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कविता

मनोज कुमार श्रीवास्तव के गियारा कविता

1.
झन ले ये गॉंव के नाव

जेखर गुन ल हमन गावन,
जेखर महिमा हमन सुनावन,
वो गॉंव हो गेहे बिगड़हा,
जेला देख के हम इतरावन,
कहत रहेन शहर ले बने गॉंव ,
बाबू एखर झन ले नाव,
दूसर के चीज ल दूसर बॉंटय,
उल्टा चोर कोतवाल ल डॉंटय,
थोरकिन म झगरा होवत हें,
दूसर मन बर्राय सोवत हें,
अनपढ़ मन होशियार हें,
साक्षर मन गॅंवार हें,
लइका मन हें अतका सुग्घर,
दिन भर खावंय मिक्चर,
दिन के तो पढ़े ल नई जावंय,
रात के देखयं पिक्चर,
गॉंव बिगड़इया मनखे के,
नाव हवय भोंगा,
ओखर ले बाॅंचगे तेला,
पूरा करत हे पोंगा,
इही हाल हे गॉंव के गॉंव ,
झन ले बाबू ये गॉंव के नाव।।
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2
ठलहा बर गोठ

एदारी नगर प्रतिनिधि,
कोन हर बनही,
ओही हर बनही,
जेन हर गनही,
एहू हर पूछे के बात ए,
तहॅं गन देबे त,
रात ह दिन अउ,
दिन ह रात ए,
एक झन मनखे चुनाव जीतके,
खुर्सी म बइठगे,
खुर्सी म बइठिस तहॉं,
मुरई कस अइठगे,
अब आन ल बइठारही,
चार महीना बाद ,
वोहू ला उतारही,
ए हर नगर प्रतिनिधि के नोहे,
नांगर प्रतिनिधि के चुनाव ए,
बइला सुखागे त कोंटा म बॉंध दे,
नवा बइला लाके जुड़ा म फांद दे।।

3
हद करथे बिलई

हद करथे बिलई,
अपन खाथे मलई,
अउ खली छोड़य कलई,
घर में लगा के तारा ल,
चल देबे आन पारा ल,
तभोले बिलई हर,
झड़क देथे झारा ल,
छानही बरेंडी मियार ले,
कूदत फांदत आथे,
कोनो मेर ले कइसनों करके,
घर में खूसर जाथे,
दूध-दही ल खाके कहिथे,
बॉंचगे तेला चाटिन,
अपन-अपन पिलवा ल लाके,
सबो झिन ल बॉंटिन,
आखिर गुन के न जस के,
कतको मरबे भलई,
हद करथे बिलई,
अपन खाथे मलई,
अउ खाली छाड़य कलई ।।
——
4
बिजली

चारो कोती बिजली के,
धकाधक हे सप्लाई,
मीटर वाले हे कम,
डारेक्ट के हे कमाई,
मोरो घर हे मीटर,
फेर वोल्टेज हवय कम,
हकन के बिजली बिल,
पटा के मर गेन हम,
बिजली के वाल्टेज कम,
बाई के हवय 440,
न फ्यूज न कट-आउट,
कोन जनी दाई-ददा,
कइसे सम्हालीस,
50ः बाई मन हर,
गोसइया वायर तना डरे हे,
अउ सुग्घर-सुग्घर घर ल,
132 के.व्ही. बना डरे हे।।
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5
चटकारा

घर म खा लीस,
पी लीस डकार दीस,
ओतको म ताकाझांकी,
करत हे परासी घर,
अउ कोलकी-कोलकी जाके,
खोजत हे भंडारा,
ए जीवन काय ए ! चटकारा,
हटर-हटर करई म,
बीतगे जिंदगानी,
पइसा के खातिर करे,
चोरी-चमारी बइमानी,
सियानी के बेरा म,
करे नहीं सियानी,
अब ढलती उमर म,
सिरागे सब चारा,
ए जीवन काय ए ! चटकारा,
सुआरी लइका के भोभरा म,
सुग्घर परगे संगवारी,
चारो मुड़ा घूम-घूम मछराए,
अड़बड़ मनाये तैं तिहारी,
मेहमानी रहिस एक झन के,
तभो पेलेव झारा-झारा,
ए जीवन काय ए ! चटकारा,
चारो मुड़ा रहिस चिखला,
तभोले आके धॅंसगे,
जीवन भर फॅंसाए दूसर ल,
अब अपने-अपन तैं फॅंसगे,
भुॅंइया म गोड़ तोर,
माढ़बे नइ करिस,
अउ अब कहत हस,
मोला उबारा,
ए जीवन काय ए ! चटकारा ।।
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6
बस्तरिहा

मोर भाग हवय धनभाग सहीं,
आजे जीयत हॅंव आज सहीं,
सुख-सुविधा ले कोसो दुरिहा,
अनपढ़ मनखे सुक्खा नंगरिहा,
दार मिलगे त तिहार हे मोर बर,
नई ते बथुआ साग सहीं,
मोर भाग हवय धनभाग सहीं,
दुनिया बर मैं कोसा बिनहूं,
उघरा रइहूं भोमरा जरहूं,
बड़हर होय के सपना जरगे,
गरिबहा जनम के दाग सहीं,
मोर भाग हवय धनभाग सहीं,
योजना के सुर्रा म बोहागेंव मैं,
विकास के बियासी म धोआगेंव मैं,
धनुस-बान के बनगे फइका,
मैं बनगेंव हिरना के लइका,
छुटावत हे त छुटावन दे,
कोनो जनम के लाग सहीं,
मोर भाग हवय धनभाग सहीं,
आजे जीयत हॅंव आज सहीं।।
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7
अंतस के पीरा

