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कविता

मध्यान्ह भोजन अउ गांव के कुकुर

इसकुल म मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम चलत हे
लइका मन के संगे-संग गांव के कुकुर घलो पलत हें।
मंझनिया जइसे ही गुरुजी
खाना खाय के छुट्टी के घंटी बजाथे
लइका मन के पहिली कुकुर आके बइठ जाथे।
अब रसोइया राम भरोसे
लइका म ल पहिली खाना परोसे
के कुकुर ल परोसे!
एक दिन पढ़ात-पढ़ात गुरुजी
डेढ बजे घंटी बजाय बर भुलागे,
कुकुर मन गुरार्वत कक्छा भीतरी आगे-
चल मार घंटी अउ दे छुट्टी!
इसकुल म एक झन नवा-नवा शिक्षाकर्मी आय रहे
ओ ह मध्यान्ह भोजन अउ कुकुर के गनित ल
नइ समझ पाय रहे,
एक दिन सुंटी उठा के मार पारिस
अउ कुकुर मन ल इसकुल ले बाहिर खेदार पारिस
ओ दिन ले कुकुर मन ओला देखथें
तहं अस भुंकथे-अस भुंकथे
के बिचारा ह सपटे-सपटे इसकुल आथे
अउ सपटे-सपटे जाथे,
नहिं त कुकुर मन ओला
गांव के मेड़ो के जात ले कुदाथें।
एक दिन मध्यान्ह भोजन के जांच करे बर
इसकुल म एक झन अधिकारी अइस,
बड़े गुरुजी ह ओला रजिस्टर ल लान के देखइस।
अधिकारी कथे हिसाब गड़बड़ हे
रजिस्टर ह एक सौ तेरा लइका के हाजिरी बतात हे
अउ रसोइया ह एक सौ सोला थारी खाना पकात हे।
गुरू जी कथे, हिसाब बिलकुल ठीक हे
फेर समझ म नइ आत हे साहेब, तोला
एक सौ तेरा अउ तीन कुकुर होइस एक सौ सोला।
एक दिन रसोइया पर गे बिमार
अब कोन रांधे जेवनार!
कुकुर मन किचन शेड डहर झांकिन
देखिन झिम-झाम,
अइसन म त नई बने काम!
जाके मेडम तिर अड़गे
मेडम ल पढ़ाय ल छोड़के रांधे-पसाय ल पड़गे।
छुट्टी के दिन ल गुरुजी भुला जाही।
फेर कुकुर मन नइ भुलाय,
इतवार के दिन इसकुल डहर झांके तक ल नई आंय।
फेर एक रात इसकुल के तारा ल टोरे के
मध्यान्ह-भोजन के बरतन अउ चांउर ल बटोर के
एक झन चोर भागत रहय
के कुकुर मन देख डारिन,
भुंक-भुंक के गांव वाले ल उठा दिन,
मध्यान्ह के खाय रहिन तेला छुटा दिन।
विनय शरण सिंह
गंजीपारा खैरागढ़

2 replies on “मध्यान्ह भोजन अउ गांव के कुकुर”

बड़ सुन्दर कविता हे।

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