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कविता

माटी के दियना

माटी के दियना, करथे अंजोर।
मया बांध रे, पिरितिया डोर॥
जगमग-जगमग लागे देवारी,
लीपे-पोते घर, अंगना, दुवारी
खलखला के हांसे रे,
सोनहा धान के बाली
चला चलव जी, लुए बर संगी मोर॥
माटी के दियना…
नौकर-चाकर, सौजिया, पहटिया
जोरे-जोरे बइहां रेंगे,
धरे-धरे झौंहा डलिया
चुक-चुक ले, गांव, गली, खोर
माटी के दियना…
छन-छन ले घाट-घटौंदा
तरिया-डबरी, नरवा-नदिया
पैडगरी लागे उजास रे
माटी के दियना…
रामकुमार साहू मयारू
गिर्रा पलारी

One reply on “माटी के दियना”

aap man ke mati ke diyna kavita la parhe le mar gavae gaov ke yadaa ge ye kavita likhe bar aap la gara-gara badhai.

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