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भगत के बस म भगवान – लोककथा

गजब दिन के बात आय। महानदी, पैरी अऊ सोंढूर के सुघ्घर संगम के तीर म एक ठन नानकुन गांव रिहिस हे। नदिया के तीर म बसे गांव ह निरमल पानी धार म धोवाके छलछल ले सुघ्घर दिखय। गांव के गली-खोर ह घलो गउ के गोबर म लिपाय मार दगदग ले दिखत राहय। कोन्हो मेर काकरो घर- दुवार के भुलकी ले मतलहा बसउना पानी नइ निकलय। चौंरा मन घलो बर लाम चाकर लिपाय-पोताय दिखत राहय। भरे मंझनिया लाहकत कोन्हो काकरो चांवरा, परछी म ढलंग जावय त पट ले सुघ्घर नींद पर जावय। चारों मुड़ा शांति के बसेरा राहय। गांव के रहवइया जम्मो परानी मन, अपन सुनावय। गांव के रहवइया जम्मो परानी मन, अपन काम बुता म सुघ्घर मगन राहय अउ सुख-दु:ख म जम्मो झन जुरिया के एक-दूसर के संग देवय।
अइसन सुघ्घर गांव म एक झन किसान परिवार म दाई-ददा के दुलरवा बेटा ह निच्चट लेड़गा राहय। वोहर जम्मो काम बुता ल उल्टा-पुल्टा कर डारय। एक बखत के बात आय। किसान ह अपन लेड़गा बेटा ल खेत के धान के रखवारी करे बर भेजिस। लेड़गा ह अपन खेत म रखवारी करत रिहिस त उही बेरा म कुछु गाय-बछरू, भइंस, छेरी-पठरू मन खेत के फसल ल चरत-चरत राहय। तऊन मन ला चोरी काबर करत हव, कहिके जतेक जानवर मन जावत रिहिस तऊन मन ला लेड़गा ह अपन खेत म लान के छेंक दिस। तहान जम्मो जानवर ह खेत के फसल ल ठुकठुक ले चर डारिन। दूसर दिन बिहाने जब लेड़गा के ददा ह खेत ल देखे बर गिस तब अपन खेत ल चौपट छाड़े देख के अकचकागे। सोचे बर धर लीस कि जऊन खेत ह काली हरियर-हरियर लहलहावत रिहिस तउन ह आज परिया लहुट गेहे। वोहर गुस्साय तरमर-तरमर करत खेत ले घर म आइस अऊ लेड़गा टुरा ल पुछिस- कस रे लेड़गा बेटा! तोला खेत के रखवारी करे बर भेजे रेहेंव त तैंहर जम्मो खेत ल चरवा डारे हस। तब लेड़गा हर कहिथे- ददा तिहीं हर तो केहे रेहे कि कोन्हो हर चोरी करके झन लेगे, बने देखे रहिबे। तब मय हा तो कोन्हो ल चोरा के नइ लेगन दे हंव। गाय-बछरू, भंइस, छेरी-पठरु मन अपन-अपन मुंहु म भर के लेगत रिहिन हे तउन मन ला खेत म छेक के राखे रेहेंव अउ मुंधियार किन सबो ल बस्ती म लान के छोड़ देहवं। तहन वोमन अपन-अपन गोसइयां घर चल दिन हे। अतका गोठ ल सुन के लेड़गा के ददा ह अपन तरवा ल धर के बइठगे।
कछु बखत बीते के बाद म एक दिन वो किसान के घर म आगी लग गे। तब किसान अपन लेड़गा बेटा ला कहिस। धकर -लकर घर के समान मन ला बाहिर म निकार रे, नइते सबो हा जरभुंज जाही। तब लेड़गा ह अपन सकउ सील, पथरा, लोहा अऊ गरू-गरू समान मन ला आगू निकारे लागिस। वोहर मन म सोचिस कि मोर दाई-ददा मन बड़े-बड़े गरू समान मन ला नइ निकार सकही तेकर ले मय ह बड़े-बड़े गरू समान मन ल निकार देथंव। लेड़गा के समझ म गरू समान मन तो