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कहानी

महतारी बरोबर भउजी

फेर सब्बो दिन अउ बादर ह एके नइ राहय। एक दिन जमुना के दाई ह भगवान के दुवार म चल दिस अउ दू महिना बाद ददा ह घलो सरग सिधारगे। जमुना ह तीजा-पोरा म अपन भाई के रस्ता ल देखत रहिस कि मोला भाई ह लेगे बर आही, पोरा तिहार ह मनागे फेर भाई ह नइ अइच, जमुना ह अड़बड़ रोईस कि मोला भाई-भउजी मन ह नइ पूछिस, भउजी ह तको महतारी बरोबर हरय मोला अपन बेटी मान के लेग जतिस त का होतिस। अइसने सोचत-सोचत जमुना ल गंगा के सुरता आगे।
गंगा ह अड़बड़ अभागिन रहिस। अपन दाई के कोख म रहिस हे त ददा ह खतम होगे अउ गंगा ह जनम लिस हे त दाई ह भगवान घर रेंग दिस। गंगा अउ गंगू ह अनाथ होगें। गंगू के ददा के दस एकड़ जमीन रहिस हे तेकर लालच मं कका-काकी मन दूनो लइका ल पोसबोन कहिके गांव के सियान मन करा कहिस हे त सियान मन ह दूनो लइका के जिम्मेदारी ल कका-काकी ल सउंप दिन।
गंगा ह पहिली पढ़े बर स्कूल जाय ल लगिस हे त काकी ह बुता तियारे बर धरलिस, बुता ल करके गंगा ह पढ़े बर जाय अउ स्कूल के छुट्टी होवय त फेर घर के काम बुता ल करय। जइसे बुता करय तइसे गंगा ल पेट भर खाय बर नई मिलत रहिस। काकी ह आधा पेट बासी ल गंगा ल देवय। गंगू ह सुत उठ के गोबर कचरा ल करय। भइंसा ल धोवय। खेत मं खातू पहुंचाय बर जावय। तहां ले नहा धो के उत्ता-धुर्रा चार कउंरा बासी खा के स्कूल जावय। दूनो भाई बहिनी कभू संगवारी मन करा खेले बर नइ जानिन। बुता काम म दूनो झन के तन ह लकड़ी कस सुखावत जात रहिस। कका-काकी के दुख ल पा के लइका मन जिनगी ल बितावत रहिन हें।
गंगू ह बारहवीं पढ़े के बाद प्राइवेट कंपनी म काम-बुता करे बर धरलिस तहां ले लइका ह मेहनती हे कहिके बिहाव बर सगा-पहुना आय बर धरलिस। गंगू के खेत के धान के पइसा मं कका-काकी मन गंगू के बिहाव ल करिस हे। गंगू के बाई जमुना ल ससुराल मं आय दू महिना नइ होय रहिस तहां ले हंडिया ह अलग होगे। अब गंगू ल पेट भर भात खाय बर मिले ल धरलिस। फेर गंगा के फुटहा करम ह फुटहा रहिगे। जमुना ह गंगा ल उही दुख ल दे बर धरलिस जेन दुख ल काकी ह देवत रहिस हे। गंगा के स्कूल जवइ ह घलो बंद होगे। अब गंगा ह दूसर खेत मं बनी भूती जाए बर धरलिस।
गंगा ह भउजी के आंखी मं गड़त रहिस। एक दिन पड़ोसी किशन ह बनी के पइसा दे बर आय रहिस अउ गंगा ल पइसा ल देवत रहिस। तहां ले भउजी ह बड़बड़ाय बर धरलिस। देख तोर बहिनी के करनी ल जवान बेटी होके जवान टुरा करन गोठियावत हे। तोला कतको कहिथंव जी कि गंगा के मुख ल टार दे फेर मोर गोठ ल सुनबे नइ करच। एक दिन तोर बहिनी ह हमर नाक ल सुर्पनखा कस कटवाही। तेन दिन तोला पता चलही कि जमुना ह सहिच काहत रहिस। रामू ह कहिस, तोर बहिनी ह गंगा मइया असन पबरीत हे। भैया तंय गंगा ल झन मार, गंगा ह दाई-ददा ल सुरता करके रोईस कि मोर दाई-ददा ह जियत रहितिच त मेंहा अइसन दुख ल नइ पातेंव। भाई-भउजी मन गंगा के बिहाव ल तुलसी बिहाव के दिन करदिस अउ गंगा ह बिदा होके ससुराल चल दिस तहां ले गंगू ह कभू गंगा ल लिहे बर नइ गिस।
