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गीत

मंहगाई





मंहगाई के मार से , बच न सके अब कोय,
जेकर जादा लइका रही, तेला मरना होय।
का अमीर अऊ का गरीब, सबके एके हाल,
चक्की में पिसावत हे, सबके हाल बेहाल ।
दौलत खातिर लड़त हे, भाई भाई आज,
घर परिवार ल दुख देके, अपन करत राज।
दौलत ही सब कुछ हे, महिमा अपरंपार,
कतको ग्यानी ध्यानी होही, कोनों न पावे पार।
जेकर पास दौलत हे, उही करत हे राज ,
कुछू भी करही तब ले, ओला नइहे लाज ।
कतको पढ लिख के, घूमत हे बेरोजगार,
जब तक पइसा नइ देवे, नइ मिले रोजगार ।
मेधावी सब घूमत हे, गदहा मन के राज,
खुरसी टोरत बइठे हे, बनके अफसर आज ।
काम क्रोध मद लोभ में, बूड़े हे सब कोई,
जब तक माया नइ छुटही, कहां ले मुक्ति होई ।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला — कबीरधाम (छ ग )
पिन – 491559
मो नं — 8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com