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व्यंग्य

भईसा गाड़ा के चलान

संगवारी हो चलान सबद सुन के कतकोन मनखे मन के जीव हर कांपे लागथे। फेर वाह रे, आर.टी.ओ. ऑफिस (रोगहा टेसिहा ऑफिस) तोर तो न शुरु, न अन्त हे, तोर महिमा बड़ अनन्त हे। नानपन ले बडक़ापन अऊ सरी उम्मर मोटर, फटफटी चलावत आत हन, फेर कोनहो टिरेफिक के सादा झबरू टामी मन, आज ले एको घव हमला नई भूके हे। उनला झोरफा चऊक, रेलवे फाटक अऊ सिविक सेंटर के चउपाटी मा देखते भार, एकंगू भाग जथन, साला मन के छईहां घलो धुर्र छईहां होथय। न संगी बने, न मतंगी बने। कलेचुप खिसकऊ हर सोला आना सच अऊ एकदम सच, मां कसम। पऊर-परिहार एक ठिन कवि- सम्मेलन मा शर्मा दीदी संग संघर गेन। बने- बने कार्यक्रम के सफलता बर बड़ बधई दिन अऊ कही परिस, कांही कुछु काम-बूता होही, रे बाबू त दुरग के आर.टी.ओ. मा आ जहुं। हमूं साध मरेन उहां जब सउहत बडक़ा दीदी हावयत फेर का के डर रे भई।
एक दिन पुछत-पाछत मसक देव। उप्पर कोती दूई मंजला मा दीदी चार-छई झन नावां- नावां टुरेलहा एजेनट मन के घेराबंदी मं घेराय राहय। मोला देखते भार एक झिन लफनटूस ला चेचकार के उचइस अऊ मोला बड़ सम्मान मा बइठइस अऊ पुछिस सब बने-बने जी रसिक भाई। बहु रानी कइसे हे, दुलरवां रस बेटा कइसे हे, अभ तो ठीक-ठाक रेंगत होही? मेहा मूड़ी हलावत हव केहेव। फेर दूई पत्ता के फारमेट कागद ला देवत रेहेव। त दादी कहिस, उही खाल्हे तीरमा, चलान रसिद कटा लेतेस भाई। पाछु मोर तीर होही काम हर। मेहा तुरंते तीस के फीस पटाऐव अऊ फेर दमक गेव उही केबिन मा। बइठ ऐमन ला थोरिक निपटा लव, ताहन तोर काम तो तुरंते करवा देथव। एक झन मुड़वा टुका ला कागद दिस अऊ उप्पर मा शर्मा मेडम लिखदिस। त का पुछेस, तुरंते हवई जिहाद अऊ जेट विमान कस-कागद उप्पर ले खाल्हे उतर गय। काली आबे कहिके पावती घलो थमादिस। फेर वाह रे काली। कालीच होगय, पन्दराही अऊ तीन महिना मा लट्टो-पट्टो लरनिंग लाइसेंस मिलिस।
फेर उही चक्कर तीन सौ रुपया के चलान पटा त पक्का लाइसेंस बनही। फेर उही बाबू, उही चपरासी अऊ…। सफ्ता होत भार फेर अवई-जवई मं माथा तीप गय। कोनहो बने जवाब देय, न बने ढंग ले सुनय। कइसे विचित्र माया नगरी हे भगवान। सब भोला भंडारी भरोसा चलत हावय। अपने एजेनट, अपने हिसाब, अपनेच बाबू। पइसा फेक अऊ तमासा देख। तेखर ले त पलटूराम ला एक हजार थमा दे, पनदराही मां तोला गांव भर किंजरत खोजके तोर हाथ मा, सिद्धो मा धराही।
