र करत हे। भांटो के सेती येखर नरी भसिया गे हे।’ चुमकही गोंठ ले हरिहर मड़वा म हा… हा… हा… भरगे। का करबे मोरो ही… ही… छूटगे।
तेल चघई बिन बाजा के निपटीस। मैन नाचा के समे मोर सुवासिन बहिनी ह बजनिया मन ल खोज डारिस। इंखर मैन नाचा के तियारी होगे। बजनिया मन एकदम तइयार, अउ बाजा मन घला होगे हुसियार। हरिहर मंड़वा पींवरागे, भुइंया घला हरदागे। दोहा अउ भड़वनी गीत ले माइक ह तको आज धन्य होगे। बजनिया मन ल का पूछबे। गुदुम बजइया ल देखके मोला लाठी चार्ज करत पुलिस के सुरता आगे। दफड़हा हर अल्करहा मुहुं ल फार के चिल्लाय। बाजा ले जादा अपने ह बाजै। दमऊ वाले ह बाजा के चमड़ी हिस्सा ल छोंड़के हंड़िया ल मारै। तासक वाले ल काकरो ले कोई मतलब नई राहै। वो ह भेंड़ कस मुड़ी ल गड़ियाय बजात राहै। सुर, ताल, लय सब छू मंतर। मोंहरिया ल कोन ह गीत गावत हे, कोन दोहा पारत हे, वोला कोई मतलब नई राहै। बस वोकर मोंहरी म समाय राहै- ‘बाजा वाले ला डउका कबे तभे तो बाजा पाबे रे…’ दफड़हा ह बठेना ल उलटा धरे बजात-बजात कूदत राहै। मोट्ठा गठन हा बठैना ले दफड़ा दंदरगे। बठेना ह दफड़ा के आर-पार भुलक दीस। दफड़ा ल देख के दमऊ के घला जी छूटगे, तासक वाले ह दुआर मं उलंड गे। गुदुम वाला ह बजात-बजात जोर दरहा एक बठेना अपन जांघ ला मार परीस। कंझा के बइठगे। मोंहरिया के ललिअहा आंखी ल नान-नान होवत देख के वोकर सुर के बेसुर ओ… ओं… करत मोंहरी ल बंद करायेंव। बाजा अउ रेडयो चुम्मुक ले बंद होइस। मोर मन ले निकलीस- ‘वा रे बिहतरा बाजा अउ बजनिया अउ मोर मस्टरीन के संउख। ताहन एक झन मोर सारी ल फेर मउका मिलगे- ‘ये ला कथय भांटो बिहाव के बाजा। अउ ये आय मैन नचई। अभी लागेस हमर नगदी भांटो असन’ काहत फुटहा दमऊ ल मोर नरी मं अरोदीस। थोरिक देर बाद पता चलिस की मैन नचई के एक घडी पहिली बजनिया मन मनु के मंद पिये बर पांच सौ रुपिया मांगे रिहिन।’
बरात निकले के टेम बजनिया मन अपन-अपन बाजा ल धरे सरग ले उतरे देंवता मन बरोबर मंड़वा म परगट होइन। बरतिया जाय के तियारी करत राहयं। मस्टरीन ह मनु के मंउर सोंपत राहै। बीच दुआरी म ठाढ़े बजनिया मन के बाजा के सुर लागे राहे। उंखर पोसाक ह देखेच के लाइक राहै। कोन्हों हर हाफ पैंठ पहिरे राहे त कोन्हों ह फुल पैंठ। कोन्हों कुरता त कोन्हों सेंडो। एक झन के पैंठ के पाछू कथरी सूत के टांका ल देख के अइसे लागै जइसे अभीच-अभी मरीज ल आपरेशन थियेटर ले निकाले हावे। मुसुवा कलर टोपी। बिलवा रंग के गमछा। लाल-पीला टी सर्ट। आंखी म करिया-करिया चस्मा पहिरे टूरा मन के बइला-पूछी के मेच्छा कस देख के मोला भगवान कैलासपति महादेव के बरतिया सांही लागय। बरात निकलीस। मोटर मेर पहुंचीन ताहन बजनिया मन दोर-दोर ले मोटर म बइठ गें। अपन-अपन बाजा ल धरे लइकोरी मन बरोबर सीट पोगरा डरीन। खिड़की के कंाच खुलगे। खिसा म गुटका-पउच झांकिन।
