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मन लागा मेरो यार फकीरी में – अनुपम सिंह के गोठ

कबीर के संवेदना ल फकीरी अउ सुफियाना सइली के अपन गीत मं प्रस्तुत करइया भारती बंधु मन कोनो परिचय के मोहताज नई हवय। भारती बंधु कला के क्षेत्र म छत्तीसगढ़ के पहिचान के रूप म जाने जाथे। डा. नामवर सिंह एक पइत भारती बंधु ल संगीत के नवा खोज कहे रहिन। भारती बंधु दल के स्वामी जीडीसी भारती के मानना हे के कबीर ल जिए बिना कबीर ल नई गाए जा सकय। स्वामीजी तिर अनुपम सिंह के गोठ:


आपके जन्म कहां होइस, पढ़ाई-लिखाई कहां होय हवय?


मोर दादाजी दच्छिन भारत ले आके जगदलपुर म बस गे रहिन। फेर परिवार ह रायपुर आ गइस। रायपुर म मोर जनम अउ पढ़ाई-लिखाई घलउ होइस। पूरा बचपन आमापारा म बीते हवय। 


संगीत कति रुझान कइसे होइस? गाना-बजाना कोन तिर सिखेव? कबीर ल कइसे चुनेव?

संगीत के सिच्छा-दीच्छा परिवार म होइस। हमर घर म संगीत के परंपरा रहिस। बाबूजी धर्मिक कार्यक्रम अउ मंदिर म गात रहिन। फेर उस्ताद आसिक अली खान तिर गाना अउ सास्त्रीय संगीत सिखेंव। उस्ताद जी ल एक पइत ‘मन लागा मेरो यार फकीरी में’ गात सुनेंव। एखर बाद कबीर ल गाए के सुरुआत होइस। एही समय डा. कपिल तिवारी ह हमन ल गात सुनिस अउ कबीर ल गाए बर प्रेरित करिस। डा. तिवारी ह १९८५ म भारत भवन म कार्यक्रम के अवसर दिस। ईहां कबीर ल सुन के मनखे मंत्र-मुग्ध होगे रहिन।

आज देस-बिदेस म गाथव। मनखे कबीर ल सुनना पसंद करथे? 

भारती बंधु के साढ़े ५ हजार से जादा कार्यक्रम हो गे हवय। इस्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी के संग दूसर कार्यक्रम भी हमन करथन। स्पिक मैके के अधिकृत कलाकार हन। कबीर ल सुने बर हर कार्यक्रम म भीड़ उमड़थे। युवा पीढ़ी के रुझान कबीर कति देख के हमन ल आस्चर्य होथे। पढ़इया लइका मन कबीर के विसय म जादा से जादा जानना चाहथे। एखर कारन हमुमन कबीर के अध्ययन करइया विद्वान मनखे संग बइठ के चर्चा करथन। कबीर साहित्य के हर पच्छ ल समझे के परयास हमन आजो करथन। 

कबीर के परंपरा के तुलसी, निरालाजी, मुक्तिबोध जइसे दूसर रचनाकार मन ल काबर नई गावव?

‘एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए’। कबीर साहिब के दुनिया अथाह हवय। ३० साल ले जादा त हमन ल गात होगे हवय, फेर आज भी पूरा नई जान सके हन, एइसे लगथे। मोर मानना हे के कबीर सब समस्या के हल हवय। कबीर के संदेस हवय – विकास भौतिकता ल नई कहे जाय, आध्यात्मिक अउ बौद्धिक विकास ले दुनिया म बदलाव आ सकत हवय। कबीर के गीत सुन के युवा पीढ़ी के विचारधारा म परिवर्तन होही तभे हमन अपन काम ल सार्थक समझबो। 

आज के दौर म कबीर के संदेस प्रासंगिक हे। सगुण-निर्गुण के बीच तुलसी अउ कबीर के कइसे तुलना करथव?

आज जइसे दुनिया के हाल हवय, पाखंड-आडंबर के विरोध करवइया मनखे के जरूरत समाज ल बहुत जादा हे। आप विचार करव, बोले के आजादी मिले के बाद भी आज सरकार, प्रसासन अउ बलवान मन के खिलाफ विरोध करे के साहस मनखे नई करयं। कबीर मुगल काल म अपन मन के बात ल चौक-चौराहा म कहत रहिन। कबीर के विचार, साहस के समाज ल आज जादा जरूरत हवय। कबीर जी कहे रहिन- गंगा नहाए जे नर तरहीं, मेढक क्यों न तरही, जिनके गंगा घर में है। 

कबीर के कोन रचना आप ल सबले जादा पसंद आथे? 

मां-बाप तिर पुछिहव के कोन लइका ल जादा पसंद करथव त कइसे बनहीं। फेर दुनिया भर म हमन गाए हन। ‘मन लागा मेरो यार फकीरी में’ गीत म जीवन के सार हवय। ए गीत ल मनखे कई पइत सुनना चाहथे। एखर संग ‘जरा धीरे-धीरे गाड़ी हांको, मोरे राम गाड़ी वाले’ ऐ गीत ल सुने के फरमाइश सब करथे। 

कला अउ संस्कृति के संरच्छन बर सरकार कति ले प्रोत्साहन मिलथे। 

सतगुरु के कृपा रहे हे के आज पूरा देस में भारती बंधु के सुनइया मनखे हवय। तीस साल ले जादा हो गे गावत, सरकार हमर सुध कभु नई लेइस। ए देख के दुख लागथे के सरकार कला, संस्कृति के घोर उपेक्षा करत हे। दस साल से जादा राज बने होगे। दूसर तीजन बाई, भारती बंधु नई बन सके हे। ठलबरा मन के पुछारी जरूर होवत हवय।

One reply on “मन लागा मेरो यार फकीरी में – अनुपम सिंह के गोठ”

सच्चा अउ अच्छा कलाकार मन कला अउ संस्कृति के असली संरच्छक आयं.जिन कलाकार मन कला खातिर जिनगी समरपित कर दिन हें,उनकर सुनइया अउ गुनइया के कभू कमी नहीं रहिस हे.इही सच्चा सन्मान हे.कबीर बर समरपित कलाकार मन ला हमर बधाई.

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