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कविता

मोर गॉंव कहॉं सोरियाव हे : बिन पानी

रतनपुर जइसन कइ गढ़ के
छै छै कोरी तरिया।
बिना मरमत खंती माटी
परे निचट हें परिया
बरहों महीना बिलमय पानी
सोच उदिम करवइया!
जोगी डबरा टारबांध
स्टापडेम बनवइया!
मिनरल वाटर अउ कोल्डड्रिंक
फेंटा पीके गोरियावत हें!

पुरखौती कुवाँ बवली के
पानी धलव अटाथे!
नदिया खँड गहिरा झिरिया म
रेती सिरिफ तकाथे* !
भाजी भांटा कोंचइ कॉंदा
बिन पानी का जगरंय !
हरियर चारा दुबी झुरागंय
गाय गरू का बगरंय!
रसाताल* के पानी सोत ह
दिनो दिन गहिरावत हें!

पचरी घाट नहावंय तइहा
अउ अड़बड़ सुख पावंय!
अब तरिया भर पचरी पन
बिन पानी कहाँ नहावंय!
गली खोर अउ चौबट्टा म
हेंडपंप जब हालंय!
बिन पानी के दू असाढ़ कस
बैरी जइसन घालंय!
जलधारा स्कीम मनइ के
संसार ल सरसावत हें!

चौमसहा जब झड़ी झकोरय
चमचम बिजली मारय!
चिमनी दीया बुझावंय झप-झप
बिना तेल का बारंय!
अँधियारी म टमड़त* परछी
बर मनटोरा जावय!
सन्डमइला* काड़ी ल बपरी*
लकर-धकर* सुलगावय!
अब एक ल बती ह घर घर
म अंजोर बगरावत हें!

बादर बरसय घरती सरसय
बाउग करंय बियासी!
चिखला कांदो कांटा खूंटी
उखरा गोड़ उपासी!
परय तुतारी टिकला बलहा
छद बद छद बद भागंय!
अमरित खातिर जनव मतावंय
क्षीर समुंदर लागंय!
अब टेटर के आगू कोपर
नागर ल सरकावत हें!

गाँव-गौटिया बड़े किसनहा
गाँव-गंवतरी* जावंय।
छकड़ा-गाड़ी* घोड़ा-बघ्घी
खूब सुघर संभरावंय!
गर भर घुंघरू कौड़ी बांधय
माथा मलमल पट्टी!
मूंगा माला अउ जुगजुगी
नाथत जावंय सत्तीं*!
अब दरवजा फटफटही अउ
जीप कार घर्रावत हें!

छन छन खन खन घंरा बाजंय
सरपट बैला भागंय !
चमकंय झझकंय डहर चलइया
सुतनिंदहा मन जागंय !
ढरका फुदकी टपटप टपटप
धोड़ा चाल देखावंय !
चाबुक देखे बिदकंय बैरी
जोरहा हिन हिनावय !
बर बिहाव सरकस म अब तो
धोड़ा कभू नचावत हें !