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कविता

भले मनखे ले जग म सुख-सांति जरूर आही

बिगडे समाज अउ राजनीति ल कउन सुधारही?
अपन मं सब उलझे हें त जग सुधारे कउन आही?
आधा रात के बारा बजे मोर टूरा खखुवाइस,
कविता लिखत देख के मोर बर बड़-गुर्राइस।
अइसने मेहनत करके कुछु दुकान ल चलाते॥
त कतका कन पइसा कमाके सुख ल पाते॥
हम गरीब के पीरा मं काबर कउन आही?
हमन रोवत रइबो त कोन पीरा ल पाही?
कलम-कागज ल धर के माथा ल धुनत रइथस,
देस-समाज के उतार-चढ़ाव ल लिखके का पाथस।
एक ठी टूटहा लूना ल जिनगी भर चलावथस।
करू-करू लिखके नेता मन के गारी ल खावथस॥
तोर करू-सच लिखे ले जुग बदल जाही?
अपराधी अउ भ्रस्टाचारी मन का साधु बन जाही?
सड़क के तीर परे डोकरा भीखमंगा ल नइ देखस।
कोनो पीरा पाके, ओकर तीर का बइठे पाथस?
हमर देस अउ समाज के तरक्की के एही नमूना आय।
कोनो मंत्री अउ साहब ल का उन्कर समस्या सुनत पाय?
सबके पीरा ल जाने ले अउ कविता लिखे ले का होही?
जब बेवस्था मं सुधार करे भले मनखे नइ अघुवाही?
चारों डहर संसार मं लूट-खसोट मचे हे।
बिगड़े समाज में गिने-चुने भले मनखे बचे हे॥
राजनीति मं अपराधीकरन कबले बढ़े हे।
जब ले परिवार ह बिन संस्कार के गढ़े हे॥
कलम ल मढ़ाके भला इंसान खोजे ल परही।
ओकर संग देवव जेन समाज सुधारे के बुता करही॥
जइसे चांउर ले कचरा ल बिन के निकालथन,
ओइसने समाज ले भले नेता चुने काबर लजाथन?
थोरकन उदिम करे ल काबर जांगर चुराथन।
भले मनखे मन के संगठन काबर नइ बनावन?
बिगड़े समाज अउ राजनीति सब सुधर जाही।
भला मनखे ले जग मं सुख-सांति जरूर आही॥
श्यामनारायण साहू ‘स्याम’
चटर्जी गली नया सरकण्डा
बिलासपुर