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कविता

भोरहा में झन रईहूँ

आज के बदतर हालत ल देखके अईसन लागथे की मीठ लबरा मन बोलथे भर,अऊ करे कुछु नहीं I ऐकर बोली अऊ भाखा के जाल में फस के हमर किसान,जवान,मजदूर मन के जिनगी जिवई ह दूभर होगे हे Iओकर सेती पीरा ल एकर जान के सचेत रेहे बर काहत हौ –

भोरहा में झन रईहूँ
ए मीठ लबरा के पीछू म,
मत जाबे ग किसान I
पेर के तोला रख दिही,
अऊ कर दिही पिसान I
लईका लोग मनखे मन,
अऊ सुनव ग मितान I
ऐकर भोरहा म परहू त,
निकल जाहि तोरे परान I
नवा अँजोर आही कईके,
रेंगत हे हमर जवान I
ऐ माटी के चोला ह,
सँगी होवत हे सियान I
ऊँच निच अऊ छुत छात ल,
छोड़त हे जजमान I
ऐकरे मन के सेती,
होवत हे अड़बड़ कुरबान I
दूर दूर चिन्हारी नईये,
अऊ बेचावत हे भगवान I
ऐकरे भोरहा म रईहूँ त,
उड़ जाहि तुहर परान I
Vijendra Kumar Verma
विजेंद्र कुमार वर्मा
(भिलाई-से.4)
नगरगाँव वाले
मोबाइल-9424106787

4 replies on “भोरहा में झन रईहूँ”

सुग्घर रचना विजेंद्र भैया आपमन ल बधाई हो

बढ़िया लागिस वर्मा जी आपके रचना ह
अब सिरतोन में भोरहा मे नइ राहन |

धन्यवाद, महेंद्र देवांगन जी,

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