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मनोज कुमार श्रीवास्तव के सरलग 41 कविता

1. झन ले ये गॉंव के नाव

जेखर गुन ल हमन गावन,
जेखर महिमा हमन सुनावन,
वो गॉंव हो गेहे बिगड़हा,
जेला देख के हम इतरावन,
कहत रहेन षहर ले बने गॉंव,
बाबू एखर झन ले नाव,
दूसर के चीज ल दूसर बॉंटय,
उल्टा चोर कोतवाल ल डॉंटय,
थोरकिन म झगरा होवत हें,
दूसर मन बर्राय सोवत हें,
अनपढ़ मन होशियार हें,
साक्षर मन गॅंवार हें,
लइका मन हें अतका सुग्घर,
दिन भर खावंय मिक्चर,
दिन के तो पढ़े ल नई जावंय,
रात के देखयं पिक्चर,
गॉंव बिगड़इया मनखे के,
नाव हवय भोंगा,
ओखर ले बॉंचगे तेला,
पूरा करत हे पोंगा,
इही हाल हे गॉंव के गॉंव,
झन ले बाबू ये गॉंव के नाव।।
———

2. ठलहा बर गोठ

एदारी नगर प्रतिनिधि,
कोन हर बनही,
ओही हर बनही,
जेन हर गनही,
एहू हर पूछे के बात ए,
तहॅं गन देबे त,
रात ह दिन अउ,
दिन ह रात ए,
एक झन मनखे चुनाव जीतके,
खुर्सी म बइठगे,
खुर्सी म बइठिस तहॉं,
मुरई कस अइठगे,
अब आन ल बइठारही,
चार महीना बाद ,
वोहू ला उतारही,
ए हर नगर प्रतिनिधि के नोहे,
नांगर प्रतिनिधि के चुनाव ए,
बइला सुखागे त कोंटा म बॉंध दे,
नवा बइला लाके जुड़ा म फांद दे।।

3. हद करथे बिलई

हद करथे बिलई,
अपन खाथे मलई,
अउ खली छोड़य कलई,
घर में लगा के तारा ल,
चल देबे आन पारा ल,
तभोले बिलई हर,
झड़क देथे झारा ल,
छानही बरेंडी मियार ले,
कूदत फांदत आथे,
कोनो मेर ले कइसनों करके,
घर में खूसर जाथे,
दूध-दही ल खाके कहिथे,
बॉंचगे तेला चाटिन,
अपन-अपन पिलवा ल लाके,
सबो झिन ल बॉंटिन,
आखिर गुन के न जस के,
कतको मरबे भलई,
हद करथे बिलई,
अपन खाथे मलई,
अउ खाली छाड़य कलई ।।
——

4. बिजली

चारो कोती बिजली के,
धकाधक हे सप्लाई,
मीटर वाले हे कम,
डारेक्ट के हे कमाई,
मोरो घर हे मीटर,
फेर वोल्टेज हवय कम,
हकन के बिजली बिल,
पटा के मर गेन हम,
बिजली के वाल्टेज कम,
बाई के हवय 440,
न फ्यूज न कट-आउट,
कोन जनी दाई-ददा,
कइसे सम्हालीस,
50ः बाई मन हर,
गोसइया वायर तना डरे हे,
अउ सुग्घर-सुग्घर घर ल,
132 के.व्ही. बना डरे हे।।
——–

5. चटकारा

घर म खा लीस,
पी लीस डकार दीस,
ओतको म ताकाझॉंकी,
करत हे परासी घर,
अउ कोलकी-कोलकी जाके,
खोजत हे भंडारा,
ए जीवन काय ए ! चटकारा,
हटर-हटर करई म,
बीतगे जिंदगानी,
पइसा के खातिर करे,
चोरी-चमारी बइमानी,
सियानी के बेरा म,
करे नहीं सियानी,
अब ढलती उमर म,
सिरागे सब चारा,
ए जीवन काय ए ! चटकारा,
सुआरी लइका के भोभरा म,
सुग्घर परगे संगवारी,
चारो मुड़ा घूम-घूम मछराए,
अड़बड़ मनाये तैं तिहारी,
मेहमानी रहिस एक झन के,
तभो पेलेव झारा-झारा,
ए जीवन काय ए ! चटकारा,
चारो मुड़ा रहिस चिखला,
तभोले आके धॅंसगे,
जीवन भर फॅंसाए दूसर ल,
अब अपने-अपन तैं फॅंसगे,
भुॅंइया म गोड़ तोर,
माढ़बे नइ करिस,
अउ अब कहत हस,
मोला उबारा,
ए जीवन काय ए ! चटकारा ।।
——-

6. बस्तरिहा

मोर भाग हवय धनभाग सहीं,
आजे जीयत हॅंव आज सहीं,
सुख-सुविधा ले कोसो दुरिहा,
अनपढ़ मनखे सुक्खा नंगरिहा,
दार मिलगे त तिहार हे मोर बर,
नई ते बथुआ साग सहीं,
मोर भाग हवय धनभाग सहीं,
दुनिया बर मैं कोसा बिनहूॅं,
उघरा रइहूॅं भोमरा जरहूॅं,
बड़हर होय के सपना जरगे,
गरिबहा जनम के दाग सहीं,
मोर भाग हवय धनभाग सहीं,
योजना के सुर्रा म बोहागेंव मैं,
विकास के बियासी म धोआगेंव मैं,
धनुस-बान के बनगे फइका,
मैं बनगेंव हिरना के लइका,
छुटावत हे त छुटावन दे,
कोनो जनम के लाग सहीं,
मोर भाग हवय धनभाग सहीं,
आजे जीयत हॅंव आज सहीं।।
——-

