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गुड़ी के गोठ

मन के सुख

अंजली दीदी फूफू दीदी संग माटी मताए अउ गारा अमरे बर जावय। तेकर पाछू एक झन डॉक्टर इहां झाड़ू पोछा के काम करे लागीस।
इहें वोला पढ़े अउ आगे बढ़े के माहौल मिलिस। ऊंहा के डॉक्टर अउ नर्स मन ले मिलत प्रोत्साहन के सेती वो ह आया, फेर नर्स अउ फेर नर्स ले डॉक्टर के पदवी तक पहुंचगे। अब नौकरी छोड़के अपन अस्पताल चलावत हे। अब वो ह माटी मताने वाली अउ झाड़ू पोछा लगइया अंजली नहीं, डॉक्टर अंजली हे।
‘भोला… ए भोला.. लेना अउ बताना अंजलि के कहिनी ल’ – जया फेर लुढ़ारत बानी के पूछिस।
भोला कहिस- ‘अंजलि जतका बाहिर म दिखथे न, वोतके भीतरी म घलोक गड़े हावय। एकरे सेती एला नानुक रेटही बरोबर झन समझबे। एकर वीरता, साहस, धैर्य अउ संघर्ष ह माथ नवाए के लाइक हे, तभे तो सरकार ह ‘नारी शक्ति’ के पुरस्कार दे खातिर एकर नांव के चिन्हारी करे हे।’
-‘हहो जान डरेंव भोला, फेर सरकार के बुता म तोरो योगदान कमती नइए। आज अंजलि ल जेन सब जानीन- गुनीन, सरकार जगा सम्मान खातिर वोकर नांव पठोइन, सब तोरे सेती तो आय। तैं कहूं वोकर बारे में लिख-लिख के पेपर मन म नइ छपवाए रहिते, त खदान के हीरा कस उहू कोनो मेर लुकाए-तोपाए रहितीस।’
– ‘तोर कहना सही हे जया, फेर लिखे-पढ़े वोकरे बारे म जाथे, जेन वोकर योग्य होथे। कोनो भी अयोग्य मनखे खातिर कुछ लिखबे, त एकर ले लेखनी के अपमान होथे, एकर सेती ए कहई ह सही नइए के अंजलि ल ‘नारी शक्ति’ के पुरस्कार मोर सेती मिले हे। अरे भई, मैं वोकर बारे म नइ लिखतेंव त कोनो अउ लिखतीस, आखिर हीरा के चमक अउ फूल के खुशबू ल कोनो रोके-तोपे सकथे का? आज नहीं ते काल वोकर चमक दिखतीस, फेर दिखतीस जरूर।’
– ‘एकरे सेती तो मैं तोर मेर केलौली करत हौं, बताना अंजलि के कहिनी ल।’ जया फेर गोहराइस।
-‘त कहिनी ल सुनकर के कइसे करबे?’
– ‘अई कइसे करबो, हमू मन वोकरे सहीं आत्मनिर्भर बने के उदिम करबो। कब तक पर भरोसील रहिबो। अपन जांगर म कमाबो अउ अपन जांगर म खाबो।’
भोला ल जया के ए बात अच्छा लागीस।
वो कहीस- ‘मैं चाहथों जया, के जम्मों नारी परानी मन आत्मनिर्भर बनयं। अपन पांव म खडा होवयं। आज हमला जेन नारी शोषण अउ अत्याचार के किस्सा सुन ले मिलथे, वोकर असल कारण आय बेटी मनला पढ़ा-लिखा के आत्म-निर्भर नइ बनाना। मोला समझ म नइ आवय आज के पढ़े-लिखे जमाना म घलो पर के धन कहिके वोकर शिक्षा अउ रोजगार खातिर काबर धियान नइ दिए जाय।’
भोला लंबा सांस लेवत कहिस- ‘अंजलि संग घलोक तो पहिली अइसने होए रिहीसे। दाई-ददा मन जइसे खेती-मंजूरी करइया रिहीन हें तइसने उहू ल बना दिए रिहीन हें। ददा छोटे किसान रिहीसे तेकर सेती वोकर दाई ल घलोक गृहस्थी के गाड़ी तीरे खातिर अपन खेती-किसानी के छोड़े आने बुता करे ले घलो लागय।’
-‘अच्छा आने बुता घलोक करय, कइसन ढंग के।’ जया अचरज ले पूछ परीस।
भोला कहिस- ‘हां, अपन खेत के बुता ल करे के बाद वोकर दाई ह जंगल ले लकड़ी अउ कांदी-कुसा लान के तीर के शहर में बेचे ले जावय। अइसने वोकर ददा ह खेती के बुता के बाद घर-उर बनाय के ठेका लेवय, कुली-मिस्त्री संग खुदो राजमिस्त्री के बुता करय। अइसन म तैं खुदे सोच। सोच सकथस जया तब अंजलि अउ वोकर भाई-बहिनी मन कतका अकन पढ़त रिहीन होहीं?’