तीजा पोरा ह आवय त गंगा ल मइके के सुरता आवय कि जम्मो बेटी माई मन ह मइके म आय होही। फेर मेहा वो अभागिन हरवं जेन ल मइके के कुकुर के दरसन तको नइ होवय। तीजा-पोरा मं जमुना ह हर बछर अपन मइके जावय अउ दाई-ददा के मया ल पावय। फेर सब्बो दिन अउ बादर ह एके नइ राहय। एक दिन जमुना के दाई ह भगवान के दुवार म चल दिस अउ दू महिना बाद ददा ह घलो सरग सिधारगे। जमुना ह तीजा-पोरा म अपन भाई के रस्ता ल देखत रहिस कि मोला भाई ह लेगे बर आही, पोरा तिहार ह मनागे फेर भाई ह नइ अइच, जमुना ह अड़बड़ रोईस कि मोला भाई-भउजी ह नइ पूछिस, भउजी ह तको महतारी बरोबर हरय मोला अपन बेटी मान के लेग जतिस त का होतिस। अइसने सोचत-सोचत जमुना ल गंगा के सुरता आगे। अइसने महूं ह तो गंगा के महतारी बरोबर हरवं फेर गंगा के पीरा ल कभु नइ समझ सकेंव, कभु ओला तीजा-पोरा मं नइ पूछेंव। मेहां गलती करेंव तेकर सजा मोला मिलगे, जमुना ह बस मं गंगा घर चल दिस। गंगा ह भउजी ल देखिस त आंखी ले आंसू बोहागे। भउजी ह तको गंगा ल पोटार के अड़बड़ रोइस अउ कहिस, बेटी मोर से गलती होगे। मोला माफ कर दे, तोला कभु मइके नइ लेगेंव फेर आज तोला लेगे बर आय हंव। गंगा ह भउजी ल कहिस, मोर करन माफी काबर मांगत हच महतारी मेहां ह कभू रिस नइ करेंव। तोला माफी मांगे के कोनो जरूरत नइ हे। गंगा ह भउजी संग मइके आगे। दूनो झन के परेम ल देख के गांव के दूसर भउजी मन के मन ह घलो अपन ननद बर पिघलगे। गंगा-जमुना के परेम के नदी ह गांव-गांव मं बोहाय बर धरलिस अउ भउजी मन ह महतारी बनके अपन ननद ल तीजा-पोरा म लाय बर धरलिस।

सदानंदिनी वर्मा
ग्राम रिंगनी (सिमगा)

4 replies on “महतारी बरोबर भउजी”

Abbad sughar rachna have. Aisan rachana hamar man pahuchavat bar aap man la koti sah dhanyawad

बहुत भाव-पूर्ण रचना हे । पढत – पढत ऑखी डबडबा गे । नीक लागिस हे । भौजी के मया ल कहूँ नइ पा सकैं । जात्ते साठ जब भभर के लोटा म पानी धर के आथे अऊ गोठियाथे तौ सब्बो थकासी हर हिरना कस भाग जाथे । पॉव परत हौं ओ भौजी !

वर्मा जी आपके ये भाव पूर्ण रचना ला पढ़के रोवासी आगे लागिस जैसे घटना हा मोर आसे पास माँ घटे हे ठेठ छत्तीसगढ़ी के अद्भुत भासा ज्ञान घलो होइस

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