7. अंतस के पीरा

सुआ के कलगी म,
परसा के फुलगी म,
धरसा अउ खार म,
तरिया के पार म,
मोर धरती के चिनहा हे,
नरवा के धार म,
फेर हमर गोठ के,
खींचातानी म,
विचार के भिथिया,
धसकावत हे,
गोड़ चपके भोरहा म,
छ.ग. के टोटा मसकावत हे।।
———-

8. भुॅंजुवा संस्कृति

छत्तीसगढ़ के बड्डे म,
नवा-नवा होगे जम्मो,
डोकरा बनगे माइकल,
डोकरी बनगे कम्मो,
ओखरो ले जादा,
लइका मन के टेस,
मुॅंह म सिगरेट,
अउ फटफटी के रेस,
भुंजागे परंपरा,
संस्कृति होगे राइल,
इंग्लैंड के हवय जींस,
अउ चाइना के मोबाइल,
मया-पीरा अउ एकता,
होवत हे खॅंड़िया-खड़िया,
कहॉं हवय कहइया मन,
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया।।
———

9. तोला छत्तीसगढ़ी आथे!

तोला छत्तीसगढ़ी आथे!
मुरई-भाटा के साग हर ,
तोला तो अड़बड़ मिठाथे,
फेर तोला छत्तीसगढ़ी आथे!
अंग्रेजी के मोट्ठा पोथी ल,
धरे हवस कुरिया म,
अउ अपन राज के भाशा बर,
तोर जी तरमराथे ?
तोला छत्तीसगढ़ी आथे !
खाये-खेले बनाए संगवारी,
पहली किंदरेस बारिच-बारी,
अब बाढ़ गे हवस डंग-डंग ले,
त ओही बारी के सुरता भाथे ?
तोला छत्तीसगढ़ी आथे !
हमर भुॅंइयॉं होगे पोठ,
त होवत हे कइठन गोठ,
फेर ए भुॅंइयॉं बर कोनो,
ऑंय-बॉंय गोठियाथे,
मंता तोरो भोगाथे ?
तोला छत्तीसगढ़ी आथे !
ददा के घलो बाढे़ हे टेस,
लइका दउड़त हे,
कुसंस्कृति के रेस,
अपन पढ़े सरकारी स्कूल म,
अउ लइका ल अंग्रेजी म पढ़ाथे,
फेर कभू लइका ल पूछे हवस ?
तोला छत्तीसगढ़ी आथे !
कमाये-खाये गे हवस दिल्ली-पूना,
उहॉं के रंग म बुड़ गेस कई गुना,
आखिर म आये अपनेच माटी,
काम आइस खूरा,
अउ काम अइस पाटी,
खूरा-पाटी म तोर,
नींद बने झमझमाथे,
फेर गुनके देख,
तोला छत्तीसगढ़ी आथे !
——–

10. फेसन

रगबग ले छाहे मोर,
गॉंव के फेसन,
तरी म आटा अउ,
उप्पर म बेसन,
कोंटा बनगे लवर पॉइंट,
कोलकी बनगे हिल स्टेषन,
ददा धरादिस मोबाइल,
अउ भेजदिस टिवसन,
टूरा-टूरी के समस्या के,
होगे सॉल्यूषन,
चोंगी पीके टूरा,
ददा के नाव करत हे रोषन,
टूरा-टूरी भगा गे उढ़रिया,
वाह रे टिवसन!
वाह रे टिवसन!
———

11. कतका सुग्घर बिदा

नानकुन बिचारी नोनी,
गली-गली लगइस चक्कर,
तहॅं ले कभू जाके,
आधा ठोमहा मिलिस षक्कर,
दाई गे हवय खेत,
साइड म गे हवय ददा,
घर म तो काहिंच नइये,
आ गे हवय सगा,
ब्योहारी तो करना हे,
काम ल पुरकाना हे,
काहीं नहीं त चहा देके,
सगा ल सरकाना हे,
मंडल हर बनी नइ ढिले हे,
अउ साइड के पइसा नइ मिले हे,
कोन जानत हे नोनी के घर,
चाउर दार कबके झरे हे,
भूरी तापे बर आगी घलो,
बरे हे के नइ बरे हे,
नोनी चिरहा चैनस ल देखके,
टकर्रा मन ऑंखी ल सेंकत हे,
अउ पेट हर कब के चिराहे,
तेला कोनो कुकुर नइ देखत हे,
कोनो नइ पूछय नोनी ल,
खाय हस के नहीं,
पूछ लीस त धनिया काकी,
उही भर सहीं,
काकी के कतका सुग्घर चाल हे,
फेर उहू हर का करय,
ओखरो तो नोनी कस हाल हे,
फेर सगा हर ए बात ल,
कहॉं जानत हे,
सगा हर तो बिहिनिया के आय,
खटिया म लात तानत हे,
तभोले नोनी हर कतका चंट,
आरा-पारा ले चुपे,
चाउर-दार बरो लिस,
दाई-ददा कमाके आय नइये,
सगा ल बिदा देके झरो दिस।।
———–

