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कविता

मटमटहा टूरा

पढ़ई लिखई में ठिकाना नइहे
गली में मटमटावत हे
हार्न ल बजा बजा के
फटफटी ल कुदावत हे।

घेरी बेरी दरपन देख के
चुंदी ल संवारत हे
आनी बानी के किरीम लगा के
चेहरा ल चमकावत हे।

सूट बूट पहिन के निकले
चसमा ल लगावत हे
मुंहू में गुटका दबाके
सिगरेट के धुंवा उड़ावत हे।

मोबाइल ल कान में लगाके
फुसुर फुसुर गोठियावत हे
फेसबुक अऊ वाटसप चलाके
मने मन मुस्कावत हे।

संगी साथी संग घूम घूमके
आदत ल बिगाड़त हे
फोकट म खाय ल मिलत त
बाप के कमई ल उड़ावत हे |

लाज शरम तो बेचा गेहे
कनिहा ल मटकावत हे
नाक ह तो पहिली ले कटा गेहे
अब कान ल छेदावत हे |

Mahendra Dewangan

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला-कवर्धा (छ.ग)
मो. 8602407353

5 replies on “मटमटहा टूरा”

आपमान के रचना बहुत ही सुंदर हे जी आपमान ल बहुत बहुत धन्यवाद। जय जोहर

हमर कविता ल पसंद करेव एकर बर धन्यवाद हेमलाल साहू जी |

जय जोहार देवांगन जी…सुग्घर रचना हे….बधाई हो

रचना ल पसंद करेव एकर बर आप मन ल धन्यवाद सुनील शर्मा अऊ विजेन्द्र कुमार वर्मा जी |
अइसने मया दया राखे रहिहू | जय जोहार

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