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व्यंग्य

बियंग ( संदर्भ – घेरी बेरी होवत किसान मन के मौत ) : बिसेला कोन

GG Mini Logoदेस ल अजादी मिले कुछेच बछर पाछू के बात आय । एक गांव म , एक किसान , उदुप ले , बिन कोन्हो बीमारी के , दुनिया ले चल दिस । काबर मरिस ? कोन्हो ल खोज खबर करे के जरूरत अऊ फुरसत दूनों , नि रिहीस । दू चार झिन कारन खोजे के परयास करिन , तेमन ल सिरिफ झिड़की मिलीस । ओकर चिट्ठी चिरा गिस – तेकर सेती मर गिस होही , कहिके चुप करा दिन । समे बीतत अइसन घटना के बाढ़ आगिस । सरकार करा , कुछ मन ये खबर ल अमरईन । नावा नवा बने सरकार लबारी थोरे मारही , वोमन , लोगन ल बतईस – किसान मजदूर मनखे के उदुप ले मरई ह , सांप चाबे के सेती होवत हे । लोगन ल चेतइस – खेत – खलिहान , बारी – बखरी जंगल – झाड़ी म चेत लगा के जावव , जरूरी हे तभे जावव । कतको बछर नहाक गे , फेर गरीब किसान मनखे ल कहां ओतेक चेत । चेत के चक्कर म , जेकर बूती जिनगी चलत हे , तेला थोरे छोर दिही । मनखे ल बरजे के , जम्मो उपाय फेल होगे , त सरकार कानून बनाए बर मजबूर होगिस – अउ , खेत खार जंगली भुंईया ल , फेक्टरी मालिक मन ल बांटे लागिस , किसान मजदूर बिरोध करीन , त ओमन ल बताय गिस कि तुंहर परान ल बचाये बर , सांप के भुंईया ल देवत हाबन , येमे तुंहर कोन्हो नकसान नईये । एकर बावजूद , परान हराये के संखिया नि कमतिअईस ।
सरकार के संगवारी मन , सांप ल मरवाये के सलाह दीन । देखते – देखत सांप के संखिया घटे लागिस । सांप समाज ल चिंता होइस । जंगली जनावर मन के बईठका सकेल के अपन पीरा ल गोहनईस । जम्मो जनावर परजाति मिल के तै करीन , अब कोन्हो मनखे ल काटना-चाबना या कोकमना घला निये , निही ते सांप कस हमरो दुरदसा होही । सांप किथे ‌- हमन कोन्हो मनखे ल नि चाबन -काटन , हमर ऊप्पर फोकटे फोकट इल्जाम लगावत हे । सरकार करा बात रखे के , बात तै होईस । सरकार पहिली त जांच कराये बर आनाकानी करीस , पाछू , जनावर मन के दबाव म हमेसा झुकईया सरकार , मांग सवीकार कर लीस ।
छै महिना बर , जांच आयोग के काम सुरू होगे । खुल्ला सुनवाई होये लगिस । सांप मनला अपन बात रखे के पहिली मउका मिलीस । सांप मन अपन दरद पीरा ल बतावत किहीन – हमन वाजिम म बिसेला आवन जज साहेब , फेर कुछ बछर ले मनखे ल काटंना कोकमना त दूर , देखना तको बंद कर दे हाबन । किसान गरीब मनखे मन के उदुप ले मरे के पाछू , हमर निही , मनखेच मन के हाथ हे । अपन बात के समरथन म आगू किहीन – देस के अजाद होए के पहिली , हमन कोन्होच ल काटन , त हमर जहर के परभाव ले , काकरो बांच पाना सम्भव नि रहय । फेर वो समे , हमन कोन्हो ल जानबूझ के नि काटन । हमर रद्दा म उदुप ले सपड़ईया मनखेच हमर सिकार होय । पाछू , हमन देखेन के , मनखेच ह , मनखेच के लहू ल पीयत हे । जरूर , मनखे के लहू म मिठास होही , इही सोंच के एक्का दुक्का मनखे ल , हमूमन जानबूझ के , चाब देवन । फेर सोंचेन , ये पछीना म बस्सावत , मइलहा अंगोछा धरे , आधा पेट खाके सेफला कस हाड़ा हाड़ा दिखइया , नानुक पटका पहिरे घूमत हे , तेकर लहू , अतका मीठ हे , त ये बने बने सुघ्घर धोती कुरता पइजामा पहिरे , चिक्कन चिक्कन गाल , अउ महर महर महमहईया मनखे के लहू म , कतेक मिठास होही । इही सोंच के दू चार झिन अईसने मन ल , चाब पारेन , हमन का जानन , यहू मन हमरे कस होही कहिके , येमन नि मरिन जज साहेब । अउ तुहूं मन जानत हव , उही दारी ले , मनखे ल , कभू कभू सांप कहिके बुलाये लागिन । समे बीते पाछू , उदुपले , कुछ लालबत्ती वाला मन सपड़ागे एक घांव , काट पारेन दू चार झिन एक संघरा । एक ठिन सांप , तुरते मर गे । दूसर , कुछ बछर ले बड़ तरफिस , आखिरी म दरद पीरा ल सेहे नि सकिस , फांसी लगाके मर गे । कुछ अभू तक तड़प तड़प के हाबे , न ठाड़ हो सकत हे , न बईठ सकत हे , इंकर गिनती न जियईया में हे , न मरईया में । इही दारी ले हमन कोन्हो सधारन मनखे तक ल , नि चाबन , काबर हमन जान डरेन के , मनखे बड़ परगति कर डारे हे , साफ सुथरा दिखईया के लहू म अतका बिख हे , त मइलहा म कतका होही । अब बतावव बिसेला हमन आवन कि मनखे ?
