Categories
कविता

मोर गॉंव कहॉं सोरियावत हे : महंगा जमो बेचावत हें

रूपिया भर म कतेक बतावन
का का जिनिस बिसावन!
कॉंवर भर भर साग पान
टुकना भर अन्न झोकावन!
राहर दार लुचई के चाऊंर
चार चार सेर लावन!
अइसन सस्ता घी अउ दूध के
पानी असन नहावन!
अब सरहा पतरी के दाम ह
रूपिया ले अतकावत* हे!

‘‘पानी के बस मोल’’ के मतलब
सस्ता निचट कहाथे!
अब तो लीटर भर जल ह पन
बीस रूपिया म आथे!
थैला भर पैसा म खीसा भर
अब जिनिस बिसाथन!
महंगाई के जबर मार ल
रहि रहि के हम खाथन!
मनखे के मरजाद छोड़ अब
महंगा जमो बेचावत हे!

सपना हो गय तेल तिली के
अउ तेली के घानी!
अरसी अंड़ी भुरभुंग लीम अउ
गुल्लील आनी बानी!
सरसों अउ सूरजमुखी संग
सोयाबिन महगागय!
जमो जिनिस के दाम निखालिस*
सरग म जनव टंगागय!
घी खोवा अउ दही दूध ल
मुरूख जहर बनावत हें!

रूपिया भर म नूनहा बोरा
चार आना सेर चाऊंर!
बिना मोल कस कोदो कुटकी*
साँवा* सहित बदाऊर* !
‘वार बाजरा जोंधरा जोंधरी
धनवारा* गुड़ भेली!
बटुरा मसुरी चना गहूं
सिरजइया महल हबेली!
तिवरा राहर मूंग मोल अब
सरग म गोड़ लमावत हे।

रूपिया चार आना अठन्नी
जांगर टोर क मावंय!
ठोमा-खाँड़* पसर का चुरकी
भुरकी भर भर लावंय!
बांट बांट कुरूचारा* कस
जुरमिल के सब खावंय!
एक दूसर के सुख दुख सिरतों
जानय अउ जनावंय!
अब सौ रूपिया घलव कमा के
कल्लर-कइया* लावत हें!

One reply on “मोर गॉंव कहॉं सोरियावत हे : महंगा जमो बेचावत हें”

Comments are closed.