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बेटी की हत्या : संस्मरण






वाह रे निष्ठुर आदमी बेटे की चाहत में दो दो बेटियों को माँ की कोख में ही मार डाला, तीसरी जब बेटी पैदा हुई तो उस अभागिन की माँ चल बसीI पिता ने फिर दूसरी शादी रचा ली, दूसरी बीवी से एक बेटा हुआ,पिता और माँ का पूरा ध्यान उस अभागिन पलक से हट कर बेटे पर हो गया I पलक धीरे धीरे बड़े होने लगी और वो अपनों के बीच में उसे परायेपन का एहसास होने लगा,चार साल की उम्र में उसकी सौतेली माँ ने वहीं पास के सरकारी स्कुल में उसका दाखिला करवाया, खुद के बेटे को नर्सरी इंग्लिस मीडियम स्कूल में, बेटे के स्कूल आने जाने के लिए ऑटो लगवाया,लेकिन बेटी हमेशा पैदल स्कूल जाती और आती थीI पलक को कोई न तो स्कूल छोड़ने जाता न ही कोई लेने जाता,वो दूसरे बच्चों को देखकर सोचती जरूर थी,कि मुझे भी कोई छोड़ने व लेने मेरे अपने स्कूल आये,मेरे लंच बॉक्स पहुचाने आए, दूसरे बच्चे के माता पिता, दादा दादी को देखकर मन ही मन सवाल करती थीI सभी बच्चे स्कूल में धमा चौकड़ी मचाते थे, लेकिन पलक डरी, सहमी, घबरायी सी स्कूल में रहती थी, स्कूल की छुट्टी होने पर सभी बच्चो में एक उत्साह घर जाने का होता था, लेकिन स्कूल से घर जाते समय पलक की आँखें ये सोच कर डबडबा जाती थी कि अब फिर सौतेली माँ के ताने और गाली सुनना पड़ेगा Iजैसे ही वो दरवाजा पर पहुँच कर खटखटायी, उसकी सौतेली माँ दरवाजा खोलते ही इतनी जल्दी आ गयी कलमुही कही का, जा तेरा कपड़ा रखा है, धो कर सुखा देना, खाना निकाल दिया हूँ खा लेना, खाने का बर्तन साफ कर देना, काम के बोझ में नन्ही सी पलक दो शब्द प्यार के लिए तरस गयी, वो सब काम खुद निपटा के,खाना खाके खिलौने के साथ मन बहला के कब सो गयी पता ही नही चलता था Iफिर अचानक नींद खुली डरी सहमी अपनी माँ कि टंगी तस्वीर को निहारते कल्पना में खो जाती थी, अगर मेरी माँ होती तो मुझे भी सब प्यार करते,खेलने कूदने से कोई मना नही करता, अच्छे स्कुल में दाखिला मिलता, मुझे स्कुल पैदल जाना नही पड़ता, रोज रोज सौतेली माँ के तानें सुनना नही पड़ताIमाँ का प्रेम, माँ से मिलने कि तड़फ उसके वजूद को बार बार कचोड़ती थी, और मन ही मन फफक कर रो डालती थी,एक दिन भीगते हुए स्कूल से घर आई और सीधे अपने कमरे में चली गयी, उसे ठंड लग रही थी, उसकी आँखों में सौतेली माँ का खौफ इतना था कि कुछ बता न पाई और बिस्तर में लेट गयी, पिता ने भी उसे नही पूछा कि बेटी क्यों सोई हो?पलक अपने आपको इतना अकेला महसूस करने लगी और ठंड से कांपने लगी, अपनी माँ कि टंगी तस्वीर देखकर सिसकने लगी, बुखार से शरीर तपने लगा, कसक और बेचैनी इतनी बढ़ गयी कि उसका दम घुटने लगा, और वो इस दुनिया में बिना जीए ही एक अनजान मौत की शिकार हो गयीI
दोस्तों ये अनजान मौत नही है, ये पलक की भावनाओं की हत्या हैI उसके कोमल मन को न समझने की हत्या है,ये एक बेटी की मौत नही, स्वार्थ के वशीभूत होकर इंसानी दिमाग की कायरता है,ये मानव समाज की सृजनकर्ता की मौत हैI ये एक पलक है,न जाने हमारे समाज में कितने पलक और होंगे जो बिना दुनिया देखे ही चल बसते है,या फिर उनकी हत्या कर दी जाती है, या अपनापन की सिसक व तड़फ में अनजान मौत का शिकार हो जाती हैI
विजेंद्र वर्मा “अनजान”
नगरगाँव (जिला-रायपुर)