सांप के बात सुनके मनखे भडक गे । नारेबाजी , निंदा परस्ताव सुरू होगे । अऊ ये चक्कर म सांप के सिकार मनखे मन के रिस्तेदार मन के बयान नि हो सकिस । कतको छै महीना नहाक गे , आयोग के कारकाल लामते गिस । आखिर म , जज ह सांपे के बयान के अधार म फइसला सुनाय बर रिपोट बनाये धर लिस । रिपोट फाइनल होए के पहिली , खबर मिलीस , जज , कोन जनी काकर सिकार होके दुनिया ले चल दिस । नाव फेर सांपे के धर दीन । फाइल बंद होगे । सरकार सांप उप्पर , अऊ जादा नराज होगे । धड़ाधड़ मरवाये लागिस सांप मन ल ।
सांपमन बहुतेच जादा डर्रागे । लटपट , काकरो आस्तीन म खुसर के अदालत तीर पहुंच गिस । उहां जज ल बतईस – जब ले हमर देस अजाद होये हे तब ले सरकार हमन ल परेसान करत हे , हमर जान के पाछू परे हे , वो समझथे के , जम्मो उदुप ले मरईया मनखे के , सरग जाये म हमरे हाथ हे । अदालत ले पराथना करीन जांच कराये के । अदालत सग्यान लिस । त सरकारी वकील बतईस – उदुप ले मरईया , मनखे के मऊत के जुम्मेदार , इही सांप मन हरे जज साहेब । मरईया के लहू के रिपोट ल , घला मढ़हा दीस । जज किहीस – तूमन लबारी मारथव रे , सरी रिपोट तुंहर खिलाप हे । हमन सांप आवन साहेब , मनखे नोहन । जनम लबारी नि मारन । रिहीस बात चाबे के , त हमन अभू कोन्हो ल चाब घला देबो , तभ्भो ले वोहा नि मरे । हमन ल मार के , हमर बिख के गलत उपयोग , झिन कर सकय कहिके , कबले , हमन अपन बिख ल लुका दे हाबन जज साहेब । जम्मो जांच ल तुंहर देखरेख म फेर करावव ।
कतको मरघट्टी ले जुन्ना जुन्ना हाड़ा गोड़ा के खोजा खोज माचगे । कुछ नावा नावा लास घला मिलगे । रिपोट अइस । जम्मो के मरे के तरीका एके रिहीस – तड‌प तड़प के । जम्मो मनखे बिख के असर ले मरे रिहीन । फेर सांप चाबे के निसान कोन्हो करा नि रिहीस । कुछ के , हाड़ा गोड़ा लहू म अजीब किसीम के गंध रिहीस , कोन्हो म चारा के गंध , कोन्हो म गोला बारूद तोप के गंध , कोन्हो म पेटरोल के गंध , त कोन्हो म कोइला के गंध , एकर अलावा अऊ कतको परकार के बिचित्र बिचित्र गंध आवत रिहीस । जांच आगू बढ़िस , कुकुर संसद भवन तक पहुंच गिस भूंकत भूंकत । उहां एको बिल नि मिलीस सांप के । फेर कुकुर कभू सत्ता पछ के खुरसी , त कभू बिपछ के खुरसी ल सूंघ सूंघ के भोंके लागिस ।
फइसला आगिस – बिख सांप कस बिसेला हे , फेर ऐला फइलाने वाला सांप नोहे , बल्कि सभ्य मनखे आए , जे कभू सत्ता पछ के खुरसी म , त कभू विपछ के खुरसी म , समे समे म बइठथे । अउ मरईया जीव , देस के गरीब , मजदूर , सधारन जनता अउ किसान आए । फेर गलती सांप के आए जेन रूख रई के लकड़ी ले संसद के खुरसी बनथे , उहीच म एमन मनखे ल बदनाम करे बर अपन बिख ल लुका देथें , अऊ , एकर सेती जे भी मनखे संसद म बइठथे , तेहा बिसेला हो जथे । मनखे बांच गे । फइसला के बिरोध म सांप अपील करीस – हमर बिख करिया धन नोहे जज साहेब , जेला हमन लुका के बिदेसी बैंक कस राखबो , एला हमन अपनेच तीर लुकाके राखथन । दूसर बात , हमन चाबथन तभ्भेच हमर बिख ले मनखे मरथे , जांच रिपोट म चाबे के कोंन्हो निसान निये । तीसर बात , मरईया मन तड़प तड़प के मरे हे , हमर काटे ले , मरे बर ,जादा तड़पे नि लागे साहेब । अदालत जानत रहय , फेर जांच आयोग के जज के , का हाल होइस ? तहू ल जानत रहय । वो मजबूर हे । मामला अभू घला चलतेच हे , फेर इहां ले निकल के , जनता के अदालत म पहुंच गे हे , फेर , जनता अभू घला तै नि कर पावत हे – बिसेला कोन ?

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन 
छुरा

2 replies on “बियंग ( संदर्भ – घेरी बेरी होवत किसान मन के मौत ) : बिसेला कोन”

अड़बड़ सुग्घर व्यंग्य लिखे हावव भइया आपमन ल ये व्यंग्य बर गाड़ा गाड़ा बधाई

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