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कविता

मोर गॉंव कहॉं सोरियावत हे : दुबराज चांउर के महमहाब

बेरा कुबेरा नगरिहा अउ
गड़हा गाड़ी जोतंय!
मसमोटी* म हांक त बैला
गजब ददरिया सोंटय!
पारय टेही संगवारी ह
अउ जुवाब म गावय!
हिरदे के जमो जियान ल
चतुरा जनव घटावय!
खेतखार का डगर डगर अब
ट्रक ट्रेक्टवर टर्रावत हें!

मिसे कूटे धान पान अउ
ओन्हा री संझके रहा!
दौंरी बेलन दूरिहागंय
आ गय ट्रेक्टंर टेर टेरहा!
मुठिया* डाँड़ी धुरखिल्ली*
सुमेला* सूपा कलारी* !
बावन बख्खेर कुड़ी* कोपर*
दतरी* नागर जुवाँरी!
नहना* जोता* बरही* का
परचाली* नाव भुलावत हे!

घी राहर दार के संग सुघ्घार
दुबराज चाउँर के महमहाब!
धनिया मेथी संग नइ रहि गय
गोभी के तइहा कस रूआब!
भुइंयाँ भर म जहर मिलावत
हे रसायन खातू
साग पान ल घलव चढ़ाथे
सूजी दवाई नाथू !
मनखे बैरी बन गंय अपने
मौत ल अपन बिसावत हें!

गाँव जगावंय बड़कू बैगा
बरिख दिन म आके !
ठाकुर दइया महमाई म
बस्ती संग जूरियाके !
पंडऱा बोकरा कर्रा कुकरा
उल्टा पाँख के कुकरी!
सबके सेती चाऊँर चबावय
बड़कू बैगा पोगरी* !
पितर-गोतर देव-धामी अब
वइसन कहाँ मनावत हें।

असली जमो सिरावत हावंय
नकली पाँव पसारंय!
भीतर बगरत हे अंधियारी
ऊपर दियना बारंय !
राचर* फइका ओठगाके* तब
जहां चहंय चल देवंय !
सुन्ना घर कुरिया के सरबस
सोर परोसी लेवंय !
आपुस के बिस्वास जनव अब
पंछी बन उडिय़ावत हें !

घर घुसरके मारंय पीटंय
जबरन लूटंय खजाना !
बेरा कुबेरा रस्ता बाट के
कहिबे काय ठिकाना !
निचट पराये के हितवा बन
जाके तलुवा चाटंय !
भाई भाई ले दुरमत कर
अपने बांह ल काटंय !
जांघ ठोंक के बैरी जइसन
अपने ल हुरियावत* हें !