अपन ले बांचे त बाइजी के बॉय हमा गय। मार फूहरे लागिस, अपन भर के सनसों हे, चक ले नवां लाइसेंस बनवा डारिस। हम चाहे झपावत राहन, का करना हे कोनो ला। हमर मइके मा रहितेन ते, आज ले हमर भाई मन कतकोन ठन लाइसेंस बनवा के कुड़हो देतिस। फेर एक झन ला तो निसाख नई परय। मेहा केहेव-देख बाई मोर गोड़ के रिस ला तरवा मा झन चढा। पलटू ला दे देबोन, ताहन बनगे लाइसेंस। काबर फिकर करथस, थोरिक दिन के बात है। वाह, लबरा पलटू के का भरोसा, दरवाहा-मंदू के गोठ-बात मा कोन हो बिसवास होथय तोला। भइगे तीन सौ मा बनवाबोन जाने। फेर चलान पटा लरनिंग होगय, त पक्का बर पटा। अब ऐ दरी नावां चोचला उगय, आर.टी.ओ मा बडक़ा साहब जगा दस्तखत करवाना हे। मेहा कलेचुप कांच के बेस ला पोन्डा करत, भीतरी मं नीग गेव, त भईका तमासा हे, बडक़ा साहब ह सीजर पीयत हे, बाबू हर ओखर कान मं मंतर फूंकत हे अऊ ऐजेनट रोगहा हर, ओखर सील-पेड ला अपन चालीस-पचास छनन तथी कागद मा धकाधक चलावत हे।
मेहा केहेव, साहेब ऐ पक्की लाइसेंस बनाना हे, साहब किथे- काखर आय, तोर ऐ का। मेहा केहेव-हमर बाई जी के, बना देव साहब, एके झन बाई ताय। सबके कतका-कतका होथय?
सबके ला नई जानव साहब। तुम्हारी पत्नी कहां है? ओत नई आय हे साहब। कहीं भी हो, चार बजे तक लेकर आवो। ताहन, हम तुरंते बना देथन। तुरंते बाई जी ला, लइकोरही हे त ले, लेगेव अऊ साहेब के आगू मा दस्तखत करवायेव। ताहन, हफ्ता मा लेग जाना कहिदिस। हमन बड़ खुशी मा घर कोति लहुटेन, ऐ दरी जुगाड़ लग गे साले हर। हफ्ता बीते ले हफरई चालू, बड़े बाबू फेर कम्प्युटर खोली महीना बितिस आचार संहिता लागू होगय। ताहन टॉय-टॉय फिस कही के हमन ला, उही तीर रपका दीस। अऊ बीच चउक मा
मालवी नगर के पुलिया मा, कार ले उतर के बड़े साहेब मार उत्ता-धुर्रा दस्तखत मारे उप्पर मारत हे। काबर कि पाछु मा करिया बेग वाला ऐजेनट हर बजन धरे कलेचुप खड़े हे।
आर.टी.ओ. के कलहा कटिस कहिके, भरपेटहा सलगा बरा के अमचूर हा कढ़ही मा मन माढत, मंझनिया बेर ढरकात रेहेव। ततके बेर हमर सारा टूरा के फोन घनघनईस, भांटो तेहां कहां हस? तुरंते आर.टी.ओ. मा पहुंचे तो। हम केहेन, ऐ तो मरी मसान कस साले हर पाछूच पर गेहे। न दिन के अराम, न रतिहा चेन हे। तुमन ला केहेव सेलूद मंडी मा धान ला बेच डारव, फेर काय बुगा गाथे हे, दुरुग गंज मंडी मा। गय त बने करेस फेर भईसा मन ला बने बांधे रहितेव। का करबे भांटो, ऐ दे मंझनिया के बेरा ममा घर पोलसाय पारा म आजी दाई संग भेट करले तेन अऊ जेवन जे लेतेन कहि के दस मिनट बर रेंगेव। फेर ऐ भईसा गतर के मन छांदे गोड़ मा कुदत-कुदत इंदिरा मारकेट कोति मसक दिस। अऊ टरेफिक वाला सिपाही ल बीच सडक़ मं ठाड़हे देखिस त उठा के कचार दीस। ताहन होगे न आये के बाये। चरवाहा टूरा कइसे करत रिहिस, बने छेकतिस नई। बहू हर थोरिक भजिया अऊ चाहा के चक्कर मा बासा कोति रेंग दे रिहिस। पुलिस वाला मन दस चक्का के धारा लगा दे रिहिस हावस। दू भईसा के आठ गोठ अउ गाड़ा के दू गोड़ होइस न दस चक्का।
राजाराम रसिक

रसिक वाटिका, फेस 3, वी.आई.पी.नगर, रिसाली, भिलाई. मो. 09329364014