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कविता

मोर भुईयां के भगवान

जाँगर तोड़ कमाये तेहा ग किसान,
मरत हाबस तभो ले बनगे हस महान I
भुररी असन लेसावत हे तोरो अरमान,
टेटकत अऊ सेकावत हे तोरो येदे परान I
तभो ले तेहा संगी भुईयां के भगवान I

जिनगी म नईये तोरो कोई मुकाम,
कईसे रहिथस गाँव में तेहा ग सियान I
काकर बर करथस तेहा अतेक काम,
का सेवक मन बना दिस तोला गुलाम I
मन के मालिक रेहेव ग किसान,
अब का होगे मोर भुईयां के भगवान I

कईसे सजोवव तोला ग जजमान,
संजोते सजोवत ऊड़ जाही मोरो दुऊकान I
जेकरे बर कमाथस ऊही बनगे सैतान,
जुर मिर के कुछ करबो आवो नौजवान I
तभे होही हमर किसान के कल्याण,
नई तो मर जाही मोर भुईयां के भगवान I

Vijendra Kumar Verma

विजेंद्र कुमार वर्मा
सेक्टर-4 भिलाई (नगरगाँव वाले)
9424106787
दिनांक 28-04-2015

4 replies on “मोर भुईयां के भगवान”

किसान मन के पीरा ल बने दर्शाये हव संगवारी…बधाई हो

किसान के पीरा ल अपन कलम मे उकेर के सबके सामने लाय के बढिया परयास हे |
एकर बर आप ला बधाई हो वर्मा जी |

धन्यवाद,महेंद्र जी

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