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व्यंग्य

भगवान मोला गरीब बना दे

भक्त ह किहिस-”गरीब होय के अड़बड़ फायदा हे, गरीबी रेखा म नाम जुड़ जाय ताहने का कहना। दू रुपया किलो म चांउर मिल जाथे। सौ दिन के मंजूरी पक्का हे। हाजरी भर दे देव। कमास या मत कमास, तोर रोजी सोला आना मिलही। काकरो ददा म ताकत नइ हे जोन तोर मंजूरी ल कम कर सके। अस्पताल म जाबे तब फोकट म इलाज होथे। अउ केस बिगड़ गे त नगद मुवाजा मिलना ही मिलना हे। कोनो गड़बड़ करत हे त थोरकिन बाहिर आगे चिल्ला दे, मँय गरीब हों मोर नाम गरीबी रेखा म हे ये मन मोर ले छल करत हे। ताहने देख ले कतको नेता तोर पक्ष ले बर तोर कोती खड़े हो जाथे।
संसार म किसिम-किसिम के मनखे होथे। तिही पाय के रामचरित मानस म तुलसीदास जी कहे हे- ”तुलसी इस संसार म भाँति-भाँति के लोग।” हर मनखे के अलगे-अलग सपना , अलग-अलग सोच होथे। मनखे अपन सोच के मुताबिक अपन जिनगी ल गढ़े के सपना देखथे अउ ओकर अनुसार करम करथे। ये संसार म करम ले बड़ के कोनो चीज नोहे। जो मनखे जइसे करम करथे ओला ओइसने फल मिलथे। इही पाके कहे गेहे- ”जो जस करहि सु तस फल चाखा।” इही बात हर मनखेमन के दिमाक में घुसर गे हे, तिही पाय के ओ अपन लक्ष्य के मुताबिक करम करथे।
पुराना जमाना म रिसि-मुनि मन सिध्दि पाय बर तप करय। राजा-महाराजा मन षक्ति अउ समर्थ पाय बर तप करय। जोन ल जोन चीज पाय के राहय ओकर आधार ले ओ छै महिना, साल भर अउ कोनो-कोनो मन तो जुग-जुग तक तप करय। तब ओला भगवान दरसन दे अउ ओला तप के फल मिल जाय। राक्षस मन उलटा-पुलटा करय बर तप करय। अउ ये चक्कर म तो कभू-कभू भगवानो मन फँस जाय। फेर ओकर ले निकरे बर ओमन ल बड़का उदीम करे ल लागय।
कलजुग म सब सार्टकट होगे हे। कोनो ल ये जुग म जप-वप करय के जरूरी नइ हे। तुलसीदास जी सोझे कही देहे-”कलयुग केवल नाम अधारा।” केवल नाम जप लो, बेड़ा पार हो जाही। इही पाय के कतको मन घरे म माला जपत बइठे रहिथे त कतको मन तिरथ-बरत म निकल जथे। जेकर जइसने श्रध्दा ओइसने भक्ति कर लेथे। अइसे तो मानस म नवधा भक्ति के उल्लेख करे गे हे। फेर ये नवधा भक्ति म जो बन आवेै सहज में ताते में चित्त देही। कलजुग के मनखे अड़बड़ हुसियार होथे। ओ हर अपन बर सुभिता खोज लेथे। सबो ल अपन पक्ष म सोचथे। कुछु नइ बने त कही देथे-”मन चंगा त कठौती में गंगा।” अउ खुदे गंगा नहा लेथे।
अइसे आजकल कलजुग के मनखे मन के भक्ति भाव हर अड़बड़ छलकत दिखथे। कोनो मंदिर, मस्जिद, गिरिजा, गुरूद्वारा हो, सबो के सबो हाउसफूल दिखथे। पाँव धरे के तको जगा नइ राहय। नवरात के समय तो भक्तमन के भाव ल देख के मन गदगद हो जाथे। गणेष उत्सव हो या दुर्गा उत्सव चारो कोति जवान भक्तमन के भक्ति ल देख के मन ह हरियर हो जाथे। ये उत्सव म भक्तमन समय पा के बधना बाँध लेते या सोझे माँग लेथे।