12. ढोल के पोल

राजा पिटवइस ढोल,
दिमाक ल सेक अउ,
मीठा बोली बोल,
अरे! मंत्री!
गॉंव म कइसे षांति छाहे,
का गॉंव वाले मन,
हंडा-बटुवा पाहे,
अरे! अइसन षांति रही,
त हमर का होही,
हमर बर बोट अउ,
खुर्सी के बीजा कोन बोही,
तव! तव जनता ल लड़वा,
उनला अषांति के भेंट चढ़वा,
कोनो चुरपुर ऑफर निकाल,
तहॉं मचन दे फेर बवाल,
अच्छा साहेब!
त निकाल दे न संविदा,
आजकाल एखरे उप्पर,
सबझन हवय फिदा,
फेर घुनहा आटा ल,बने चालबे,
सस्ता पोस्ट,षिक्षाकर्मी निकालबे,
उहू ल तीन महीना बाद ओगारबे,
अउ मनीराम मिलही तेला जेब म डारबे,
तहॉं सात महीना तक,
स्कूल म बइठार के,
कर देबे मास्टर मन ल बिदा,
हवय न बड़ा चुरपुर ऑफर,
षिक्षाकर्मी संविदा!
वाह रे मंत्री!
कहॉं लुकाए रहे,
अपन कूटनीतिक दिमाक,
तहीं हर राखे हवस,
भ्रश्टाचार के नाक,
त जा संविदा पास्ट निकाल के,
पंचायत म धांधली करवा,
गॉंव म षांति काबर रहय,
गॉंव वाले मन ल लड़वा,
सोन-चिरइया राज के,
मैं हर ऑंव भोगी,
जेखर पाछू पाएव खुर्सी,
अब बनाहूॅं मैं ओही मन ल रोगी।।
———

13. गणेश मढ़ाओ योजना

कभू-काल के रखबो सोचेन गणेश,
मैं सुरेष दिनेश अउ रमेश,
फेर थैली रहिस हवय खाली,
अब गणेष के जिम्मेदारी,
कोन सम्हालही!
चारो झन मिलके बड़ सोचेन,
एक-दुसर के कान म,
आनी-बानी के बिचार खोंचेन,
ले-दे के होइस एक ठन फैसला,
डब्बा-डुब्बी तो नई मिलिस,
ले आएन एक ठन तसला,
तहॉं तसला ल धर के निकलगेन,
अउ लगात रहेन गणेष के जयकारा,
बीच-बीच म मन लगय त,
लगावत रहेन नेता मन के नारा,
गप नइ मारन गउकी,
नॉंदगॉंव ले गे रहेन चंउकी,
सांझ ले निकले रहेन होगे बिहिनिया,
एको पइसा मिलही तिही ल तो गनिहा!
जेखरे दुआरी म जान मांगे ल चंदा,
उही मन झझकाके कहय-
बंद करव धंधा!!!
आखिर म हार के,
बॉंस के जगहा रूसे ल गड़ियाएन,
गणेष भगवान ल बइठार के,
माड़ी ल मड़ियाएन,
अउ हाथ जोड़ के कहेन-
मैं सुरेश दिनेश अउ रमेश,
तोर अतके भक्ति कर सकत हन,
क्षमा करबे श्री गणेश !!!
——–

14. बेटा के बलवा

ददा हर बाबूगिरी म,
हला के पइसा सोंटत हे,
तभे तो बटा हर घेरी-बेरी,
हीरा-होंडा ओंटत हे,
दू नंबर के पइसा ल ददा हर,
मर-मर के कमावत हे,
वाह रे लायक बेटा!
ओला पिटरोल म उड़ावत हे,
जेती जाथे तेती ददा के राम-राम हे,
काबर के किसनहा बपरा मन के,
ओखरे से काम हे,
तभोले ददा हर किसनहा मन के
काम ल काम ल टरकात हे,
अउ पइसा मिलही कहिके,
गोठ ल अधरे-अधर बर्रात हे,
अच्छा आज किसनहा मन ला,
फॅंसाएवं कहिके मने-मन मुचमुचाथे,
घर जाके ऑफिस के गोठ ल,
अपन लइका मन ल बताथे,
बाई-लइका मन ला,
आनी-बानी के खवाथे,
अउ अपन हर गली-गली मेछराथे,
बड़े बाबू ऑंव कहिके,
गॉंव भर ल देखाथे,
उहू समय आथे,
जब वो डॉक्टर करा,
बाई अउ लइका ल धर के जाथे,
अउ दू नंबर के सोंटे पइसा ले,
दस गुना जादा म भोसाथे,
आनी-बानी के बीमारी म,
बाई-लइका के चटरही भुलाथे,
पइसा जम्मो सिरा जथे त,
उधारी लेके काम चलाथे,
किसनहा मन ल बाबू नई तड़पातीस,
त अइसन दिन हर काबर आतीस,
जादा नहीं संगवारी हो,
अतके मोर जुबानी ए,
आज के स्वार्थी दुनिया के,
अइसने तो कहानी हे।
———

