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कविता

मंतर

कंहा गै वो असीस के भाखा
बाबू के ददा नोनी के दाई
मोर दुलरवा मोर दुलौरीन
बहिनी दीदी भईया भाई।
गुडमार्निग साॅरी थैंक्यू
बोल रे पप्पू  बोल
अपन संस्कृति के छाती ल
अंगरेजी बंऊसला म छोल।
तब अऊ अब मे
कतका जादा अंतर हे
आई लभ यू अब
सबले भारी मंतर हे।
पती ह पतनी ल टूरा ह टूरी ल
दाई ह बेटा ल बाप बेटी भूरी ल
संझा बिहिनिया इही मंतर म
एक दूसर ल भारत हें
” बादल”बईगा मरजादा ल
इही मंतर म झारत हे।

चोवा राम वर्मा बादल 

GG2

One reply on “मंतर”

जंमो छतीसगढी के संयोजक कोटी कोटी अभिनंदन हे |

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