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कविता

माटी के कुरिया

सुख कब पाहू दु घड़ी –
दू मंजिला महल भीतर म।
थीरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।

जाड़ म कपासी मरथवं,
घाम म पछनाय परथवं।
भिंसरहा के भटकत संझौती आवं,
रतिहा चंदैनी के अंजोरी नई पावं।
कोनजनी कब का हो जही –
निंद गवायेवं इही डर म।
थीरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।

तेलई म घर के लासा डबकगे,
रंग के पोतई तिजौरी खसकगे।
सिड़ीया चड़ई म सियनहा बरसगे,
गरवा परसार म मेछराय ल तरसगे।
काकर बुध म गांव छोड़ी –
लघियात आ बसेवं सहर म।
थीरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।

नहाय के खोली खाय के खोली,
बखत परे म बाहिर बट्टा होली।
अंगना म खोजवं तुलसी के बिरवा,
चौरा मुहाटी म पिपर के पेड़वा।
कइसे बिसंर जथवं सुरता,
खड़े ईटा पथरा के अधर म।
थीरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।

पंखा बगराये पवन कस पुरवाही,
संझा बिहनीया ल बिजली बनाही।
अमरईया के हवा नंदा जाही का,
एकदिन चंदा सुरुज मुंदा जाही का।
लहुट आते का बीते बेरा,
लुकालेतेवं सुरता ल नजर म।
थीरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।

ममी डैडी म दाई ददा ल भोरहा होथे,
टीबी रेडिया के सेती गीता रमायन रोथे।
पठेरा आंट मचान के तो खटिया उसलगे,
सोकेस अउ सोफासेट मार्बल म फिसलगे।
अब जी ले डरबे का जमाना,
हफरगेवं ये डामर के डगर म।
थीरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।

जयंत साहू
jayantsahu75@yahoo.com
ग्राम. डुण्डा, सेजबाहर,
रायपुर छ.ग. 492015.