15. रावड़राज के डबरा

विकास करहूॅं विकास करहूॅं,
कहिके भोंदत हे,
जनता हर माटी ए,
तभे तो लोंदत हे,
चुनाव के पहिली अइसनेच गोठियाथे,
तहॉं पॉंच साल तक मनीराम सोंटियाथे,
काय विकास करेहे ले तो बता,
ओखर करम के कथा ल मता,
डामरीकरण के भोभरा म,
तीस साल होगे सड़क ल खावत,
हर बरस भुरका कस,
रेती ल छिंचवावत,
फायदा का होइस!
डबरा के डबरा,
कस रे नेता!
नक्टा कुटहा अउ लबरा,
तीस साल म के जगहा,
दे हवय बिजली के खंभा!
चुनाव के बेरा दिखथे,
तहॉं पॉंच साल ले छू-लंबा,
बता तो के झन के,
गरीबी कारड बनवाय हे,
अरे! बनवाय हे तेखरो करा,
ठोमहा भर गनवाय हे,
अउ अभी संविदा में,
के झन योग्यता वाले के लगे हे!
जेन हर 70 अउ 80 गने हे,
उंखरे भाग हर जगे हे,
तेखरे सेती कहिथंव,
पापी मन ल मिलके काट डरवर,
अउ रावड़-राज के डबरा ल,
राम-राज ले पाट डरव।
——–

16. बाई के मया

ये दे सुघर-सुघर गोठियावत हे,
चटनी मोला लगावत हे,
एक तारीक के तनखा लाथॅंव,
घर म सिधवा-साउ कहाथॅंव,
एक तारीक के बाद रे संगी,
बेलना-डंडा के मार ल खाथॅंव,
तारीक उही फेर आवत हे,
चटनी मोला लगावत हे,
पढ़े-लिखे मोर बाई हावय,
किस्सा मोर दुखदायी हावय,
लइका-बच्चा के गोठ ल करथॅंव,
कहिथे ओखर बर टाईम हावय,
खा-खा के बड़ मोटियावत हे,
चटनी मोला लगावत हे,
सास-ससुर के सेवा बर तो,
चार हाथ के दुरिहा हे,
अपन ए.सी. के भितरी खुसरे,
उंखर छिदका कुरिया हे,
झगरा रोज मतावत हे,
चटनी मोला लगावत हे,
मुड़ ले एड़ी तक जेवर पहिरे,
बाई के षेखी कइसे कहि रे,
खाये बर भले कमी हो जावय,
हर महीना वो गहना लावय,
सम्हर-सम्हर इतरावत हे,
चटनी मोला लगावत हे,
पूजा-पाठ ल जानय नहीं,
बात ल मोर तो मानय नहीं,
कतको ओला मया जताथॅंव,
राम-सीता के बात सुनाथॅंव,
महाभारत रोज देखावत हे,
चटनी मोला लगावत हे।
——–

17. रिंगी-चिंगी

होइस बस चढ़े के मन,
त अइसन सम्हरेंव के पूछ झन,
लगाएव इसनो पाउडर अउ कंघी,
कपड़ा पहिरेंव रिंगी-चिंगी,
तहॉं ले निकलगेंव गात-गात गाना,
तैं मोर दिवानी मैं तोर दिवाना,
त रस्ता म मिलिस,
एक झन विदेषी छूरी,
कपड़ा-लत्ता ले टूरा दिखय,
हाथ-गोड़ ले टूरी,
खड़े-खड़े सोचे लगेंव,
कइसे आगे जमाना,
टूरा-टूरी एक होगे,
नइये कोनो ठिकाना,
ओतके बेर मोर मन के दिवानी के,
सपना हर टूट गे,
टूरी ल मैं देखते रहिगेंव,
मोर सपना हर टूट गे।
———

18. अंतस के भरभरी

घर के बड़े टूरा,
निकाल के नौ इंची छूरा,
कहत हे-ददा गो 50 म,
काम नई चलय,
निकाल ले तैं पूरा-पूरा,
छोटे टूरा घलो आके,
माखुर मल के फॉंकथे,
अउ चिल्ला के कहिथे-डोकरा!
मैं गल्लारा संग बिहाव करहूॅं,
अउ ओखरे संग जीहूॅं,
भले अकेल्ला मरहूॅं,
त ओखरे संग मोर बिहाव,
करबे कहिके आत हॅंव,
करारी गोठ गोठियादे,
नहीं तो महूॅं घर ले जात हॅंव,
तहॉं ले खात-खात मिक्चर,
आगे ओखर नाती,
मंुग म दरेबर छाती,
नाती कहत हे-बबा,
जा भंइसा ल दूसर करा धोवाले,
गरम भात ल मोला दे,
बासी तैं खाले,
बेटी तक आके कहिथे-बाबू,
मैं कब तक ले बनी म जाहूॅं,
मैं हर कमाके लांव,
अउ तूमन बइठे-बइठे खाहू!
टूरा-टूरी अउ नाती हर तो,
डोकरा ल बोइर कस झर्रा डरिस,
ओतको म डोकरी हर आके,
अपन अंतस के भरभरी ल,
बर्रा डरिस,
डोकरी कहिस-डोकरा!
कब तक ले मने-मन गुनबो,
चल वानप्रस्थश्रम जाबो,
के बॉंचे हे तेला अउ सुनबो,
इहॉं न कोनो गुड्डू हे,
न कोनो मुनिया हे,
कलियुग हर राजा ए,
मतलब के दुनिया हे।
——–