– ‘अई… अइसन म कोनो कहां पढ़े सकहीं!’
– ‘हां, तैं सही काहत हस जया, चार झन नान-नान भाई-बहिनी म सबले बड़े अंजलि भला कइसे पढ़े सकतीस। चौथी तक पढ़े पाइस तहां ले उहू ह अपन दाई संग जंगल जाए लागिस, लकड़ी अउ कांदी लाने खातिर। अइसने करत-करत सज्ञान होए लागिस त दाई ददा मन तीर के गांव म वोकर बिहाव घलो कर दिन।’
कांचा उमर म भला बिहाव के अरथ ल कोनो कहां जानथे। न बाबू पिला, न छोकरी पिला। एकरे सेती अंजलि ससुरार म तो चल दिस फेर जांवर-जोड़ी के सुख ल नइ जानीस। ठउका बिहाव के होत वोकर जोड़ी ल पढ़ई करे खातिर शहर भेज दिए गीस, अउ अंजलि घर के संगे-संग खेत-खार के बुता म झपवो दिए गीस। ये बीच अंजलि ल अपन ससुर के गलत नियत के तीर घलोक सहे ल परीस एकरे सेती वो ह अपन जोड़ी ल मना-गुना के मइके म आके रेहे लागीस।
दमांद बाबू जब पढ़-लिख के हुसियार होगे त नौकरी करे के उदिम करे लागिस। फेर वोकर दाई-ददा तो निच्चट अड़हा, काकर तीर जाके वोकर बारे म गोहरातीस! एकरे सेती वोला अपन ससुर तीर जाए ले कहिस। वोकर ससुर माने अंजलि के ददा ह घलोक पढ़े-लिखे नई राहय, फेर घर-उर बनाए के ठेकादारी करत शहर के जम्मो बड़े-बड़े अधिकारी मन संग चिन्हारी कर डारे राहय। अपन इही चिन्हारी के सेती वोकर दमांद ल सरकारी ऑफिस म नौकरी लगवा दिस। अउ अंजलि के अपन ससुर के सेती ससुरार नइ जाए के जिद के सेती दमांद ल घलोक अपने घर राख लेइन।
अपने जोड़ी संग रहे के सुख अंजलि ल जादा दिन नइ मिल पाइस। काबर के ससुर ऊपर लांछन लगाए के सेती वोहर मने-मन म तो चिढ़ते राहय ऊप्पर ले शहर म पढ़त खानी उहें के एक झन छोकरी संग वोकर आंखी चार होगे राहय। एकरे सेती जब वो ह नौकरी म परमानेंट होइस, अउ वो शहरिया छोकरी संग बरे-बिहाय सही बेवहार करे लागिस। अंजलि ए सबला के दिन सहितीस? आखिर वोला मजबूर होके मइके म बइठे बर लागिस।
अब अंजलि ल अपन जिनगी अंधियार बरोबर लागे लागीस, वो सोचिस-सिरिफ भाई-बहिनी मन के सेवा अउ कांदी-लकड़ी बेच के जिनगी ल पहाए नइ जा सकय, तेकर ले फूफू दीदी जेन बड़का शहर म रहिथे, तेकरे घर जाके शहर म कुछु काम-बुता करे जाय।
– ‘अच्छा… तहां ले अंजलि अपन गांव ल छोड़ के शहर आगे।’ जया पूछिस।
– ‘हहो जया, इही शहर म तो मोर वोकर संग भेंट होइस। तब ले अब तक मैं वोकर जीवन के संघर्ष यात्रा ल देखत हावौं।’
– ‘वाह भोला… वो तो आखिर पढ़े-लिखे नइ रिहीसे त फेर एकदम से ये बड़का काम ल कइसे धर लिस होही?’
