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कविता गोठ बात

बूढ़ी दाई

पितर मन के पियास बर
अंजरी भर जल
साध बर, बरा-बबरा,
सोंहारी संग हूम
रंधनी खोली के खपरा ले
उड़ावत धुंगिया
बरा के बगरत महमहई
लिपाये-चंउक पुराये
ओरवाती म बगरे फूल
ओखरे संग भुखाए लइका
दूनो मन, अगोरत हावय
कोन झकोरा संग,
मोर बूढ़ी दाई आही.
अउ बरा बबरा खवाही.

संजीव तिवारी