19. बिदेशी चोचला

बफे सिस्टम के चक्कर म,
किसनहा भाई पर गे,
त ददा-पुरखा के जम्मो,
कमई घलो ह झरगे,
बिना नेवता के आ-आ के,
हदरहा मन झेलिस,
किसनहा भाई के मुड़ म,
हला के लागा पेलिस,
जलेबी अउ रसगुल्ला,
हकन के बॉंचगे,
अड़हा-गोड़हा मन घलो,
अंग्रेजी नाच नाचगे,
एखर बाद कान चीप लीस किसनहा,
कोनो ल देहे बर टक्कर,
कभू नइ परवं बिदेशी चोचला,
बफे सिस्टम के चक्कर।
——–

20. ममादाई ह रोवय

ममादाई ह रोवय,
ऑंसू म मुह ल धोवय,
लइका ल सुग्घर पोसेंव,
गरीबी ल नई कोसेंव,
काट के छाती भरेंव पेट ल,
बीमारी बर मैं बेचेंव खेत ल,
मन म गुनत हे दाई,
रहि-रहि के जीव चुरोवय,
ममादाई ह रोवय,
सोंचिस बहू घर आही,
महू ल सुख बहुराही,
बेटा के बिहाव कराइस,
बहू ह रंग देखाइस,
बेटा होगे बहू के,
नई रहिगे दाई कहूं के,
रो-रो के ऑंखी फुलोवय,
ममादाई ह रोवय,
नौ महिना के करजा छोड़ेस,
बदनामी के चद्दर ओढ़ेस,
पर से नाता जोरे,
दाई के हिरदय टोरे,
कलियुग के पुतरा बनके,
दाई ल जियत सरोवय,
ममादाई ह रोवय,
पुन के आस सिरागे,
त पाप ल झन कर भारी,
कखरो नइये ठिकाना,
मरना हे संगवारी,
जा दाई के चरन ल धर ले,
जेन हर मलई ल तोर बर करोवय,
ममादाई ह रोवय।
———

21. छत्तीसग़िढया हिन्दी

बाई ल लाएंव शहर,
घुमाएंव चारो डहर,
मोर बाई रहिस देहाती,
चाकर-चाकर लगइस बिन्दी,
तहॉं मारिस छत्तीसगढ़िया हिन्दी,
मोला कहिस-तुम हमला,
चारो मुड़ा नई घुमाएगा,
तो हमारा मंता भोगा जाएगा,
मैं कहेंव बाई-घुमाहूं तोला सबो कती,
फेर तैं झन घुमा अपन मती,
अइसने कभू तैं हिन्दी बोलबे त,
संविधान ल खोले ल पर जही,
अउ जम्मो भाषा के प्रोफेसर ल,
छत्तीसगढ़िया हिन्दी बोले ल पर जही।
———–

22. सवनाही मेचका

दाई, दाई! ददा हर,
काबर बर्रावत हे,
घेरी-बेरी रहिके,
मेचका कस टर्रावत हे,
पूछथंव त कहिथे-दाई ल बला,
काय होगे ददा ल,
देख तो चल आ,
अरे बेटा! फिकिर करे के बात नोहय,
जब हमर बिहाव होत रहिस,
त खाय के बेर चिमनी बुतागे,
बरतिया मन मरत रहिन भूख,
लकर-धकर म पतरी तको खवागे,
तोर ददा अंधियार म,
पानी-पानी चिल्लात रहिस,
हकन-हकन के भात-साग ल,
खात रहिस,
अटकिस त मुॅंह होगे खुल्ला,
मेचका मन खुसरगे,
ओ दिन ले उसनिंदा म,
पानी-पानी बर्राथे,
अउ सावन आथे त मेचका बरोबर,
तोर ददा हर टर्राथे।
——–

23. चिखला

हिन्दी के बीच-बीच म अंगरेजी,
जइसे मनखे के मुड़ी म,
कुकुर के भेजी,
आगे तोपचंद कस भारी,
गलती कर के
कहत हे-आई एम सॉरी,
हमरो तो हवय,
सुग्घर माइ हिन्दी,
माटी के मर्यादा सुहागिन के बिन्दी,
हीरो-होन्डा के दिन आगे,
नन्दागे सायकल,
राम अउ सीता के,
नाव हवय-मोना अउ मायकल,
मंत्री के इंटरव्यू आत हे,
त हमन देखत हन,
टार दई! काहे के गोठियाथे,
हिन्दी म बोलही कहिथंन,
अंग्रेजी म सोटियाथे,
वाह रे भारत के सियान हो,
फिरंगी मन तो भारत म आके,
अंग्रेजी बोलत हें,
अउ बिदेष जाके तोर नीयत,
हिन्दी बर डोलत हे,
अरे! सुन लव गा मोर देष के भारती,
हिन्दी के चरन पखारव,
छोड़व अंग्रेजी के आरती,
अंग्रेजी के चिखला ल,
झन खुंदव भारत के पंडित,
संत मन के बनाय मर्यादा ल,
झन करव खंडित,झन करव खंडित।।
———–

24. महूॅं खड़े हॅंव

ए कका! देशी ल छोड़,
अंग्रेजी ल गटक,
एती-तेती झन बिचार,
मोरे चिनहा म ठप्पा पटक,
चार दिन बर तुंहर ले छोटे हॅंव,
तहॉं पॉंच साल बर महीं बड़े हॅंव,
देखे रइहव ददा-भाई,
चुनाव बर महूॅं खड़े हॅंव,
पुराना गोठ हे काबर,
गोठ नवा ल धर,
पॉंच सौ के पत्ती देत हॅंव,
जादा चिक-चिक झन कर,
अरे! परिवार के,
कका-बेटा संग लड़े हॅंव,
देखे रइहव ददा-भाई,
चुनाव बर महूॅं खड़े हॅंव।।
——–