-तै सही काहत हस जया…अंजलि ल ये बड़का जगा मा पहुंचे खातिर अड़बड़ मिहनत करे ले लागे हे। शुरू-शुरू म तो जब वो ह शहर आइस त रेजा के काम करीस। कोनो जगा घर उर बनत राहय तिहां अंजली दीदी फूफू दीदी संग माटी मताए अउ गारा अमरे बर जावय। तेकर पाछू एक झन डॉक्टर इहां झाड़ू पोछा के काम करे लागीस। इहें वोला पढ़े अउ आगे बढ़े के माहौल मिलिस। ऊंहा के डॉक्टर अउ नर्स मन ले मिलत प्रोत्साहन के सेती वो आया, फेर नर्स अउ फेर नर्स ले डॉक्टर के पदवी तक पहुंचगे। अब नौकरी छोड़के अपन अस्पताल चलावत हे। अब वो ह माटी मताने वाली अउ झाड़ू पोछा लगइया अंजली नहीं, डॉक्टर अंजली हे।
– ‘सिरतोन म भोला, लोगन के विकास के किस्सा तो सुनथन फेर एकदम से कोइला ले हीरा के दरजा पावत कमतीच झन ल देखथन।’
– ‘तैं सही काहत हस जया, तभे तोसरकार ह वोला ‘नारी शक्ति सम्मान’ दे के निर्णय लिए हे। अवइया राष्ट्रीय परब म वोला हमर राज के मुख्यमंत्री ह शासन डहर ले सम्मान करही।’
– ‘फेर भोला… वोला अपन ये संघर्ष के दिन म अपन जोड़ी के सुरता नई आइस?’
– ‘दगाबाज के सुरता कर के काय करतीस?’
– ‘तभो ले जिनगी म एक संगवारी के, एक परिवार के जरूरत तो घलोक होथे न, तभे तो जिनगी के आखरी घड़ी ह पहाथे।’
– ‘हां जया तोर कहना सही हे, फेर अब वोकर परिवार तो अतेक बड़े होगे हवय के वोला एक ठन घर म सकेले नई जा सकय। जतका झन के दवई पानी करथे, रोग राई ले छुटकारा देवाथे, सब वोकर परिवार के हिस्सा बनत जाथें।’
– ‘हां.. ये तो भौतिक परिवार होइस। फेर अंतस के सुख तो कुछु अऊ खोजथे न।’
– ‘तोर कहना सही हे जया, फेर अंजलि एकरो रस्ता निकाल डारे हे। मन के सुख अउ शांति के खातिर वो ह अपन तीर-तखार के कलाकार मन ला जोर के एक ठन सांस्कृतिक समिति बना डारे हे। तैं तो सुनेच होबे के संगीत ह आत्मा ल परमात्मा तक पहुंचाए के सबले सुन्दर अउ सरल रस्ता होथे, एकरे सेती एला असली सुख अउ शांति के माध्यम कहे जाथे।’
-‘अच्छा-अच्छा त अंजलि ह डॉक्टरी के संगे-संग कलाकारी घलोक करथे।’
-‘हां जया… तन के सुख के संगे-संग वो ह लोगन ल मन के सुख घलोक बांटथे।’
सुशील भोले
41-191 डॉ. बघेल गली
संजय नगर, टिकरापारा रायपुर