बरात रात के पाहती पहुंचीस। बजनिया मन उतरीन। धुर्रा म बोथ्थागे राहैं। चुंदी-मुड़ी के ठिकाना नइ राहै। रक्सा असन दिंखत राहैं। फेर बड़ा हुसियार सगामन (वधु पक्ष) जल्दी चाहा-पानी के बेवस्था करहीं कहिके दनादन बाजा ल ठोंकिन। उंखर हुसियारी तब सत प्रतिसत पक्का लागिस जब बाजा के आरो पा के सगा मन दू गघरा पानी बर तरी बरतिया ठउर म मढ़ादीन। गंजी भर तात-तात चाहा पहुंचगे। दू-दू, तीन-कप ढरकइन। कोपरा म माढ़े पलेट-पलेट भर नास्ता बजनिया मन करा पहुंचते भार सहीद होगे। परघवनी के तियारी होइस। परघवनी होवत राहे। बाजा बाजत राहे। बरात जेवनास घर म पहुंचीस। खवई के बेवस्था होइस। खा-पी के उठेन। एक झन माईलोगन पतरी उठावत कुरबुरइस। ‘अहा का बरतिया ये दाई, ये बजनिया मन के करनी हरे। दोंदर भर खाले हें। दूसरइया अउ तीसरइया। बेंदरा-भालू असन उदबिरीस करे हें।’ झांकेंव- लाड़ू च आधा-आधा खा के खपल दे राहैं। बरा ल दांत म चाब-चाब के अंगरेजी ई, बी, ओ, एल बना के ओरी ओर जमाय राहें। अम्मारी भाजी ल गिलास भर पानी म घोंर दे राहें। जिर्राझुरका ले भुइंया म ‘मोर समधीन’ लिखे राहे। महीं म चुरे कोहंड़ा ल आलू-भांटा म लदक दे राहै। मने मन मुस्कात राहाैं। फेर देखेंव की काड़ी निकाले पतरी ले उचात खानी जुठा हा छर-छर ले भुइंया म गिरीस। ‘वाहे रे बजनिया हो।’
संझाकुन टिकावन बइठीस। बजनिया मन फेर गायब। समधी आ के कथे- ‘कहां हे समधी बजनिया मन हा। बजातीन ते अवाज सुन के गांव वाले मन आतिन टिके बर।’ समधी के गोठ ल सुन के मोर मुंह हा बंधागे। कुछु कहूं काहते रहेंव तइसने मा एकझन घरतिया ह कथे- ‘अरे बजनिया मन ल झन पूंछ। बउरागे हे ओमन हा। भारी लाहौ लेवत हें। खा पी के गली-गली गांडा के कुकुर कस घूमत हें। सोंप-सुपाड़ी ल चना असन खाथें। बिड़ी-सिगरेट के धुर्रा बिगाड दे हें।’ वोकर कुछु अउ कहे के पहिली ले कहेंव- ‘अब कइसे करबे सगा। बरतिया अउ बजनिया मन के इहीं रेंवा-टेंवा होबे करथे। अब जइसे भी हो निपटन दें। जेवनास जा के देखेंव एक ठन चेपटी सीसी ह उंडे उल्दात राहे, कुरिया बस्सात राहे। जरहा बिड़ी ह परे राहे, दरी ह बड़जन जरे राहे। बाजा मन खपलाय राहें, वोखर उर मांछी सकलाय राहै। बजनिया मन मुंह फारे सुते राहें, हद होगे साले हा दफड़हा ल देख परेंव। दमऊ वाले ह भीतरी म खुसरे राहे, अउ बरा-बरा खा के उच्छरे राहे। महिसासुर वध असन दृस्य ल देख के कुरिया ले निकलेंव। दुवार के दोल्गा खटिया म लस ले माढेंव। तइसने मा ‘हमर समधी ह बाजा लाने हे बाजा लाने हे बाजा म घलोक नइ साख… सगा के बाजा म नइ हे साख… बोंय-बोंय करत पोंगा रेडियो ह मोर जरे म नून डारत राहै। हुरहा मस्टरीन के सुरता आइस- ‘आगी लगे मधुर बाजा के तोर सऊंख।’
टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’

(देशबंधु आरकाईव से साभार)

One reply on “बियंग : बिहतरा बाजा अउ बजनिया”

पढ़ के हमर छत्तीसगढ़िया बिहाव के गजब आनंद आइस, फेर भइया अब तो अइसन बाजा-गाजा मन नंदा गे हें। अब तो धुमाल अउ बैंडबाजा के जमाना आ गे हे।

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