25. जस चिल-चिल

जस चिल-चिल जस चिल,
एकल बत्ती मजा उड़ावय,
डारेक्ट वाले मजा उड़ावय,
मीटर वाले भरय बिल
जस चिल-चिल जस चिल,
गुरू के मंतरा चेला धरे हे,
चेला ह बनगे गुरू परे हे,
नवा टेलर जुन्ना ल सिखोवय,
घर म बइठ के चिरहा सिल,
जस चिल-चिल जस चिल,
चुनाव के बेरा म नेता ह आगे,
लेड़गा समारू मोटर म भागे,
मंत्री बनेके सपना बोहागे,
बंधाहे कोठा भॅंइसा ल ढिल,
जस चिल-चिल जस चिल,
दुनिया के फैसन म अंगरी उठावय,
जस-अपजस के करम सिखावय,
खुद के बेटी घूमत हे रथिहा,
सेंडिल पहिरे हे उंचहा हिल,
जस चिल-चिल जस चिल,
चारो मुड़ा म मोटर अउ गाड़ी,
महूॅं खिसिया के फेकेंव कबाड़ी,
मोटर के भोरहा म कूदेंव दनादन,
ऑंखी खूलिस त पाएंव साइकिल,
जस चिल-चिल जस चिल,
बेरोजगारी के लाइन लगे हे,
लाखन सिंह के भाग जगेहे,
खड़े-खड़े नौकरी तोर लगाहूॅं,
बेग भरके तैं घर म मिल,
जस चिल-चिल जस चिल,
जस चिल-चिल जस चिल।।
———

26. कुकुरवाधिकार

तैं कइसे कहि देबे धिक्कार हे,
अरे! सबो कुकुर ल भूंके के,
बरोबर अधिकार हे,
फलाना के बिहाव होइस,
फेर बरात नइ लेगिस,
त आनी-बानी बोले के,
का दरकार हे, फेर,
सबो कुकुर ल भूंके के,
बरोबर अधिकार हे,
फलाना के होय पंच,
चाहे ढेकाना के सरपंच,
जउने आगे लाइट म,
ओखरे होगे मंच,
काम-धाम ठीक नइये त,
चमचागिरी के काबर भरमार हे!
फेर,सबो कुकुर ल भूंके के,
बरोबर अधिकार हे,
फलाना घर झगरा होवत हे,
त फलानिन हर भाग गे,
पारा भर चारी के होगे जुराई,
सभापती हे झुरगु अउ टेटकू के बाई,
अरे! अपन ल देख,
दूसर के चुगली म,
तोर का व्यापार हे,
फेर,सबो कुकुर ल भूंके के
बरोबर अधिकार हे।।
———

27. पइसा

आय पइसा-आय पइसा,
जेती देखव हाय पइसा,
पइसा हर दाई-ददा,
पइसा हर भगवान,
मनखे के मोल नइये,
पइसा हे महान,
बाबू के आफिस म,
जाबे बिना पइसा,
गोठियाही वो हर बाद म,
पहिली मारही जइसे भंइसा,
जीयत भर कमाये पइसा,
मिलगे तैं हर माटी म,
जेने ल खवाये संग म,
तेने नई गिसा तोर काठी म।।
———

28. तोर मन

भगवान बनादे चिरई मोला,
बादर म उड़ जाहॅूं,
दुनिया के मैं छोड़ के चक्कर,
तोर कोरा म आहूं,
तोर मन हे त मछरी बना,
गुड़गुड़ गोता लगाहॅूं,
केंवटा राजा पकड़ही मोला,
ओखर रोजी – रोटी चलाहूं,
तोर मन हे त मेचका बना,
टरर-टरर टर्राहॅूं,
बदर राजा ल नेवता देके,
पनी ल गिरवाहॅूं,
तोर मन हे कुकुर बना,
भॅूंक – भॅूंक नरियाहूॅं,
रखवारी करहॅूं जाग – जाग के,
मालिक के सेवा बजाहॅूं,
तोर मन हे धान बना,
चाउर घलो बहुराहॅूं,
भूॅंसा घलो बन जाहॅूं मैं हर,
गाय – गरूवा ल जियाहूं,
तोर मन हे त पनही बना,
कॉंटा ले सब ल बचाहूं,
चिरा जहूं मैं तभोले देवता,
कबाड़ी के काम आहूॅं,
तोर मन हे त कुकरा बना,
कोट – कोट नरियाहॅूं,
फेर झन बनाबे ‘मनखे‘ मोला,
बिगड़े करम म बोजाहॅूं,
मरे म तोला आके प्रभु मैं,
कइसे मुॅंह ल देखाहॅूं।
——–