बाहिर म निकरगे फेर कपड़ा लत्ता, ओढ़ना बिछउना, खटिया, पिढ़हा मन जरभुन के राख होगे। तब लेड़गा के ददा किसान ह कहिथे बेटा तंय ह सब्बो बुता ला उलटा-पुलटा कर देथस, तेकर ले जा तंय हर ये घर ले निकर जा, अइसे कहिके मारपीट के वोला घर ले बाहिर निकार देथे। तब लेड़गा बपुरा ह अकेला रोवत-रोवत आंसू ढरकावत पैरी सोंढूर अउ महानदी के बीच म बने कुलेश्वर महादेव मंदिर के चांवरा तीर म जाके बइठगिस अउ सुसक-सुसक के रोवन लागिस।
मंदिर म पुजारी ह भगवान कुलेश्वर के निसदिन पूजा करय। अउ पूजा के बाद वो हा कोन्हो ल देखे त वोला पहिली भोजन खवावय। तेकर पाछू खुद खावय। आज बिहाने जइसने पूजा करके मंदिर के सिढ़िया डाहर ला पुजारी ह देखिस त एक झन लइका हा रोवत बैइठे राहय। वो लइका ला वोहर बलाइस, त डर के मारे तीर म लेड़गा ह नइ आइस।
तब पुजारी ह खुदे वोकर तीर म गिस, अउ वोला पुचकार भुलियार के मंदिर के दुवारी म लानिस। अउ वोला पहिली भोजन खवाइस। भोजन खाय के बाद वो लइका ला जुठन थारी ल धोयबर किहिस। तब वो ह डर के मारे थारी ल नइ धो सकिस। तब पुजारी ह समझिस कि ये लइका कर कुछु गियान नइए, येहर लेड़गा असन लागथे। थारी ल उही करा परे राहन दिस, अउ रोज के रोज उही थारी म वोला भोजन देवतगिस। धीरे-धीरे पुजारी ह लेड़गा ल रोज समझाय ल लागिस, तब लेड़गा के समझ म आय लागिस कि जब मय हा कुछु नइ करवं तभो ले येहा मोला मारय पीटय नहिं। तेकर ले कुछु काम बुता म येकर सहयोग करे जाय। अइसन सोंच के धीरे-धीरे वोहा मंदिर के पुजारी के कामबुता ल करे लागिस कुछु दिन बीते के बाद पुजारी ल तीरथधाम जाय के मऊका पड़गे। तब वोहा तीरथ धाम जाय के पहिली लेड़गा के नाव ल मस्तराम रख दिस। अउ वोला समझावत किहिस, अरे मस्तराम मय हर तीरथधाम जावत हवं। जइसन मय हर भगवान मन ल नहवाथंव, भोजन कराथवं न, वइसनेच तयं ह ये मंदिर के भगवान मन ल नहवाबे अउ भोजन कराबे। तब लेड़गा ह पुजारी ले पुछिस, पुजारी जी! मंदिर के चंऊर-दार ह सिरा जाही तब कहां ले लानहूं, कइसे करहूं? तब पुजारी ह कहिथे वोकर तै चिन्ता झन करबे, भगवान ह वो सबो के व्यवस्था कर दिहि, अइसे कहिके पुजारी ह तीरथधाम करे बर चल दिस।
दूसर दिन बिहाने होइस। लेड़गा ह भगवान मन ल नहवाय बर नदिया ले पानी लानिस, अउ नहवइस। मंदिर म दार-चंउर जउन रिहिस तेला रांधिस अउ भगवान मन करा मढ़ा दिस। लेड़गा ह भगवान मन ल भोजन खाय बर अड़बड़ बिनती करिस। फेर पथरा के मूर्ति मन कहां खावय। तब लेड़गा ह भगवान मन के खाय बिगन अपनों ह खाना नइ खइस अउ लांघन भुखन रहिगे। काबर कि पुजारी ह केहे रिहिस हे के भगवान मन ल खवाय बिगन तंय ह खाना झन खाबे। अइसने करत-करत कुछ दिन बीतगे। रोज-रोज लेड़गा ह भगवान मन करा भोजन ल मढ़ाय फेर वोमन नइ खाय, त अपनों ह लांघन रहि जाय। धीरे-धीरे