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कविता

मर जबे गा संगवारी

एक मजदूर अऊ किसान के व्यथा अऊ ओकर निःस्वार्थ श्रम ल गीत के माध्यम से उकेरे के कोशिश करे हव – विजेंद्र कुमार वर्मा

गाड़ा म बैला फाद के कहा,
ले जाथस ग ईतवारी,
मत जाबे तै संगवारी
मर जाबे तै संगवारी
पेट ल फोड़ा पार के तेहा,
हाथ म धरे कुदारी
मत जाबे तै संगवारी
मर जाबे तै संगवारी
नईये पुछैया मरहा मन के,
भोगाय हे पटवारी
मत जाबे तै संगवारी
मर जाबे तै संगवारी
बनी भूती खेत खार ह
सपटथ हे अऊ फूलवारी
मत जाबे तै संगवारी
मर जाबे तै संगवारी
घरो दुवार तोर छिटकी कुरिया
नई बनायेस महल अटारी
मत जाबे तै संगवारी
मर जाबे तै संगवारी
जीयरा तोड़ के अन्न उपजाये
ये माटी म ईतवारी,
मत जाबे तै संगवारी
मर जाबे तै संगवारी
कतको कमाबे ऐकर बर तै,
भोरका म ढकेलही मुरारी
मत जाबे तै संगवारी
मर जाबे तै संगवारी
Vijendra Kumar Verma
विजेंद्र कुमार वर्मा
भिलाई (नगरगाँव)
मोबाइल 9424106787

4 replies on “मर जबे गा संगवारी”

अड़बड़ सुग्घर गीत हवय विजेंद्र भाई सुने म अउ सुग्घर लगही….बधाई हो आपमन ल

धन्यबाद, शर्मा जी आप मन के स्नेह के लिए I

बनिहार किसान के दुख पीरा ल अब्बड़ सुघ्घर चितरीत करे हो वर्मा जी एकर बर बधाई अऊ जय जोहार |

महेन्द्र जी, आप मन के धन्यवाद जेन ह ए गीत के माध्यम से हमर किसान मन के पीरा ल समझे हव I

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