29. होही भरती

जल्दी होही गुरूजी के भरती,
तैं चिन्ता झन कर,
जल्दी होही गुरूजी के भरती,
भले होगे साल पूरा,
भले होगे साल पूरा,
भले होगे परीक्षा के झरती,
फेर तैं चिन्ता झन कर,
जल्दी होही गुरूजी के भरती।
का करबे!
तुंहरे चिन्ता म टेकत रहेन,
राजनीति के रोटी ल सेकत रहेन,
षिक्षा के स्तर ल नंगद के बढ़ाबो,
गरीब के लइका ल फीरी म पढ़ाबो,
अरे! सुक्खा जलेबी ल बनाबो इमरती,
तैं चिन्ता झन कर, जल्दी होही गुरूजी के भरती।
अभी हमर आनी – बानी के योजना हे,
सबो ल विकास के भरका म बोजना हे,
गॉंव – गॉंव सहर कस बनाबो,
करिया – बिलवा ल घलो उज्जर चमकाबो,
उहू मेर हरेली होही,
जेन भुंइया होगे परती,
तैं चिन्ता झन कर,
जल्दी होही गुरूजी के भरती।
बेरोजगरिहा मन बर आही सुनहरा मौका,
चारो मुड़ा विकेन्सी के लगाबो चौका,
नौकरी बर पहली ले कर लेबे तैं सेटिंग,
अउ मन हो जही आऊट, तोरे रइही बेटिंग,
भ्रश्टाचार चुरमुरा के समा जही धरती,
तैं चिन्ता झन कर,
जल्दी होही गुरूजी के भरती।
——–

30. छ.ग. के छॉंव

छ.ग. के छॉंव देखाथन,
रिंगी – चिंगी गॉंव देखाथन,
कॉंटा मन ल पॉंव देखाथन,
बइठे हे सहिनाव देखाथन,
लइका ल बने गोठ सुनाथन,
भुंइया के जम्मो खेल खेलाथन,
अटकन – बटकन – दही – चटाकन,
फुगड़ी, ढेलवा, समारू, फेकन,
बाई – गोसइया संघरा कमाथन,
बासी – चटानी बइठ के खाथन,
बेरा पहौती ददरिया सुनाथन,
रथिहा बोरे फेर हलाथन,
बिहिनिया बेरा खेत म जाथॅंन,
जिनगी के हर गीत ल गाथन।।
चल दइहान म गरूवा ठोके,
छेरछेरा के चाउर झोके,
जोंधरा – लाड़ू खाबो सउघे,
लाड़ू देख के कूकुर भूंके,
चल न दाऊ के पैरा जाबो,
मरार बारी म बिही चोराबो,
बद्दी आही त रोबो – गाबो,
गम्मत आहे जघा पोगराबो,
धुर्रा – माटी खेल के आबो,
दाई के गारी चल न खाबो।
बिसाइन दाई के चौरा साजे,
टिकली – फुंदरी ओमेर आगे,
नोनी – दाई मन सब जुरियागे,
लेलिन बाला भाव पटागे,
गोमती बोले पानी भरगे,
मंटोरा देखय साग जरगे,
कुंदरू बड़ लट – लट ले फरगे,
कोहड़ा माढे – माढे फरगे,
मितानिन घर म पंगत परगे,
चल न दाई सगा मन झरगे।
बर के पेड़ अउ छॉंव बनइया,
अंगना – कुरिया – गॉंव बनइया,
लइका मन के नावा बनइया,
सबके रद्दा दॉंव बनइया,
तुंहरे सुंता काम म आही,
छॉंव म आही घाम म आही,
हर पहरो के नाव म आही,
राम – सीता के गॉंव म आही।
मोर हिरदय के गोठ तो सुनले,
करत हवंव पोट – पोट तो सुनले,
मन ल झन कर छोट तो सुनले,
लगय नहीं तोला नोट तो सुनले,
अंतस ल कर पोठ तो सुनले,
मोर मया हे रोठ तो सुनले,
मोर मन म नइये चोर ओ गोरी,
मोर मन हे बस तोर ओ गोरी,
दया तो कर तैं थोर ओ गोरी,
मया के मधुरस घोर ओ गोरी,
बांध मया के डोर ओ गोरी,
मर जाहूं बिन तोर ओ गोरी।
माटी के चल मान बढ़ाबो,
हिरदय के फूल – पान चढ़ाबो,
ये धरती के सेवा बजाबो,
तन से चल अब धन उपजाबो,
सम्मत – सम्मत रास ल पाबो,
खात – कमावत फेर मेछराबो,
नांगर धरबो चल अटियाबो,
खनती कोड़े ल खेत म जाबो,
अपन गॉंव ल चल सहराबो,
किस्सा भुंइया के चल गोहराबो,
रोज कमाबो रोज के खाबो,
तभे भुंइया के बेटा कहाबो।
——–

31. उत्ती के बेरा

परसा ह डोलत हे,
कोयलिया बोलत हे,
फागुन के सुआ मोरे,
मधुरस ल घोरत हे,
अमुआ ह मउरत हे,
पड़की ह दउड़त हे,
देखव न कइसे संगी,त्र
घुरूवा ह बहुरत हे,
बेंदरा ह हूकत हे,
कूकुर ह भंूकत हे,
संझा के बारे आगी,
गोसइनिन धूंकत हे,
कॅंउवा अउ चियॉं बोले,
संगी अउ गीयांॅ बोले,
काबर तैं छोड़े मोला,
बइरी ल भुंइया बोले,
मोर संग मितान बदले,
गउकिन ईमान बदले,
जोहत हॅंव रस्ता तोरे,
भोजली ले आन बदले,
गंगा तो मन म हावे,
जमुना तो मन म हावे,
काकर हे बदना संगी,
देवता तो मन म हावे,
तोरो तो डेरा होही,
बारी म केरा होही,
रथिहा पहाही जोही,
उत्ती के बेरा होही।
——

