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कविता

माटी बन्दना – बंधु राजेश्वर राव खरे

(इस कविता का हिन्दी अनुवाद  आरंभ में देखें)
माटी के हमर घर-कुरिया
माटी हमर खेती-खार हे
जय हो महतारी माटी महतारी
तोला हमर जय जोहार हे।
माटी मं सबके उपजन-बाढन
माटी मं जिनगानी
माटी जनम-करम के संगी
माटी हावय अनपानी
माटी सबके तन-मन के सिंगार हे।
माटी के बनथे नंदिया बईला
माटी के जांता-पोरा
माटी के गनपति अउ दुरगा
माटी के गौरी-गौरा
छत्तीसगढ मं बारों महिना माटी के तिहार हे।
माटी के बनथे कुडेरा-तउला
दुहना-ठेकवा-कनौजी
लाली करसी, खपरा, हंडिया
परई-दीया-कलौरी
इन जम्मों के गढइया भईया कुम्हार हे!
जय हो महतारी माटी महतारी
तोला हमर जय जोहार हे।
बंधु राजेश्वर राव खरे

बंधु राजेश्वर राव खरे के कबिता संग्रह “खंतिहा बर खरी अउ बैठांगुर बर बरी” के कबिता ला हम सरलग परकासित करबोन, आप मन के दया मया बने रहय.