Categories
कविता

मया के चंदा

देख सुघ्घर रूप मा, मोर मन हा मोहागे,
तोरेच पिरित मा धारे-धारे मा बोहागे।
सुरता हाबे मेढ़ पार के, चटनी अऊ बासी,
भाड़ी मा चघके देखना, मुस्मुसाती हांसी,
सुरता मा तोर, जुक्खा जीव हरियागे।
काली आहूं कहिके, दगा में डारे,
तरिया पार मा देख, हाभा कइसे मारे,
मिलवना के क्रिया ला, तै कइसे भुलागे॥
बिसरना रिहिस ता, काबर अंतस मा हमाये,
मन ला मिला के सरी उदिम ला कर डारेस
मया वाली तोर, मया के हृदय कहां गवांगे।
संगी मया करके तैं काबर अइसन करथस,
मार के ताना, मोर मन ला छरथस,
रसिक मया के चंदा ह कइसे लुकागे॥

राजा राम रसिक

रसिक वाटिका, फेस 3, वी.आई.पी.नगर, रिसाली, भिलाई. मो. 09329364014