सुआ के कलगी म,
परसा के फुलगी म,
धरसा अउ खार म,
तरिया के पार म,
मोर धरती के चिनहा हे,
नरवा के धार म,
फेर हमर गोठ के,
खींचातानी म,
विचार के भिथिया,
धसकावत हे,
गोड़ चपके भोरहा म,
छ.ग. के टोटा मसकावत हे।।
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8
भुँजुवा संस्कृति

छत्तीसगढ़ के बड्डे म,
नवा-नवा होगे जम्मो,
डोकरा बनगे माइकल,
डोकरी बनगे कम्मो,
ओखरो ले जादा,
लइका मन के टेस,
मुंह म सिगरेट,
अउ फटफटी के रेस,
भुंजागे परंपरा,
संस्कृति होगे राइल,
इंग्लैंड के हवय जींस,
अउ चाइना के मोबाइल,
मया-पीरा अउ एकता,
होवत हे खॅंड़िया-खड़िया,
कहां हवय कहइया मन,
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया।।
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9
तोला छत्तीसगढ़ी आथे!

तोला छत्तीसगढ़ी आथे!
मुरई-भाटा के साग हर ,
तोला तो अड़बड़ मिठाथे,
फेर तोला छत्तीसगढ़ी आथे!
अंग्रेजी के मोट्ठा पोथी ल,
धरे हवस कुरिया म,
अउ अपन राज के भाशा बर,
तोर जी तरमराथे ?
तोला छत्तीसगढ़ी आथे !
खाये-खेले बनाए संगवारी,
पहली fकंदरेस बारिच-बारी,
अब बाढ़ गे हवस डंग-डंग ले,
त ओही बारी के सुरता भाथे ?
तोला छत्तीसगढ़ी आथे !
हमर भुंइयां होगे पोठ,
त होवत हे कइठन गोठ,
फेर ए भुंइयां बर कोनो,
आंय-बांय गोठियाथे,
मंता तोरो भोगाथे ?
तोला छत्तीसगढ़ी आथे !
ददा के घलो बाढे़ हे टेस,
लइका दउड़त हे,
कुसंस्कृति के रेस,
अपन पढ़े सरकारी स्कूल म,
अउ लइका ल अंग्रेजी म पढ़ाथे,
फेर कभू लइका ल पूछे हवस ?
तोला छत्तीसगढ़ी आथे !
कमाये-खाये गे हवस दिल्ली-पूना,
उहां के रंग म बुड़ गेस कई गुना,
आखिर म आये अपनेच माटी,
काम आइस खूरा,
अउ काम अइस पाटी,
खूरा-पाटी म तोर,
नींद बने झमझमाथे,
फेर गुनके देख,
तोला छत्तीसगढ़ी आथे !
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10
फेसन

रगबग ले छाहे मोर,
गॉंव के फेसन,
तरी म आटा अउ,
उप्पर म बेसन,
कोंटा बनगे लवर पांइंट,
कोलकी बनगे हिल स्टेशन,
ददा धरादिस मोबाइल,
अउ भेजदिस टिवसन,
टूरा-टूरी के समस्या के,
होगे साॅल्यूशन,
चोंगी पीके टूरा,
ददा के नाव करत हे रोशन,
टूरा-टूरी भगा गे उढ़रिया,
वाह रे टिवसन!
वाह रे टिवसन!
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11
कतका सुग्घर बिदा

नानकुन बिचारी नोनी,
गली-गली लगइस चक्कर,
तहॅं ले कभू जाके,
आधा ठोमहा मिलिस शक्कर,
दाई गे हवय खेत,
साइड म गे हवय ददा,
घर म तो काfहंच नइये,
आ गे हवय सगा,
ब्योहारी तो करना हे,
काम ल पुरकाना हे,
काहीं नहीं त चहा देके,
सगा ल सरकाना हे,
मंडल हर बनी नइ ढिले हे,
अउ साइड के पइसा नइ मिले हे,
कोन जानत हे नोनी के घर,
चाउर दार कबके झरे हे,
भूरी तापे बर आगी घलो,
बरे हे के नइ बरे हे,
नोनी चिरहा चैनस ल देखके,
टकर्रा मन आंखी ल सेंकत हे,
अउ पेट हर कब के चिराहे,
तेला कोनो कुकुर नइ देखत हे,
कोनो नइ पूछय नोनी ल,
खाय हस के नहीं,
पूछ लीस त धनिया काकी,
उही भर सहीं,
काकी के कतका सुग्घर चाल हे,
फेर उहू हर का करय,
ओखरो तो नोनी कस हाल हे,
फेर सगा हर ए बात ल,
कहाॅं जानत हे,
सगा हर तो बिहिनिया के आय,
खटिया म लात तानत हे,
तभोले नोनी हर कतका चंट,
आरा-पारा ले चुपे,
चाउर-दार बरो लिस,
दाई-ददा कमाके आय नइये,
सगा ल बिदा देके झरो दिस।।
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मनोज कुमार श्रीवास्तव
शंकर नगर नवागढ़, जिला-बेमेतरा
छ.ग. मो. 8878922092