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कविता

मय अक्खड़ देहाती अंव

छत्तीसगढ़ के रउहइया अंव,
छत्तीसगढ़ी मा गोठियईया अंव।
संगी मय देहाती अंव,
मय अक्खड़ देहाती अंव।।

चार महिना ले बुता करईया
आठ महिना ले सुरतईया अंव।
जम्मों सुख ले जीये-खाये,
मय बिनती के करइया अंव।।

मय छत्तीसगढ़ के माटी,
मय माटी के सिरजइया अंव।
माटी के घर बनाये बर
मय नींव के खनइया अंव।।

संगी मय देहाती अंव।
मय अक्खड़ देहाती अंव।।

माटी ला चिक्कन बनाये बर,
मय माटी के मतइया अंव।
नींव खोदागे त लोंदी-लांेदी,
मय माटी के अमरइया अंव।।

मुंड़-पुरूष होगे त संगी,
मय म्यार के मडहईया अंव।
घर मा पानी झन आये कहिके,
मय छानी के छवईया अंव।।

संगी मय देहाती अंव।।
मय अक्खड़ देहाती अंव।।

पानी जइसे चुहेल धरिस त,
मय खपरा लहुटइया अंव।
बिजली-पानी कतको गिरत रहय,
संसो मा नई मय भगइया अंव।।

धरके रापा, झंऊहा, गैंती,
खेत के मय जवइया अंव।
ऊबड़-खाबड़ खेत हावय त,
मय गोदी के खनइया अंव।।

संगी मय देहाती अंव।।
मय अक्खड़ देहाती अंव।।

पानी गिरेल धरिस त संगी,
कांटा-खूंटी के बिनईया अंव।।
बियारा मा पैरा फिजे कहिके
मय पैरा के धरइया अंव

बखरी परिया झन होवय कहिके,
साग-भाजी के बोवइ्रZया अंव।
नांगर-जुड़ा अऊ बईला धरके,
मय खेत के जवईया अंव।।

संगी मय देहाती अंव।।
मय अक्खड़ देहाती अंव।।

दया-धरम के साथी अंव,
मय छत्तीसगढ़ के माटी अंव।
संगी मय देहाती अंव।।
मय अक्खड़ देहाती अंव।।

अरा-ररा, तता-तता कहिके,
मय नांगर के जोतइया अंव।
बिजली पानी चाहे गिरत रहय,
हरिया पूरा के करईया अंव।।

धार बोवांगे पीका फूटगे त,
खातू के मय छितईया अंव।
बन जइसने दिखेल धरिस त,
मय नींदा के हेरईया अंव।।

संगी मय देहाती अंव।
मय अक्खड़ देहाती अंव।।

सांवा, बदऊर, करगा, हफुआ
अऊ धान के चिनहइया अंव।
धान लुके बिडा बांध के
सुर मा मय डोहरइया अंव।।

गंदी-मंुदी बेलन फांदके,
धान के मय fमंजइया अंव।
ओसके धान ला साफ-सुधरा,
कोठी डोली मा धरइया अंव।।

संगी मय देहाती अंव।
मय अक्खड़ देहाती अंव।।

जतके कमाथों ओतके पाथों,
लालच के नई पुजरी अंव।
मय गंवईहा अबड सुख पाथों
बासी चटनी के खवइया अंव।।

चिरई-चिरगुन, जीव-जन्तु मन
मोर छत्तीसगढ़ के हीरा ये
हीरा ये मोर माटी ले उपजे,
मय माटी के लइका अंव।।

संगी मय देहाती अंव।
मय अक्खड़ देहाती अंव।।

छत्तीसगढ़ मा सब रतन भरे,
फेर मय नई ऐखर खनईया अंव।
ये महतारी मय लईका अंव
मय मंा के जतन करईया अंव।।

तहु देहाती महंु देहाती,
अऊ जम्मों झन देहाती ये।
ये माटी मा जोन जनम धरिस,
ओ मन अक्खड़ देहाती ये।।

संगी मय देहाती अंव।
मय अक्खड़ देहाती अंव।।

ये देहाती ला अब का कहिबे,
जोन भारत मा सबले ऊंचा हे।
बड़े-बड़े महात्मा गांव के आय,
दुनिया मा सबसे ऊंचा हे।।

वीर नारायण ल का कहिबे,
वहु गांव के रऊहईया ये।।
नाम अब अऊ काखर धरौ,
सुन्दरलाल भी गंवईया ये।

आओ सब मिल सपथ करन,
जुर-मिलके आज कमाबो जी।
छत्तीसगढ़ मा भारत के पावन,
भुंइया ला सिरजाबो जी।।

सरग जइसे सुग्घर भुंइया ला,
मय देहाती ह बतावत हंव।
नाम धरागे देहाती तब मय,
देहाती के काम बतातव हंव।।

मय ‘‘भोलाराम’’ देहाती अंव,
छत्तीसगढ़ के माटी अंव।
दया-धरम के साथी अंव,
मय छत्तीसगढ़ के माटी अंव।

संगी मय देहाती अंव।
मय अक्खड़ देहाती अंव।।

Bhola Ram Sahu

 

 

 

 

भोलाराम साहू