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कविता

मनखे बन के बता : कबिता

नगरा लुच्चा बनना सरल हे, तंय मनखे बन के बता।
मनखे-मनखे एक समान कोनहो गरीब ल झन सता॥
धन अऊ बल रावन जइसे के घलो काम नई आइस,
तंय अलोक्खन ले बहिर, अपन आप ल झन जता।
भारत साधु, संत, रिसि, मुनि, संस्कार के देस आय,
झन धर तंय अनियांव, अतियाचार के रसता।
कखरो मन म भेदभाव, नफरत के जहर झन घोर,
बना सकथस त बना परेम के नत्ता।
चारों डहर हाहाकर हे मनखे, मनखे ल काटत-बोंगत हे,
का भांटा-मुरई कस मनखे होगे हे ससता?
धौंस झन दे चरदुनिया राजनीति अऊ सत्ता के,
कतको आइन अऊ गेइन जेखर नई हे अता-पता।
नगरा लुच्चा बनना सरल हे, तंय मनखे बन के बता।
मनखे-मनखे एक समान, कोनहो गरीब ल झन सता।

शेरसिंह गोड़िया
मुकाम कोलियारी पो. गैंदाटोला
तह. छुरिया,
जिला राजनांदगांव

आरंभ म पढ़व – कहिनी 1, 2

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