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कविता

भारत के बाग

महरमहर महकत हे, भारत के बाग
भुँइया महतारी के अमर हे सुहाग ।।
ममहाती पुरवहिया, झूमय लहरावय
डाराडारा, पानापाना, मगन सरसरावय
पंड़कीपरेवना मन, मन ला लुभावय
कोइली हर कुहकै नंदिया गाना गावय
मिट्ठु हर तपत कुरू बोलै अमरइया में
कोकड़ामेचका जुरमिल गावत हें फाग
उठौ उठौ जँहुरिया अब रात पहागै
पंग पंग ले फेर नंवा बिहान असन लागै
जागे के दिन आगे रतिहा हर बीतिस
हारगे बिगारी अऊ बनिहारी जीतिस
धरती के बेटा मन जागिन हे भइया हो
चमकिस अब भुँइया महतारी के भाग
मुकुन्‍द कौशल