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कविता

माटी माथा के चंदन

मोर गांव के करंव बंदन,
माटी माथा के चंदन।
सपना सुग्घर दूनो नयनन,
आड़ी-पूंजी जिनगी धन॥
हरियर-हरियर खेती-खार
लीपे-पोते घर-दुवार॥
गंगा कस नरवा के पानी,
अन धन ले भरे कोठार॥
सेवा के सोंहारी बेलय,
पिरित के धरे पईरथन।
करमा, ददरिया, पंडवानी
गली खोर म गीता बानी।
घर-घर तुलसी रमायेन,
राम सीता दूनो परानी॥
सुरूज संझा लाली लिए,
बिहनिया बुके बंदन।
जगमग सुरहुत्ती देवारी,
फागुन के लाली-गुलाली।
हरेली तीजा पोरा राखी
मया बांटे माली-माली॥
उपजे-बाढ़े जेखर कोरा,
तेखरे कोरा म मिले तन॥
डॉ. पीसीलाल यादव
साहित्य कुटीर
गंडई-पंडरिया
राजनांदगांव