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कविता गीत

मधुमास

मन धरती के झुमरत हे आज रे 
चंदा चंदैनी के मड़वा छवाय 
बांधे मउर खड़े मधुमास रे 
मन धरती के झुमरत हे आज रे
कुहकत हे कोइली हर डारा-डारा म 
नेवता देवत हावै पारा-पारा म 
नहावै धरती चंदैनी धारा म 
धीरे धीरे मुसकावै अकास रे 
मन धरती के झुमरत हे आज रे
सरसों फूल लुगरा म हरियर हे अंचरा 
जूरा गुंथाये हे मोंगरा के गजरा 
लाली सेंदूर असन परसा के फूल 
जगमगावत हे दुलहिन के मांग रे 
मन धरती के झुमरत हे आज रे
हांसत हे खोखमा करनफूल बनके 
पंखुरी म मोती कस पानी हर झलके 
झूले मदार बने कान के ढार 
हार बनके झूले हर सिंगार रे 
मन धरती के झुमरत हे आज रे
बेला हर बाहीं मं बहुंरी कस लपटे 
सोन्ना कस चूरी अमरबेल चमके 
कनिहा म केकती के करधन गुंथाय 
रंगावत हे महाऊर गुलाल रे 
मन धरती के झुमरत हे आज रे
किंजरत हे भंवरा मन बनके बरतिया 
दुलहिन हे धरती ढ़ेड़हिन बनगे रतिहा
ढ़ेंड़हा पवन नाचे होके मगन 
सबके मन म भरे हे हुलास रे 
मन धरती के झुमरत हे आज रे
‘श्रीमती दीप दुर्गवी`