दिनाेंदिन लेड़गा मस्तराम ह कमजोर होय लगिस। वोकर देहे के पीठ-पीठ ह दिखे लागिस। तब भगवान मन ह वोकर हालत ल देखके, परगट होगे अउ खुद भोजन खाय ल लागिस। तब लेड़गा ह भगवान मन ल कहिथे कइसे भगवान हो, तुमन ला भूख लागिस त कइसे खावत हव। भगवान मन खाना ल खइस। तहान लेड़गा ह घलो डपट के खइस अउ रात के मन भर ले सुतिस। दूसर दिन बिहाने लेड़गा ह भगवान मन ल कहिथे, तुमन ला नहवायबर मोला अड़बर दुरिहा ले पानी लाने ला परथे। तेकर ले तुमन सबो झन नदिया म नहाय बर चलव। तब लेड़गा के संग म सबो भगवान के मूर्ति मन नदिया म नहाय बर गिस। सबो झन नदिया ले नहाके मंदिर म आइन त लेड़गा ह कहिथे- इंहा माइलोगन जात के सीता माता ह हावय, त अब सबो झन बर सीता माता ह भोजन ल पकाही। त मूर्ति के सीता माता ह संउहत अपन रूप म परगट हो के भोजन बनाइस।
कुछ दिन बीते के बाद मंदिर के भण्डार घर म चउर दार ह सिरागे। त मस्तराम लेड़गा ह भगवान मन ल कहिथे-पुजारी जी ह केहे हे कि राशन ह सिरा जाही तब भगवान मन ह खुद राशन लानही, तेकर सेती तुमन राशन लानवं तब भोजन बनही नइते सबो झन भूखन मरबो। तब भगवान मन खुदे राशन लानिन। अइसने करत मस्तराम लेड़गा ह भगवान मन संग खेलत खावत मस्त मगन रहे लागिस। अब ये डाहर पुजारी ह तीरथ धाम करके लहुटिस। तब लेड़गा मस्तराम बर चना मुर्रा लाने रिहिस तेला दिस। तहान पुजारी ह नदिया म नहाय बर चल दिस। ये डाहर मस्तराम ह मंदिर के पाछू म जाके सबो भगवान मन ल खजानी खाय बर बलाइस। त सबो भगवान मन वोकर तीर म आगे, अउ लेड़गा संग चना-मुर्रा, लाई ल खावन लागिस। उही बेरा म पुजारी ह नदिया ले नहा के आइस अऊ मंदिर म पूजा करे बर गिस तब देखथे कि मंदिर म कोन्हो भगवान के मूर्ति ह नइहे। वोहा मस्तराम ल हुंत पारिस- अरे मस्तराम, कहां चल दे हस रे इहां मंदिर म एको ठन भगवान के मूर्ति नइ हे रे। कोन्हों चोरा के लेगे हे का रे। अइसे काहत-काहत मंदिर के पाछू कोती जाके देखथे त बक खाके चकरागे। सबो भगवान के मूर्ति मन उहें माढ़े राहय। तब वोहर मस्तराम ल पूछिस कस रे लेड़गा, तैंहर ये मूर्ति मन ला काबर लाने हस रे? तब मस्तराम ह कहिथे, महाराज, मय ह ये मन ला नइ लाने हंव, खजानी खाय बर ये मन ल बलाय हवं त सबो झन येकर आके जुरिया गेहे। अतका ल पुजारी ह सुनिस त अकचकागे। वोहर सोचेंबर लागिस कि मय ह कतको बरस ले भगवान मन के अतेक पूजा करत हवं फेर भगवान मन ह मोला कभू दरसन नइ दिस अउ पखवाड़ा भर म ये लेड़गा मस्तराम ल भगवान मन ह दरसन दे दिस। अइसे सोचत-गुनत पुजारी ह तरुवा ल धर के बइठे रहिगे। येकर ले ये साबित होथय कि भगत के जिद म भगवान ह उंकर बस म हो जाथे।
दार-भात चुरगे मोर कहानी पुरगे…।
नेमीचंद हिरवानी 
शिक्षक
संगम साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति
मगर लोड