32. हरेली

सखी मितान अउ सहेली,
मिल-जुल के बरपेली,
खाबो बरा-चिला अउ,
फोड़बो नरियर भेली,
आज कखरो नई सुनन संगी,
मनाबो तिहार हरेली।
——–

33. दूज के चंदा

दूज के चंदा हर,
उज्जर होके आय हवय,
चारो मूड़ा के तिहार,
मोर हिरदय ल भाय हवय,
भाई-दूज के सुग्घर लगिन म,
ब्हिनी मोला बलाय हवय।
——-

34. अकादशी

खई-खजेना बरोबर,
स्बके गुरतुर बोली,
जम्मो गली-खोर म,
सुग्घर-सुग्घर रंगोली,
दीया बरत हे,
ए पार ले ओ पार,
अंतस ल कर दिस गदगद,
अकादसी तिहार।
——-

35. निसैनी

छ.ग. के फुलवारी म,
नौ ठन जिला फुलगे,
बड़े मन के कहना हे,
विकास के रद्दा खुलगे,
फेर साहित्य के खदान हवय,
गरीबी के कुरिया म,
अउ आघू बढ़े के निसैनी,
हवय बिकट दुरिहा म।
——-

36. प्रह्लाद

कोनो कहिथे राम,
कोनो कहिथे श्याम,
वोहिच हर बनाथे,
सबके बिगड़े काम,
चारो मुड़ा म बइठे हवय,
कृपा धरे हे लाद,
पाना हे दर्शन तोला त,
बन जाना प्रह्लाद।

37. राजनीति

आजकाल के राजनीति,
बड़ा सुग्घर खेल होगे,
सुक्खा-सुक्खा रोटी मन,
चना-मुर्रा-भेल होगे,
कबाड़ी मोल के डब्बा मन,
उंचहा-उंचहा सेल होगे,
अउ जेने ल समझेन डारा,
उही मन अमरबेल होगे।

38. नवा बछर

छ.ग. महरत हे गोंदा के डलिया म,
मन मोर जुड़ागे गहॅूं के दलिया म,
टाहलू के हाना म सकपकागे लइका,
मुंधियार के होय ले देवागे फइका,
फेर काली जुहर आबे संगी,
नेवता झारे-झार हे,
मोर नानकुन सोनहा गॉंव म,
नवा बछर के तिहार हे।
——-

39. गुन के देख

मुरई-भांटा पताल म,
राहेर के बटकर चुरे हे,
सिल-लोढ़ा के चटनी म,
दाई के मया घलो घुरे हे,
हकन के खा अउ जा,
गली-खोर म मेछराबे,
झन जाबे बिदेस संगी,
जिनगी भर पछताबे।
——

40. चाकर बिचार

अपन बिचार ल चाकर तो कर,
तहॅं दुनिया तोर आघू खुदे हबरही,
भेदभाव के लबेदा तो छोड़,
मया के बोइर अइसनेहे झरही,
मितानी के एक थरहा तो लगा,
बइरी रूखुवा मन मुरझाय परही,
दूसर बर थोरकिन जी के तो देख,
कोरी-खरिका मन तोर बर रोज मरहीं।
——

41. श्रृंगार अउ पीरा

साहित्य के चरपा कुढ़ाहे त,
जम्मो रस के बोझा जोरे होही,
मया के भाजी, पीरा के चटनी,
अउ अंतस ल घलो बोरे होही,
बेनी के कुंदरा म, बारी के कुंदरा म,त्र
हिरदय के ठेकवा मोरे बर फोरे होही,
अपन रूप के चुचुवावत सुरूवा घलो,
मोरेच मितवई बर घोरे होही,
फेर पिरावत रइही दाई के छाती,
त श्रृंगार के गोठ थोरे होही।
——–

42. जीव के छुटौनी

खुषी-खुषी बड़ मेछरावत रहेंव मैं,
तोर संग मया करके पछतौनी होगे,
तोर मीठ-मीठ भाखा म तोपागे मोर ऑंखी,
तोर हिरदय के छानही ठगौनी होगे,
तोर अंतस ल तरिया समझ भोभरागे मन-मछरी,
मछरी ल मारे बर मतौनी होगे,
तोला पहुॅंचे म होइस थोरकेचकिन बेरा,
ओतकेच बेर मोर जीव के छुटौनी होगे।
——–
43. पसार दिये तैं
काली महरत गोंदा रहेंव तोर अंगना के,
आज सुखागेंव त बहिरी बहार दिये तैं,
मैं तो छॉंव बर माढ़े रहेंव तोर मुड़ म टुकना,
जान बोझा हे मोला कचार दिये तैं,
मैं बजात रहेंव तोर जस के मंजीरा,
बीच बजरिया मोर मरजाद उघार दिये तैं,
तोरे भरोसा म बूता उठा लेंव,
ठक-ठक ले जांगर पसार दिये तैं।
——-
Manoj Kumar Shrivastava
मनोज कुमार श्रीवास्तव
शंकर नगर नवागढ़
जिला बेमेतरा, छ.ग.
मो. 8878922092