दू साल पहिली के बात आय। एकझन भक्त ल लागिस कि लोगन कलजुग ल बदनाम करथे। सब कलजुग के भक्त मन के मजाक उड़ाथे। हम रिसी परंपरा म जनमे हन। त मँय रिसी महात्मा कस भक्ति करके भगवान ल मनाहूँ। परंपरा ह तको कोनो चीज आय। बबा रामदेव ह परंपरा के मायने म हमर मार्गदर्षक आय। वोहर गोहार पार-पार के कहिथे हम रिसीमन के संतान आन। हमला रिसी परंपरा ल नइ तियागना हे। हमर देह म रिसीमन के खून बोहावत हे। ये सोच के ओ भक्त हर जंगल डहर भक्ति करे बर निकल गे अउ दूरिहा जंगल म जा के तप करे ल सुरू कर दिस। दू दिन तो ओहर एक पाँव म खड़े हो के तप करिस जब गोड़ पिराय लागिस त ओहर पालथी मार के बइठ गे। पालथी मार के अइसे जमगे कि हफ्ता भर होगे टस के मस नइ होय। ओकर ये तप देखके भगवान शंकर घलो अचरज म पड़गे। कलजुग म ये तरह के नवा भक्त आय। नही त ये तरह ले तप करइय्या मनखे नंदा गेहे। ये हर नवा उजागर होहे। चलँव एकर इच्छा ल पूरा कर दें जाय।
समय चिन्हीस न कुसमय, भगवान शंकर हर नंदी म चढ़ के रटपट आगे। अउ ओकर आगू म खड़े हो के किहिस-” बच्चा हम तुम्हर तपस्या ले प्रसन्न हो गे हन, जोन बर माँगना हे माँंग ले।”
भगवान शंकर ल सउँहत देख के भक्त के मन हर पलपला गे। किहिस- ”भगवान मोर एके बिनती हे, मोला तँय गरीब बना दे।”
ओकर बात ल सुनके भगवान शंकर हर अकचका गे। आज तक जोन भी कोनो मोला माँगिस, त सोना-चाँदी, धन-दौलत अउ संतान माँगिस। फेर ये कइसे भक्त आय जोन हर गरीबी माँगत हे। काबर न मँय एकर ले क्लीरीफिकेषन कर लँव। ये सोच के भगवान शंकर हर कहिस-”भई तँय मोला बता अइसन का बात हे कि तँय मोर ले गरीबी माँगत हस।
भक्त हर किहिस-”भगवान, ये कलजुग आय। इहाँ गरीब मन के मान हे, गरीब के सबो पूछइया हे। बड़हर ल कोनो नइ पूछे।”
भगवान शंकर हर कहिस-”तोर बात हर मोला समझ नइ आवत हे, थोरकिन बिस्तार ले समझा।”
भक्त ह किहिस-”गरीब होय के अड़बड़ फायदा हे, गरीबी रेखा म नाम जुड़ जाय ताहने का कहना। दू रुपया किलो म चांउर मिल जाथे। सौ दिन के मंजूरी पक्का हे। हाजरी भर दे देव। कमास या मत कमास, तोर रोजी सोला आना मिलही। काकरो ददा म ताकत नइ हे जोन तोर मंजूरी ल कम कर सके। अस्पताल म जाबे तब फोकट म इलाज होथे। अउ केस बिगड़ गे त नगद मुवाजा मिलना ही मिलना हे। कोनो गड़बड़ करत हे त थोरकिन बाहिर आगे चिल्ला दे, मँय गरीब हों मोर नाम गरीबी रेखा म हे ये मन मोर ले छल करत हे। ताहने देख ले कतको नेता तोर पक्ष ले बर तोर कोती खड़े हो जाथे। कोनो मीडियावाले मन सुन लिस त का कहना। तँय हीरो बन गेस।”
”भगवान तुमन सरग के रहवइय्या आव तुमन ल इहाँ के रीति-नीति ल नइ जानव। चुनाव के समे गरीब मन के खूब पूछ-परख होथे। फोकट म रोज कुकरा भात अउ दारू मिल जाथे, आये दिन बोकरा खाय ल मिल जाथे। कपडा-लत्ता के का कहना नगदी घलो गिन ले। जतका पारटी ओतका सेवा।”
भक्त हर आगू किहिस- भगवान मँय तुहर आगू म झूठ नइ बोलव। ये हर तो कुछ टेलर आय। अंदर म अउ अड़बड़ हे, मयँ यदि बिस्तार ले बताहूँ त जुग पुर जाही। बस भगवान, मोला गरीब बना देवव।”
भक्त के अमरित जइसे सच बानी ल सुन के भगवान गदगदागे। ओला खुदे लागे लागिस-”मोरो अड़बड़ भाग होतिस त महुँ हर धरती म गरीब घर जनम ले के आतेव।”
भगवान शंकर नंदी ल हिमालय भेज के खुदे तपस्या म बइठगे।

बलदाऊ राम साहू

एच.-7 बी.टी. आई. कालोनी
शंकर नगर रायपुर